पुरानी वैक्सीन क्या ओमिक्रॉन को कर सकती है खत्म

punjabkesari.in Thursday, Jan 06, 2022 - 05:30 PM (IST)

नई दिल्ली: यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज में इनेट इम्युनिटी की प्रोफेसर क्लेयर ब्रायंट कहती हैं कि व्यक्ति को संक्रमित हाने के बाद वेरिएंट के प्रभावों को जानने के लिए कई सप्ताह का समय लग जाता है। वह कहती है कि अभी तक हमें यह पता है कि ओमिक्रॉन, डेल्टा से अधिक संक्रामक है। यह चिंता का विषय है क्योंकि इससे अस्पतालों पर दबाव बढ़ सकता है। एक और मुश्किल यह भी है कि अधिक संक्रामक होने के कारण यह वायरस अधिक लोगों के शरीर में होगा तो इसके म्यूटेट करने की संभावना भी अधिक होगी। इसका मतलब साफ है कि नए वेरिएंट पैदा होने की संभावना अधिक हो जाती है। इस पर लगाम लगाने के लिए वैक्सीन जरुरी है। वह कहती हैं कि अब तीन महीनों के वक्त में नई वैक्सीन बनाई जा सकती है क्योंकि इसके लिए बस मौजूदा वैक्सीन में कुछ बदलाव करने होंगे।

वायरस के नए वेरिएंट की जानकारी जरुरी
प्रोफेसर क्लेयर ब्रायंट कहती हैं कि नियमित अंतराल पर वैक्सीन लेने से इसमें मदद मिल सकती है। कई मुल्क फ्लू वायरस से निपटने के लिए इसी तरह की रणनीति अपनाते हैं। वह कहती हैं कि वैक्सीन देने से जो वायरस सर्कुलेशन में है उसकी संख्या को कम किया जा सकेगा और वो म्यूटेट कर ऐसे वेरिएंट नहीं बना सकेगा जो हमें गंभीर रूप से बीमार कर सके। फ्लू वायरस के साथ यही होता है, हर साल उसके नए स्ट्रेन को लेकर वैक्सीन बनती है और इससे वायरस को काबू में रखने में मदद मिलती है। इसके लिए जरूरी है कि वैज्ञानिक नए वेरिएंट्स पर नजर रखें ताकि वैक्सीन तैयार करने में मदद मिल सके। क्लेयर कहती हैं कि दक्षिण अफ्रीका ने इस मामले में जल्द जानकारी देकर बेहतरीन काम किया है, लेकिन आने वाले वक्त में चुनौती यह है कि क्या दूसरे मुल्क भी नए वेरिएंट की जानकारी देने के लिए आगे आएंगे।

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टीकाकरण, दूरी और मास्क जरूरी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान हैदराबाद के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर विकास भाटिया कहते हैं कि अब तक ओमिक्रॉन के मामले जहां सामने आए हैं वहां मृत्यु दर में बहुत बदलाव नहीं देखा गया है, लेकिन वायरस लगातार बदलता रहता है इस कारण जरूरी है कि हमें सतर्क रहना चाहिए। वह कहते हैं कि दुश्मन किस प्रकार से अपना स्वभाव बदल ले हमें उस बात को समझना है और तैयार रहना है। वायरस में लगातार म्यूटेशन होता है, नया वायरस आएगा और इसे लेकर चिंता भी रहेगी।  यह बात भी है कि इससे बचने का सबसे आसान और भरोसेमंद हथियार मास्क है और सभी लोग टीका भी लगवा लें क्योंकि इसके बाद अस्पताल में भर्ती होने की दर में कमी आ सकती है। डॉक्टर विकास कहते हैं कि अलग-अलग सर्वे में ये पता चला है कि भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा या तो वायरस के संपर्क में आ चुका है या फिर इसके संक्रमण से उबर चुका है। ऐसे में उनके शरीर में कुछ इम्यूनिटी है और फिर कुछ मदद टीकाकरण से भी मिल सकती है।

बच्चों के लिए खतरा कितना
डॉक्टर विकास कहते हैं कि कुछ मामले आजकल बच्चों और किशोरों में ज्यादा सुनने को मिल रहे हैं क्योंकि बड़ों में वैक्सीन और हाइब्रिड इम्यूनिटी आ चुकी है। अच्छी बात ये है कि बच्चों और किशोरों में चिंता वाली बात नहीं आई क्योंकि उनमें न के बराबर मौत हुई और अस्पतालों में जाने के ऐसे मामले भी नहीं आ रहे हैं जिसे लेकर हम चिंतित हों। हमें समझना होगा कि संक्रमण और बीमारी में फर्क है, संक्रमण सबको हो सकता है।

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ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए भारत कितना तैयार
देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य विश्लेषक और महामारी विज्ञानी चंद्रकांत लहरिया ने एक साक्षात्कार में कहा है कि हम वर्तमान में कोविड-19 पर जिस तरह ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, उससे प्रतिक्रिया में सुधार हुआ है। बिना किसी बुनियादी बदलाव के अस्पतालों में परीक्षण और बिस्तरों की उपलब्धता को बढ़ाया गया है। इसके अलावा, मामलों की संख्या उतनी अधिक होने की संभावना नहीं है जितनी दूसरी लहर में हुई थी। इसलिए उच्च टीकाकरण कवरेज और मध्यम से गंभीर बीमारी की कम संभावना के साथ भारत बेहतर तरीके से तैयार है लेकिन लंबी अवधि के लिए यह पर्याप्त नहीं है। हमें एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और लंबी अवधि के निवेश की जरूरत है। सरकार को अब तक किए गए वादों को पूरा करना चाहिए। इसके अलावा, हम देश के विभिन्न हिस्सों में डेंगू और अन्य बीमारियों का प्रकोप देख रहे हैं। अधिकांश स्वास्थ्य कर्मचारियों को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई की ओर मोड़ दिया गया है। एक समय आएगा जब इन सेवाओं को फिर से शुरू करने की आवश्यकता होगी। ऐसे में हम एक और लहर के लिए तैयार नहीं होंगे।

नए वेरिएंट के खिलाफ टीका लगाना कितना कारगर
महामारी विज्ञानी चंद्रकांत लहरिया कहते हैं कि टीका लगाना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। निर्माता और शोधकर्ता हमेशा टीकों को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। फिलहाल यह वायरस बदल रहा है और नए वेरिएंट सामने आ रहे हैं। इसलिए सही तरीका यह है कि ऐसे टीके विकसित किए जाएं जो बहु-संयोजी हों और कई वेरिएंट को कवर कर सकें। वेरिएंट-न्यूट्रल टीकों के बारे में भी वैश्विक चर्चा है। यह अनिवार्य रूप से वेरिएंट की भविष्यवाणी करने के लिए भावी तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग को इंगित करता है। यह भी संभव है कि हर कुछ वर्षों में एक नया टीका आ जाए जो मूल टीके से अलग हो।

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Content Writer

Sunita sarangal

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