पंजाब चुनाव 2022 : 50 लाख युवा Voters बने गेम चेंजर, जानें राजनीतिक दलों पर क्या होगा इसका असर

punjabkesari.in Sunday, Mar 06, 2022 - 11:18 AM (IST)

जालंधर(अनिल पाहवा): पंजाब में 20 फरवरी को 117 विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदान की प्रक्रिया संपन्न हुई। अब चुनाव परिणामों का इंतजार है। राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। 2017 की तुलना में कम मतदान होने की वजह से तरह-तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। संभावित चुनाव परिणामों के बारे में हमने ग्रामीण बाजार विशेषज्ञ राकेश झांजी से उनके विचार जाने जिसमें आने वाली सरकार को लेकर कई तरह की संभावनाएं सामने आई हैं।

आम आदमी पार्टी का शोर भी है और जोर भी
पंजाब की चुनावी राजनीति में गुणात्मक बदलाव आया है। यह दो दलीय प्रतियोगिता से एक बहु दलीय प्रतियोगिता में बदल गया है, जिससे चुनावी स्थान की भीड़ बढ़ गई है। प्रतियोगिता बहुपक्षीय होने के कारण अधिकतर सीटों पर जीत का अंतर बढ़ने की संभावना अधिक नहीं है। हरेक विधानसभा सीट एक अलग कहानी कह रही है। एक शब्द जो हर कहानी से निकल कर सामने आ रहा है, वह है बदलाव का। कृषि मुद्दे, बेअदबी मामला, नशे और बेरोज़गारी से जुड़ी समस्याएं इस एक शब्द बदलाव के सामने बहुत धुंधली हो गई। आम आदमी पार्टी के बदलाव के संदेश ने मतदान की कल्पना को पकड़ लिया है। पंजाब में कांग्रेस तथा अकाली दल से ऊब चुके मतदाता 60 साल बाद एक नए विकल्प को मौका देते नकार आ रहे हैं। जाति-धर्म की राजनीति पिछड़ती नजर आ रही है। 

मालवा क्षेत्र जो शुरू से ही आम आदमी पार्टी का गढ़ रहा है, वहां चुनाव के आखिरी दिनों में बदलाव के संदेश की एक लहर बनती नजर आई। मालवा में 2017 में आम आदमी पार्टी को 27 प्रतिशत मत मिले तथा वह 69 में से 18 सीटों पर विजयी रही। 2022 के चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत लगभग 15 प्रतिशत तक बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं, जिसके फलस्वरूप उसे मालवा में 40-45 विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिलने के आसार हैं। बदलाव के शब्द का कुछ असर माझा तथा दोआबा क्षेत्र में भी महसूस किया जा रहा है, जहां उसे 2017 की अपेक्षा में अधिक सफलता मिलने के आसार हैं। माझा और दोआबा क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत 10 प्रतिशत से 12 प्रतिशत तक बढ़ सकता है तथा उसे इन दोनों क्षेत्रों के 48 सीटों में से 13 से 18 विधानसभा क्षेत्रों में जीत प्राप्त हो सकती है। 2017 के चुनाव में इन दोनों क्षेत्रों में उसे केवल 2 सीट प्राप्त हुई थी। पंजाब का 50 लाख युवा मतदाता तथा गरीब वर्ग का मतदाता आम आदमी पार्टी के पीछे मजबूती से खड़ा नजर आ रहा है और यह दोनों वर्ग उसके लिए गेम चेंजर बने हैं।

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कांग्रेस को बहुत बड़ा झटका
कांग्रेस को 2017 में 38.5 प्रतिशत मतों के साथ 77 विधानसभा क्षेत्रों में सफलता मिली। आपसी कलह और अनुशासनहीनता ने पार्टी की जीत की संभावनाओं को बहुत बड़ी चोट पहुंचाई है। कांग्रेस प्रदेश के प्रधान दूसरों के साथ-साथ अपनों पर भी बरसते रहे हैं। कांग्रेस के अधिकतर सांसद सदस्य घरों में बैठे रहे। नवजोत सिंह सिद्धू की भाषा भी चर्चा का विषय बनी। सुनील जाखड़ जैसे सूझवान नेता ने चुनाव के मध्य एक हिंदू को मुख्यमंत्री न बनाए जाने की बात कर कांग्रेस का कोई भला नहीं किया है। मनीष तिवारी जैसे बुद्धिजीवी नेता ने मुख्यमंत्री द्वारा प्रवासियों के बारे में की गई टिप्पणी पर चुनाव अभियान के मध्य में बयान देकर बुद्धिमता का कोई परिचय नहीं दिया। कुल मिलाकर कांग्रेस का चुनाव अभियान मुख्यमंत्री चन्नी ने वन-मैन आर्मी की तरह चलाया। कांग्रेस का पूरा खेल दलित वोटों पर टिका नजर आया। रिज़र्व 34 सीटों के अतिरिक्त 64 जनरल सीटों पर भी दलित वोट आधार 20 में से 43 प्रतिशत के मध्य है। दलित मुख्यमंत्री के चेहरे को आगे कर कांग्रेस दलित वोटों में से 60 से 65 प्रतिशत प्राप्त करने की उम्मीद कर रही थी। दोआबा क्षेत्र को छोड़ कर मालवा और माझा क्षेत्र में चन्नी फैक्टर अपना कोई अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पाया। 2017 की तुलना में कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगभग 8 से 10 प्रतिशत तक गिरने के आसार हैं। सबसे बड़ा नुकसान उसे मालवा क्षेत्र में होने के आसार हैं। 2017 की 40 सीटों की तुलना में उसे केवल 10 या 12 क्षेत्रों में विजय प्राप्त करके संतुष्ट होना होगा। दोआबा और माझा में उसे पिछले 2017 के चुनाव में 37 सीटें मिली थी। इस बार यह आंकड़ा 16 से 22 के बीच में रहने की संभावना है।

