पंचायतें भंग, चुनावों के ऐलान में देरी शराब कारोबारी खुश

punjabkesari.in Tuesday, Sep 18, 2018 - 12:46 PM (IST)

सुल्तानपुर लोधी (धीर): पंचायतों की ओर से शराब के ठेके न खोलने के बारे में पास किए प्रस्ताव का इस वर्ष 2019-20 में नहीं प्रभाव होगा। क्योंकि पंजाब में समूह ग्राम पंचायतें भंग हो चुकी हैं व इन दिनों पंचायत समिति व जिला परिषद की चुनावों संबंधी तैयारियां पूरे जोर पर चल रही हैं। चुनाव कमीशन की हिदायतों के अनुसार जिला परिषद व ब्लाक समिति के चुनाव 19 सितम्बर को हो रहे हैं परंतु अभी तक गांव की पंचायत चुनावों के बारे में न तो सरकार और न ही चुनाव कमीशन ने कोई ऐलान किया है। पंचायतों के चुनाव ब्लाक समिति व जिला परिषद के चुनाव के उपरांत अक्तूबर या नवम्बर में होने की सम्भावना है। पंचायत भंग होने के कारण गांवों में शराब के ठेके बंद करवाने के लिए प्रस्ताव नहीं डाल पाएंगे। नियमों के अनुसार ठेके बंद करवाने के लिए पंचायती प्रस्ताव 30 सितम्बर तक आबकारी विभाग को देने होते हैं। ग्राम पंचायतों के अब प्रबंधक लगे हुए हैं, जिनको सरकार ने केवल विकास कार्य करवाने के ही अधिकार दिए हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार पंचायती राज एक्ट 1994 की धारा 40 (1) के तहत कोई भी पंचायत अपने गांव में शराब के ठेके न खोले जाने का फैसला ले सकती है। पंचायती प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत पास होना जरूरी है और गांव में पिछले 2 वर्षों से कोई आबकारी जुर्म नहीं होना चाहिए।  

ठेके बंद होने के कारण माली खजाने को पहुंचती है ठेस 
अब जब पंचायतें भंग हैं, तो यह प्रस्ताव नहीं डाला जाएगा, जिसके कारण अगले वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान शराब के ठेकों के बंद होने की उम्मीद बहुत कम है। ठेके बंद होने से पंजाब की वित्तीय हालत को भी नुक्सान पहुंचता है, जिसका फायदा इस बार पंजाब सरकार को मिलेगा। यदि गत वर्ष पर नजर दौड़ाई जाए तो पता लगता है कि वर्ष 2009-10 से वर्ष 2017-18 तक पंजाब भर में 908 पंचायतियों ने सरकार के पास पंचायतों के पास भेजे गए थे। इनमें से 518 पंचायती प्रस्ताव प्रवान हुए हैं, जिसका मतलब है कि इन गांवों में ठेके बंद हुए हैं। 

ठेके बंद होने के कारण बिकती है महंगे दाम पर शराब 
पंचायतों की ओर से प्रस्ताव पास करने के कारण गांवों में ठेके बंद करवाने का तो कह दिया जाता है परंतु उस गांव में शराब की तस्करी बढ़ जाती है। शराब के ठेकेदार के अनुसार पाबंदी वाली वस्तु बंद नहीं होती, बल्कि अब महंगी बिकती है, जिसका नुक्सान सीधे सरकार को झेलना पड़ता है। 
 

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