जीव रहेंगे तो हम रहेंगे ! इंसान के शौक के लिए भी बेजुबान चुका रहे हैं कीमत
punjabkesari.in Friday, Jun 05, 2020 - 04:19 PM (IST)

पूरे विश्व में लुप्त हो रही प्रजातियों का कारण मानवीय गतिविधियां ही हैं। पर्यावरण को स्वच्छ रखना मानव की नैतिक जिम्मेदारी है। वर्तमान में इंसान जानवरों को अपने हितों के लिए पालता है। जब तक इंसान जानवरों के प्रति संजीदा नहीं होगा और उनके अधिकारों के बारे में नहीं सोचेगा तो पर्यावरण को संतुलित रखना कठिन हो जाएगा।
ऐसा भी है इंसान का जानवरों से रिश्ता
-अब फैशन के नाम पर जानवरों को पाला और मारा जाता है ताकि उनके अंगों का इस्तेमाल किया जा सके।
-लिपिस्टिक, लिपबाम या क्रीम को टैस्ट करने के लिए चूहों का इस्तेमाल किया जाता है।
-काजल की टैस्टिंग खरगोशों पर की जाती है, कई खरगोश अंधे भी हो जाते हैं।
-मीट उत्पादन के लिए जीवों को बहुत ज्यादा एंटीबायोटिक खिलाए जाते हैं।
-कछुए इंसान की जरूरत के लिए शिकार हो रहे हैं। एक भ्रांति के मुताबिक कछुए मांस से कई बीमारियां ठीक होती हैं।
जर्मन दर्शनशास्त्री और भौतिकविज्ञानी अल्बर्ट श्वाइत्जर ने कहा है कि, जब तक इंसान सभी जीवित प्राणियों के लिए स्नेह का घेरा नहीं बनाएगा, तब तक शांति हासिल नहीं होगी।’राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, किसी राष्ट्र का नैतिक विकास का आंकलन किया जा सकता है कि वह पशुओं से कैसा बर्ताव करता है।’ शुरूआत अपने परिवार से कीजिए, समाज में जहां आप उठते-बैठते हैं उनसे बात कीजिए। बच्चों को समजाइए कि जंगल में जीव रहेंगे तो हम रहेंगे। आज यह समझने की बहुत जरूरत है कि जंगल का जीव जीते-जी ही नहीं बल्कि मरने के बाद प्रकृति को संतुलित करने में अपना योगदान देता है। एक शोध के मुताबिक मरने के बाद जंगल में मृत जीव कई कीड़े-मकौड़ों का भोजन तो बनता ही है साथ ही आस-पास के पेड़ पौधों की प्रजनन शक्ति को बढ़ाता है।
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