भाजपा गठबंधन की स्थिति निराशाजनक
भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब लोक कांग्रेस तथा संयुक्त अकाली दल के साथ चुनावी गठबंधन किया है। 117 में से 93 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें ग्रामीण मतदाताओं का प्रभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी का कोई आधार नहीं है। पंजाब के गांवों में किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी और कड़वाहट ने पंजाब लोक कांग्रेस तथा संयुक्त अकाली दल की संभावनाओं को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया है। दलित तथा जाट-सिख वोटरों का इस गठबंधन को नाममात्र का समर्थन मिलने के आसार हैं। इस गठबंधन के चुनावी अभियान की शुरूआत फिरोजपुर में प्रधानमंत्री की रैली के साथ होने वाली थी, जिसमें वह पंजाब के लिए बहुत घोषणाएं करने वाले थे ताकि इस गठबंधन के चुनाव अभियान को गति मिल सके लेकिन किन्हीं कारणों से यह रैली नहीं हो पाई। प्रधानमंत्री अगर चाहते तो उन घोषणाओं को दिल्ली जाकर कर सकते थे। जिससे इस गठबंधन के चुनाव अभियान को एक अच्छी शुरूआत मिल सकती थी। चुनाव अभियान के अंतिम पढ़ाव तक आते-आते अमरिंदर सिंह तथा सुखदेव सिंह ढींढसा जैसे कदवर नेताओं का कद्द बहुत छोटा लगने लगा। हिंदू वोट बैंक में भी पूरी तरह बिखराव रहा। इन हालातों में इस गठबंधन का वोट प्रतिशत 10 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावनाएं बहुत कम हैं जिसके फलस्वरूप इस गठबंधन को 4 से 10 विधानसभा क्षेत्रों में ही सफलता मिलने के आसार हैं तथा इसे हम एक अपमानजनक हार कह सकते हैं।

अकाली दल - बसपा गठबंधन की स्थिति संतोषजनक नहीं
अकाली दल को 2017 में लगभग 25 वोट मिले थे तथा बहुजन समाज पार्टी को लगभग 2% मत प्राप्त हुए थे। इतनी बड़ी हार के बाद भी मायावती द्वारा पार्टी को पंजाब में पुर्नजीवित को लेकर कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई। कांग्रेस द्वारा एक दलित मुख्यमंत्री का चेहरा आगे करने से मायावती के दल की परेशानी और बढ़ गई। अकाली दल तथा बहुजन समाज पार्टी अपने वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर करने में असफल रहे। इन परिस्थितियों में बहुजन समाज पार्टी को एक बड़ी हार का सामना कर पड़ सकता है। अकाली दल को जो नुकसान भारतीय जनता पार्टी के अलग होने से हुआ है, उसकी भरपाई करने में मायावती की पार्टी पूरी तरह असफल रही। अकाली दल का का जाट-सिख वोट बैंक पूरी तरह बिखरा नजर आ रहा है। किसान समाज मोर्चा, कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी भी इस जाट-सिख वोट बैंक के भागीदार बन गए हैं। शहरी तथा सैमी-शहरी सीटों पर अकाली दल गठबंधन को कोई समर्थन मिलता नजर नहीं आया है। ऐसे हालात में 2017 के मुकाबले अकाली दल का वोट प्रतिशत 5 से 7 प्रतिशत तक गिरने के आसार हैं, जिसके फलस्वरूप इस गठबंधन को 18 से 22 क्षेत्रों में सफलता मिलने के आसार हैं।

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किसान मोर्चा की स्थिति कमजोर
किसान समाज मोर्चा को केवल किसानों के साथ मिलकर एक दल बनाकर चुनाव में कोई सफलता मिलने की संभावना नहीं है। पंजाब में कोई ऐसा चुनाव क्षेत्र नहीं है जिसमें हर वर्ग के लोग आपको न मिलें और न ही कोई ऐसा राजनीतिक दल है, जिसमें हर तरह के लोगों का प्रतिनिधित्व न हो। जो किसान यूनियन इस रानजीतिक लड़ाई से बाहर बैठी है, उन्होंने भी किसान समाज मोर्चा का समर्थन करने की बजाय अपने सदस्यों को अपने विवेक के अनुसार किसी भी राजनीतिक दल को वोट देने की बात कही है। ऐसे हालात में किसान समाज मोर्चा के पक्ष में कोई सम्मानजनक परिणाम आना असंभव लगता है। इन सब परिस्थितियों में इस मोर्चे को केवल 0-4 सीटें मिलने के आसार हैं।

कुल मिलाकर देखा जाए तो केवल आम आदमी पार्टी ही बहुमत के आंकड़े के आस-पास पहुंचने के सक्षम लगती है। इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए उसे ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करनी पड़ेगी। अकाली दल तथा भाजपा गठबंधन मिलकर भी 25 से 32 तक का आंकड़ा ही छू पाएंगे। अगर आम आदमी पार्टी बहुमत के आंकड़े से थोड़ा दूर रहती है तो कांग्रेस इसका बाहर से समर्थन कर सकती है। उसका समर्थन करना कांग्रेस की एक मजबूरी है क्योंकि वह किसी भी हालत में पंजाब में राष्ट्रपति शासन नहीं चाहती।

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Content Writer

Sunita sarangal

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