बेअदबी कांड रिपोर्ट से अकाली दल की पंथक राजनीति को झटका

punjabkesari.in Thursday, Sep 06, 2018 - 11:01 AM (IST)

जालंधर (रविंदर): राज्य में हमेशा पंथक राजनीति कर खुद को पंथ की सबसे सिरमौर पार्टी कहलाने वाली अकाली दल आजकल पूरी तरह से बैकफुट पर है। चुनावों में हर बार 1984 दंगों का मामला उठाने वाला शिरोमणि अकाली दल अब खुद ही सिखों की राजनीति में घिरता नजर आ रहा है।

बेअदबी कांड की रिपोर्ट के बाद अकाली दल की प्रदेश में हालत बेहद पतली हो गई है। जिस तरह से कांग्रेस व आम आदमी पार्टी दोनों ने अकाली दल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, से आने वाले दिनों में अकाली दल को दोबारा प्रदेश में पैर जमाने में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसी महीने होने जा रहे पंचायत चुनावों में इसका अकाली दल की राजनीति पर खासा असर पडऩे की संभावना है। पंचायत चुनावों में अपना वजूद बचाना अकाली दल के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। पंजाब की अधिकांश पंचायतों, जिला परिषदों पर पिछले एक दशक से तकरीबन अकाली दल का ही कब्जा रहा है, क्योंकि अकाली दल हमेशा ग्रामीण वोट बैंक पर डिपैंड रहा है तो उसे इस बार भी पंचायत व जिला परिषद के चुनावों में बेहद उम्मीदें थीं।

दूसरी तरफ मौजूदा कांग्रेस सरकार की परफॉर्मैंस भी सत्ता में आने के बाद बेहद खराब रही है। कांग्रेस सरकार जनता से किए एक भी वायदे को पूरा नहीं कर पाई है। प्रदेश का विकास पूरी तरह पटरी से उतर चुका है और नशे के मुद्दे पर अकाली दल को घेरने वाली कांग्रेस अब खुद इस मुद्दे पर उलझ कर रह गई है। ऐसे में अकाली दल को पंचायत व जिला परिषद चुनावों में अपनी जीत की अच्छी संभावना नजर आ रही थी, मगर विधानसभा सैशन में जस्टिस रणजीत सिंह की बेअदबी मामले की रिपोर्ट रखने के बाद अकाली दल की राजनीति को तगड़ा झटका लगा है।

एक तरफ कांग्रेस प्रदेश भर में अकाली दल के खिलाफ यह प्रचार करने में लगा है कि निहत्थे सिखों पर गोली अकाली सरकार के इशारे पर ही चलाई गई थी तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के नेता एच.एस. फूलका ने भी साफ कह दिया है कि अगर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सैनी के खिलाफ इस मामले में केस दर्ज नहीं किया गया तो वह अपना इस्तीफा सौंप देंगे। इसी बीच अकाली दल के नेता भी अंदरखाते पार्टी के विरोध में खड़े नजर आ रहे हैं। पूर्व मंत्री मलकीत सिंह बीरमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं और आने वाले दिनों में यह सिलसिला और तेजी से देखने को मिल सकता है। ऐसे में खुद को पंथक पार्टी कहलाने वाली अकाली दल के लिए आने वाले दिन किसी चुनौती से कम नहीं होंगे। 

लोकसभा चुनाव की परफॉर्मैंस पर भी पड़ेगा बुरा असर  : 2019 लोकसभा चुनाव में भी एक साल से कम का वक्त रह गया है। कांग्रेस सरकार की पिछले डेढ़ साल की घटिया परफॉर्मैंस के बल पर अकाली दल को उम्मीद थी कि 2019 में वह लोकसभा की काफी सीटें जीतकर कांग्रेस को झटका दे सकती है, मगर बेअदबी कांड रिपोर्ट ने अकाली दल की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। 

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