सदियों का इतिहास संजोए हुए है बाबा बघेल सिंह का समाधि स्थल

punjabkesari.in Monday, Feb 20, 2017 - 12:39 PM (IST)

होशियारपुर (अमरेन्द्र): होशियारपुर-दसूहा मार्ग पर स्थित कस्बा हरियाना को इस बात का आज भी फख्र है कि करोड़सिंघिया मिसल के महान जरनैल बाबा बघेल सिंह न सिर्फ यहां रुके थे बल्कि सन् 1802 में अपनी अंतिम सांस भी यहीं पर ली थी। हरियाना कस्बे के कल्लर खालसा सी.सै. स्कूल परिसर में बाबा बघेल सिंह व उनकी पत्नी का समाधि स्थल आज भी करोड़ सिंघिया मिसल के महान जरनैल बाबा बघेल सिंह की वीरगाथा की अनगिनत गाथाएं समेटे हुए है। हैरानी वाली बात है कि आज की बहुसंख्यक युवा पीढ़ी को अपनी इस गौरवशाली अनमोल धरोहर के संबंध में ज्यादा जानकारी तक नहीं है।

पंजगढिय़ा मिसल के सरदार थे बाबा बघेल सिंह

गौरतलब है कि बाबा बघेल सिंह का जन्म अमृतसर जिले के गांव झब्बल में 1730 में हुआ था। महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल से पहले पंजाब में 12 सिख मिसलें आपस में संघर्षरत थीं। इन्हीं में से एक करोड़सिंघिया मिसल की नींव करोड़ सिंह ने रखी थी। करोड़ सिंह का गांव पंजगढिय़ा था इसलिए सिख इतिहास में इस मिसल को पंजगढिय़ा मिसल के नाम से भी जाना जाता है। बाबा बघेल सिंह इस मिसल के प्रसिद्ध जरनैल थे। बाबा बघेल सिंह ने अपने अभूतपूर्व युद्ध कौशल व वीरता के कारण कुछ ही समय में भुंगा, नवांशहर व रुड़कां को जीतकर अपनी मिसल के अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लिया था। इसके बाद दरिया मरकंडा व यमुना नदी के बीच (वर्तमान हरियाणा प्रदेश) के बहुत से इलाके भी इस मिसल के अधीन आते ही बाबा बघेल सिंह ने करनाल व जगाधरी के बीच वलौंधी को अपनी राजधानी बना लिया था।

करोड़सिंघिया मिसल में थे 12 हजार घुड़सवार सैनिक

सिख इतिहास के जानकारों के अनुसार बाबा बघेल सिंह की सेना में उस समय 12 हजार से भी अधिक घुड़सवार सैनिक शामिल थे। साल 1782 में सरहिन्द के गवर्नर जैन खां की मृत्यु के बाद बाबा बघेल सिंह की सेना ने सतलुज नदी के उत्तर की दिशा में बढऩा शुरू कर तो दिया पर उनकी नजर दिल्ली सल्तनत पर टिकी हुई थी। यही नहीं वर्तमान मुजफ्फरनगर के समीप दिल्ली के तत्कालीन सुलतान शाह आलम को पराजित करने के बाद 11 मार्च 1783 में बाबा बघेल सिंह ने अपनी फौज सहित दिल्ली के लाल किले पर केसरिया झंडा फहरा दिया था। 

अपने दिए वचन के पक्के थे बाबा बघेल सिंह

हरियाना स्थित बाबा बघेल सिंह के समाधि स्थल पर वर्णित कहानी के अनुसार दिल्ली प्रवास के दौरान एक दिन सुल्तान शाह आलम की बेगम समरु बेगम ने बाबा बघेल सिंह के डेर पर पहुंच कर अपने दुपट्टे से उन्हें राखी बांध दी। इस पर बाबा बघेल सिंह ने समरु बेगम के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि सुल्तान मुगलों के द्वारा नष्ट किए गए दिल्ली के प्राचीन गुरुद्वारों का नए सिरे से जीर्णोद्धार करवा देगा तो वह अपने सैनिकों के साथ पंजाब लौट जाएगा। 

समाधि स्थल के साथ ही बना है गुरुद्वारा

गुरुद्वारे का जीर्णोद्धार होते ही बाबा बघेल सिंह ने होशियारपुर के हरियाना कस्बे में डेरा डाल दिया। सन् 1802 में बाबा बघेल सिंह की मौत के पश्चात मिसल का नया जरनैल जोध सिंह को बना दिया गया। बाद में इस मिसल के कमजोर हो जाने के दौरान ही महाराज रणजीत सिंह की सेना ने नवांशहर व रुड़काखास को जीत हरियाना में डेरा डाल दिया। बाद में बघेल सिंह की पत्नी की मौत भी हरियाना में हुई तो उनकी भी समाधि बाबा बघेल सिंह की समाधि के साथ ही बना दी गई। बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने समाधि स्थल के साथ ही गुरुद्वारा का भी निर्माण करवा दिया जहां आज भी श्रद्धालु पहुंच कर बाबा बघेल सिंह की वीरगाथा को जान गौरवान्वित महसूस करते हैं।

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