खैहरा का ऐलान-ए-जंग, लेकिन नहीं टूटेगी ‘आप’!

punjabkesari.in Friday, Aug 03, 2018 - 02:14 PM (IST)

जालंधर(नरेश कुमार): बठिंडा में आम आदमी पार्टी के सुखपाल खैहरा गुट द्वारा किए गए जबरदस्त शक्ति प्रदर्शन और पार्टी हाईकमान के खिलाफ सीधा ऐलान-ए-जंग के बावजूद पंजाब में आम आदमी पार्टी टूटने की कोई संभावना नहीं है। पार्टी के दोनों धड़े भले ही अपनी-अपनी डफली के साथ रहें लेकिन संवैधानिक और राजनीतिक मजबूरी के चलते पार्टी के 20 सदस्यों को एक साथ रहना पड़ेगा। पंजाब केसरी आपको वे बड़े कारण बताने जा रहा है जिनसे वैचारिक मतभेद होने के बावजूद पार्टी के सारे विधायक एक साथ रहने को मजबूर होंगे। 

कोई विधायक चुनाव नहीं चाहता 
पार्टी के विधायक भले ही हाईकमान के खिलाफ झंडा बुलंद कर के बैठे हों लेकिन सच्चाई यह है कि इनमें से कोई भी विधायक चुनाव में नहीं जाना चाहेगा। विधायकों का चुनाव हुए अभी महज 16 महीने ही हुए हैं और सारे विधायकों का करीब साढ़े 3 साल का कार्यकाल बाकी है, लिहाजा कोई विधायक उपचुनाव में जाने का जोखिम नहीं लेना चाहेगा। सारे विधायकों ने चुनाव के दौरान लाखों रुपए खर्च किए हैं, लिहाजा इतना खर्च कर के हासिल किए गए पद को कोई नहीं छोडऩा चाहेगा। 

विधायकों का वेतन एक बड़ा कारण 
सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए पद पर बने रहने के साथ-साथ आर्थिक कारण के चलते भी विधायक चुनाव में नहीं जाना चाहेंगे। पंजाब में एक विधायक का मासिक वेतन 84 हजार है जबकि पैट्रोल और डीजल के खर्च के तौर पर विधायक को 30 हजार रुपए प्रति माह मिलते हैं। इसके अलावा विधायक डी.ए. के रूप में 50 हजार रुपए प्रति माह तक का दावा करते हैं। कुल मिला कर एक विधायक को हर माह करीब डेढ़ लाख रुपए तक मिलते हैं और साल में यह रकम करीब 18 लाख बनती है और साढ़े 3 साल में विधायक रहने की स्थिति में विधायकों को 63 लाख रुपए मिलेंगे। कोई भी विधायक इतनी बड़ी रकम हाथ से नहीं निकलने देगा और उपचुनाव में खर्च झेलने का जोखिम नहीं उठाएगा। 

दल-बदल विरोधी कानून में पेंच 
पार्टी विरोधी गतिविधियों पर लागू होने वाले दल-बदल विरोधी कानून (एंटी डिफैक्शन लॉ) में इतने पेंच हैं कि विधायकों को डिस्क्वालीफाई करवाना मुश्किल है। कानून के प्रावधानों के मुताबिक यदि कोई विधायक पार्टी के व्हिप का उल्लंघन कर के सदन में कार्रवाई में शामिल नहीं होता तो पार्टी उसके निलंबन की कार्रवाई शुरू कर सकती है। इसके अलावा यदि कोई विधायक खुद पार्टी की सदस्यता छोड़ दे तो उसके खिलाफ भी निलंबन की कार्रवाई भी शुरू करवाई जा सकती है लेकिन पार्टी के धड़े द्वारा अलग रैली करने को लेकर कानून में स्थिति स्पष्ट नहीं है, लिहाजा इस मामले में निलंबन की कार्रवाई के लिए गहन कानूनी पड़ताल करनी पड़ेगी। यही कारण है कि खैहरा गुट लगातार इसे पार्टी की रैली बता रहा है और रैली में कोई ऐसा कदम नहीं उठाया गया जिससे रैली के पार्टी विरोधी होने का सन्देश जाए और हाईकमान को विधायकों के निलंबन की कार्रवाई का मौका मिले। यहां तक कि रैली के मंच पर भी आम आदमी पार्टी का बैनर ही लगाया गया और रैली में किसी की फोटो नहीं लगाई गई। यदि आम आदमी पार्टी की हाईकमान ने बागी विधायकों के निलंबन की प्रक्रिया शुरू करवाई तो सारा दारोमदार विधानसभा के स्पीकर राणा के.पी. सिंह पर आ जाएगा और निलंबन की प्रक्रिया उनके विवेक पर निर्भर करेगी। 

हाईकमान को लोकसभा चुनाव का डर 
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया भले ही बठिंडा की रैली को पार्टी विरोधी गतिविधि कहें लेकिन इस रैली में शामिल होने वाले विधायकों पर कार्रवाई के मामले में वह चुप ही रहते हैं क्योंकि हाईकमान को अंदाजा है कि पार्टी टूटने की स्थिति में अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी को पंजाब के साथ-साथ दिल्ली में भी नुक्सान होगा लिहाजा हाईकमान इस मामले में नरम रुख ही अख्तियार करेगी। आम आदमी पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उस समय पंजाब से 4 सांसद मिले थे जब पूरे देश में पार्टी ने जमानत जब्त करवाने का रिकार्ड बनाया था 

दो तिहाई पार्टी टूटे तो कार्रवाई नहीं 
दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान के मुताबिक यदि पार्टी में बिखराव की स्थिति आती है और 2 अलग गुट बनते हैं तो पार्टी तोडऩे वाले गुट के पास कुल विधायकों के दो तिहाई विधायकों का समर्थन जरूरी है। खैहरा  गुट और हाईकमान दोनों इस बात से वाकिफ हैं। शायद यही कारण है कि दोनों पक्ष पार्टी के 20 विधायकों में से दो तिहाई विधायकों (14 विधायक) को अपने साथ रखने के लिए कोशिश कर रहे हैं हालांकि किसी गुट के पास इतने विधायकों का समर्थन नहीं है।  

Naresh Kumar