सर्राफा गली में लगी भीषण आग में उजड़े 4 परिवारों का दर्दःघर नहीं जला, खुशियों को लगी ‘आग’

punjabkesari.in Friday, May 25, 2018 - 07:50 AM (IST)

अमृतसर (स.ह., नवदीप): घर की आग तो बुझ गई लेकिन ‘पेट’ की आग कैसे बुझे। कोई रिश्तेदारों के घर में गुजारा कर रहे हैं तो कोई ‘मंदिर’ में पनाह लेकर ‘गुरुद्वारे’ से लंगर लाकर दो जून पेट भर रहा है। 3 घरों में रह रहे 4 परिवारों से मिलकर यही लगता है कि इनका घर नहीं ‘जला’ जैसे खुशियों को ‘आग’ लगी हो। 8 मई की रात करीब साढ़े 8 बजे अचानक लगी आग सुबह 3 बजे तक धधकती रही। तंग गलियां जहां फायरब्रिगेड की राह मुश्किल कर दी तो वहीं सराफा गली ‘गुरु का महल’ से बचाव के लिए मदद में गुरु की ‘फौज’ उतर पड़ी।

जहां लाखों का सामान ‘जल’ गया वहीं एक चिता भी जली, किराए पर रह रही ‘भूमि’ 29 वर्ष की। सुबह उसका ‘रोका’ (सगाई) थी। सारा सामान जहां आग ने खाक बना दिया, वहीं ‘भूमि’ मां को बचाने के बाद संतुलन खोते ही चौथी मंजिल से जमीन पर आ गिरी और मौके पर ही मौत हो गई। इन 4 परिवारों की मदद के लिए शिक्षा मंत्री ओम प्रकाश सोनी ने 2-2 लाख 3 परिवारों को और 3 लाख ‘भूमि’ के परिजनों को देने का वादा किया है। फिलहाल इन परिवारों को ‘मदद’ की जरूरत है।

पीड़ित परिवारों को अब ‘प्रार्थना’ पर विश्वास है, हाथ जोड़े संजीव कुमार समाज पर ‘कटाक्ष’ के साथ व्यथा यूं कहते हैं कि भगवान हमें भूखे नहीं मरने देगा क्योंकि गुरु नगरी में ऐसे तमाम दानी सज्जन हैं जो लाखों रुपए लंगर व जागरण पर खर्च करते हैं। शायद हमारी व्यथा उन तक पहुंच और मदद के लिए हाथ आगे आएं।

मां बेबी रोते हुए बोली, कैसे उठेगी बेटी की डोली
करीब 100 साल पुराना 55 गज का बना 4 मंजिला घर में सारा काम लकडिय़ों का था। आग भी इसी घर से लगी थी। घर की मालकिन बेबी (40) बहन के घर रह रही है। बेटी संजना को देखते उसके आंसू थमने का नाम नहीं लेते, कहती है कि कैसे उठेगी उसकी डोली। एक-एक रुपया जो जोड़ा था, वो सब जल गया, पेट की आग कैसे बुझेगी। हमारा घर नहीं हमारे अरमान जले हैं। 

बेटी के हाथ पीले करने के लिए जेब खाली
संजीव कुमार (50) सोने के आभूषण बनाते हैं। बेटी को ससुराल विदा करने के लिए अपने हाथों से खूबसूरत डिजाइन वाले आभूषण बनाए थे, आग ने उनकी सारी ख्वाहिशों को जला दिया। पत्नी अंजू (45), बेटी आंचल (22), बेटा साहिल (20) व राहुल (18)  सभी अपने रिश्तेदार के घर एक कमरे में रह रहे हैं। जेब खाली है, बेटी के हाथ पीले करने की ङ्क्षचता चेहरे से ‘साफ’ होती है। कहते हैं कि मेरा तो ‘व्यापार’ भी गया और खुशियां भी। कैसे चलेगा परिवार, कौन देगा सहारा। संजीव जले हुए 45 गज के मकान को देख कर कहते हैं कि हमारे घर नहीं हमारी ‘किस्मत’ को आग लगी है। जो ऊपर वाले को मंजूर, उसने उजाड़ा है, वही बसाएगा। 

Anjna