भारत में महामारी से 1918 में 2 करोड़ भारतीयों की हुई थी मौत, जनगणना में घट गई थी आबादी
punjabkesari.in Wednesday, Mar 18, 2020 - 12:12 PM (IST)
जालंधर। (सूरज ठाकुर) : करीब सौ साल पहले महामारी (Epidemic) का दंश झेल चुके भारत को वर्तमान में कोरोना के डर से बहुत ही भयावह स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। बात कर रहे हैं 1918 की जब मुंबई में फैले इन्फ्लुएंजा फ्लू ने करीब दो करोड़ लोगों को मौत के आगोश में सुला दिया था। बांबे इन्फ्लुएंजा के नाम से प्रचलित यह महामारी बाद में बंबई बुखार के नाम से विख्यात हुई। नतीजन करोड़ों लोगों की मौत बाद जब 1921 में जनगणना हुई तो जनसंख्या 25 करोड़ 13 लाख थी। इससे पहले 1911 में जनगणना में जनसंख्या 25 करोड़ 20 लाख थी। जबकि भारत में हर दस साल बाद की जनगणना के बाद आबादी 2 या 3 करोड़ की रफ्तार से बढ़ती रही है। इस महामारी के समय भारत में आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं थीं, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जनता को जागरुक करने के साधन भी कम थे और न ही एंटीबायोटिक उपलब्ध थे। फिलवक्त बंबई बुखार से सबक लेते हुए कोरोनावायरस के प्रति जागरुकता ही हमें स्वस्थ जीवन प्रदान कर सकती है।
ब्रिटिश इंडिया के सैनिक लाए थे इन्फ्लुएंजा फ्लू
प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटिश इंडिया के सैनिक मई 1918 में मुंबई बंदरगाह पर उतरे तो वह अपने साथ इन्फ्लुएंजा फ्लू को भी साथ ले आए थे। इस फ्लू ने मुंबई के साथ-साथ पूरे देश में मौत का ऐसा कहर ढाया कि पूरे देश में एक माह के भीतर ही लाशों के अंबार लग गए। मुंबई के तत्कालीन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जेएस टर्नर ने लिखा था कि '10 जून, 1918 को बीमार होने पर 7 सिपाहिओं को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जिन्हें जांच में मलेरिया नहीं पाया गया था। टर्नर ने कहा कि 24 जून तक मुंबई के लोगों की हालत खराब हो चुकी थी। बुखार, हाथ-पांव में जकड़न, फेफड़ों में सूजन और आंखों में दर्द के मरीज बड़ी संख्या में अस्पताल में दाखिल होने लगे। एक ही माह के भीतर बंबई बुखार यूपी और पंजाब के कई हिस्सों में बुरी तरह फैल गया। उपचार के आभाव में किसान, मजदूर, बंटाई पर काम करने वाले सैकड़ों लोग मारे गए। अहमदाबाद के इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट के आर्थिक इतिहासकार चिन्मय तुम्बे के मुताबिक इस महामारी में करीब 1 से 2 करोड़ लोग मारे गए थे।
1918 जैसे हालात नहीं है, पर सतर्कता जरूरी
सौ साल बाद विश्व में महामारी कोरोना वायरस ने भारत में दस्तक दी है, तो आज स्वास्थ्य सेवाओं की ऐसी दुर्गति नहीं है जैसी की 1918 के दौरान थी। यह ऐसा दौर था जब भारत में पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा (म्यांमार) भी शामिल थे। उस समय बंबई बुखार से निपटने के लिए कोई वैक्सीन भी तैयार नहीं हुई थी। मरीजों को प्राथमिक तौर पर राहत पहुंचाने के लिए एंटीबॉयोटिक भी नहीं थे, जांच के लिए प्रयोगशालाएं भी नहीं थी। ऐसे में बीमारी रफ्तार से आकर मरीज को निगल ही जाती थी। कोरोना वायरस से निपटने के लिए अभी भले ही देश में कोई वैक्सीन या दवा न हो, लेकिन जांच की पूरी सुविधाएं हैं। ऐहतियात बरतने कर कोरोना के मरीजों को ठीक करके डॉक्टरों ने घर भी भेजा है। पूरे देश में आज सड़क सुविधा हर अस्पताल के लिए है, ऐसे में जब तक कोरोना को रोकने के लिए कोई दवा नहीं आ जाती है तो हम ऐहतियात बरतकर अपने जीवन को महफूज रख सकते हैं।