बागी विधायकों के कारण जनता के दिलों से उतरी‘AAP’, लोकसभा चुनावों में खानी पड़ेगी मात

punjabkesari.in Sunday, Feb 24, 2019 - 10:02 AM (IST)

जालंधर(बुलंद):आम आदमी पार्टी (आप) को साल-2014 में जिस प्रकार से पंजाब के लोगों ने सिर-आंखों पर बिठाकर देश भर में विफल होने के बावजूद पंजाब से 4 सांसद दिए थे, उसे पार्टी की हाईकमान संभाल नहीं सकी।सियासी सूत्रों की मानें तो इस बार के लोकसभा चुनावों में ‘आप’ की झोली में पंजाब से एक सीट भी पड़ जाए तो गनीमत होगी। 

पंजाब विधानसभा चुनावों में डाऊन हुआ आप का ग्राफ

जानकार बताते हैं कि अपने 4 सांसदों की नाराजगी के बाद जिस प्रकार पंजाब विधानसभा चुनावों में ‘आप’ का ग्राफ डाऊन हुआ था, उससे भी पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया और अपने विधायकों की नाराजगी भी मोल ली। यहां तक कि विधानसभा में बैठे पार्टी के 3 विधायकों ने इस्तीफे दिए और आधा दर्जन के करीब ‘आप’ में होकर भी पार्टी के नहीं रहे।ऐसे में पार्टी के लिए लोकसभा चुनावों में जनता के बीच जाकर उनसे वोट मांगना बहुत कठिन हो गया है। निष्कर्ष निकलता है कि खैहरा, फूलका और मा. बलदेव सिंह तथा कुछ अन्य विधायकों के कारण ‘आप’ जनता के दिलों से उतर गई है।

बागी सांसदों और विधायकों ने बिगाड़ी गेम
आप पार्टी के सूत्रों की मानें तो पार्टी की सारी गेम पार्टी के ही बागी सांसदों और विधायकों ने बिगाड़ दी है। सांसद धर्मवीर गांधी व हरिंद्र सिंह खालसा सीधे तौर पर पार्टी से मुंह फेर चुके हैं। ऐसे ही पार्टी के 20 विधायकों में से आधा दर्जन से अधिक विधायक भी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। 3 विधायकों सुखपाल खैहरा, एच.एस. फूलका और मा. बलदेव सिंह ने तो पार्टी से इस्तीफे ही दे दिए हैं और अन्य जो विधायक पार्टी के नाम पर विधानसभा में बैठे हैं, उनमें से कई अंदरखाते खैहरा की पंजाबी एकता पार्टी को समर्थन दे चुके हैं और कई अंदरखाते अन्य पाॢटयों के साथ वफादारी साबित करने में लगे हैं ताकि उनके अपने काम कहीं रुक न जाएं। ऐसे में जिन हलकों में लोगों ने ‘आप’ के  विधायकों को जिताया था, वहां आप पार्टी के प्रति नाराजगी बढ़ी हुई है। लोग साफ कहते सुने जा सकते हैं कि जिन उम्मीदों को ध्यान में रखकर आप पार्टी के उम्मीदवारों को जिताया गया था, वह उन उम्मीदों पर पूरे नहीं उतरे। ऐसे में आगामी चुनावों में लोग फिर से किसी न किसी रिवायती पार्टी की ओर मूव करने का मन बनाकर बैठे हैं।

एन.आर.आइज ने भी खींचा हाथ, फंड के पड़े लाले
उधर, पंजाब में लोकसभा चुनावों व विधानसभा चुनावों के दौरान आप पार्टी को दुनिया के विभिन्न देशों में बैठे पंजाबी एन.आर.आइज ने करोड़ों डॉलर पार्टी फंड के रूप में भेजे थे पर जिस प्रकार आप पार्टी के हाईकमान के नेताओं ने पंजाबियों का मजाक बनाया और उन्हें सोने के अंडे देने वाली मुर्गी मात्र समझा, इससे पंजाबी एन.आर.आई. भाईचारे में भारी नाराजगी पाई जा रही है। आप्रवासी पंजाबी भाईचारे के सूत्रों की मानें तो आगामी चुनावों में एन.आर.आइज की ओर से कोई फंड न देने का फैसला लिया गया है। ऐसे में पार्टी के लिए पंजाब में लोगों से वोट लेना ही कठिन नहीं होगा बल्कि चुनावों के लिए पैसा इक_ा करना भी बेहद कठिन होगा।

केजरीवाल की पंजाब के प्रति उदासीनता से पार्टी वालंटियर दुखी
‘आप’ की जमीनी लीडरशिप की मानें तो पिछले कुछ वर्षों में पार्टी के साथ दिल से जुड़े हजारों वालंटियर पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं। पार्टी को 13 लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवार तो मिल जाएंगे पर उन उम्मीदवारों के लिए वर्क करने वाले वालंटियर नहीं मिलेंगे। पार्टी सूत्रों की मानें तो पंजाब का पार्टी वालंटियर केजरीवाल से बेहद नाराज है। उनका मानना है कि केजरीवाल ने 2017 चुनावों के बाद पंजाब की ओर रुख ही नहीं किया। न तो पंजाब के नेताओं से और न ही वालंटियरों से उनकी समस्याएं व जरूरतें पूछीं। पार्टी जानकारों की मानें तो केजरीवाल दिल्ली के सी.एम. हैं और वह चाहते तो पंजाब में एक बड़ी सियासी पार्टी के तौर पर आप पार्टी को खड़ा कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।पंजाब के प्रति उनका उदासीन रवैया किसी से छिपा नहीं है। यही कारण है कि पार्टी के अनेकों बड़े चेहरे या तो दूसरी पाॢटयों में जा मिले या अपने घरों में बैठ गए हैं। देखना होगा कि इतने विरोधी हालात के बीच आप पार्टी कैसे पंजाब में लोकसभा चुनाव लड़ती है।

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