99 साल बाद भी जलियांवाला बाग के शहीदों को शहीद का दर्जा नहीं

punjabkesari.in Friday, Apr 13, 2018 - 12:17 PM (IST)

जालंधर (नरेश): 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन जलियांवाला बाग में जनरल डायर की गोली का शिकार हुए 379 भारतीयों के परिवार इस गोलीकांड के 99 साल बीत जाने के बाद भी इन मृतकों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिए जाने के लिए अपनी ही सरकार के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। इस मकसद से स्थापित की गई जलियांवाला बाग शहीद परिवार समिति के प्रधान महेश बहल व उनके साथी अंग्रेजों की तरफ से चलाई गई गोली में शहीद हुए लोगों को उनका बनता सम्मान दिलवाने के लिए सरकार को कई बार लिख चुके हैं, पर अभी तक सरकार ने इन परिवारों को शहीदों के परिवारों का दर्जा नहीं दिया है।

क्यों और कैसे हुआ जलियांवाला बाग कांड
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों की तरफ से अंग्रेजी फौज में शामिल होकर की गई कुर्बानियों के बाद भारत में सियासी तौर पर अंग्रेजों से आजादी हासिल करने की मांग ने और जोर पकड़ लिया। इस दौरान अंग्रेजों ने भारतीयों की आवाज दबाने के लिए रोलर एक्ट नाम का काला कानून लागू कर दिया। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुकद्दमा दर्ज किए गिरफ्तार करने का प्रावधान था। अंग्रेजों के इस काले कानून के खिलाफ भारत भर में प्रदर्शन शुरू हो गए और भारतीयों ने अपने काम-धंधे बंद करके इस कानून का विरोध शुरू कर दिया। इस दौरान 9 अप्रैल, 1919 को रामनवमी के उपलक्ष्य में निकाली गई शोभायात्रा में हिंदू समुदाय के अलावा सारे समुदायों ने शामिल होकर अंग्रेजों के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया।

अमृतसर के डिप्टी कमिश्रर इरविन ने अंग्रेजी हुकूमत को जमीन पर अंग्रेजों के खिलाफ उबल रहे गुस्से के बारे में जागरूक करवाया और उसी समय भारतीयों की अगुवाई कर रहे सैफुद्दीन किचलू व सत्यपाल जैसे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इन दोनों नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए और इस दौरान पुलिस के साथ हुई झड़प में 20 लोगों की मौत हो गई। इस दौरान 5 पुलिस वाले भी मारे गए और कई लोग जख्मी हुए। घटना के अगले ही दिन ङ्क्षहदू सभा स्कूल में भारतीयों ने एक बैठक करके 13 अप्रैल, 1919 वाले दिन जलियांवाला बाग में इकट्ठे होकर अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने का कार्यक्रम तय किया। बैसाखी वाले दिन जब हजारों निहत्थे लोग जलियांवाला बाग में जमा थे तो उसी समय जनरल डायर ने बिना चेतावनी दिए लोगों पर गोली चला दी। इस गोलीकांड में अंग्रेजी हुकूमतों के आंकड़ों के मुताबिक 379 लोगों की मौत हुई और 1200 लोग जख्मी हुए। हालांकि इंटरनैशनल कांग्रेस के आंकड़ों के मुताबिक मृतकों की गिनती 1000 के करीब थी। इस गोलीकांड के बाद ही देश की आजादी के लिए चल रही जंग में तेजी आई और गोलीकांड के शहीदों की शहादत ने देश की आजादी में अहम योगदान दिया। 


हम सरकार की तरफ से स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाले आॢथक लाभ की उम्मीद नहीं कर रहे लेकिन देश के लोगों को यह जानकारी जरूर होनी चाहिए कि जिन लोगों ने देश की आजादी की खातिर लड़ी गई जंग में अपने प्राण न्यौछावर करके सहयोग दिया उनके पारिवारिक सदस्य आज भी जिंदा हैं और इन परिवारों की पहचान शहीदों के वारिसों के तौर पर की जानी चाहिए। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते सरकार ने कई स्वतंत्रता सेनानियों को शहीद का दर्जा दिया था, इसी प्रकार जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों को भी शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। इसके अलावा यू.के. की सरकार को भी जलियांवाला बाग गोलीकांड के लिए माफी मांगनी चाहिए। 
 -महेश बहल, प्रधान जलियांवाला बाग  

 

शहीद परिवार समितिजलियांवाला बाग के बारे में जानकारी 

  • यह बाग फतेहगढ़ साहिब के गांव जल्लां के निवासी हिम्मत सिंह के नाम पर था।
  • 1919 में 6.5 एकड़ बाग को अधिगृहीत करने के लिए प्रस्ताव पास किया गया।
  • बाग के निर्माण के लिए 5,60,472 रुपए का फंड इकट्ठा किया गया।
  • अगस्त, 1920 में इस बाग को अधिगृहीत किया गया।
  • 1 मई, 1951 को जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की गई।
  • जलियांवाला बाग का डिजाइन अमरीकी डिजाइनर बेंजामिन पोल्क ने तैयार किया।
  • 13 अप्रैल, 1961 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इस बाग का उद्घाटन किया।


जलियांवाला बाग नरसंहार

  • अंग्रेज हुकूमत के मुताबिक मृतकों की संख्या-379
  • इंटरनैशनल कांग्रेस के मुताबिक मृतकों की संख्या-करीब 1000
  • जख्मियों की गिनती-करीब 1200
     

Naresh Kumar