शादी के 3 महीने बाद ही ममता ने संभाल ली थी आशु का सियासी करियर संवारने की जिम्मेदारी

punjabkesari.in Saturday, Apr 21, 2018 - 02:53 PM (IST)

लुधियाना(हितेश): आम तौर पर कहा जाता है कि किसी कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, यह बात मंत्री बनने जा रहे भारत भूषण आशु की पत्नी ममता पर पूरी तरह फिट बैठती है जिन्होंने शादी के 3 महीने बाद ही पति का सियासी कैरियर संवारने की जिम्मेदारी संभाल ली थी।फिल्लौर से संबंध रखने वाली ममता अपनी 6 बहनों में से सबसे बड़ी हैं और उनके परिवार की कोई सियासी बैक ग्राऊंड नहीं है। फिर भी 1996 में आशु से शादी के 3 महीने बाद ही उनको जिंदगी में सियासी फील्ड का नया अनुभव हुआ। जब आशु के पहली पार्षद जीतने के बाद घर पर आने वाले लोगों को अटैंड करने की जिम्मेदारी ममता को मिल गई।
 

शानदार जीत पर पति-पत्नी दोनों के पार्षद बनने का बना रिकार्ड
यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर टूटा ही नहीं, क्योंकि लगातार दो बार एक ही एरिया से जीते तो तीसरी बार उनको वार्ड बदलकर दूसरी जगह जाकर चुनाव लडऩा पड़ा। इस दौर में पुराने लेडीज वार्ड को ममता को मैदान में उतारा गया, जिनको शानदार जीत भी मिली और पति-पत्नी दोनों के पार्षद बनने का रिकार्ड बना। अब ममता लगातार तीसरी बार पार्षद हैं और लगातार दूसरी बार विधायक बने अपने पति की गैर मौजूदगी में घर व आफिस का काम संभाल रही हैं। यहां तक कि आशु के हिस्से के कई समारोहों में भी वो ही हिस्सा लेती हैं। अगर बात सियासत के अलावा परिवार के प्रति बनती जिम्मेदारी की करें तो घर की सारी खरीदारी से लेकर किचन में भी ममता पूरा समय देती हैं। आशु दंपति के एक बेटा सौरव व बेटी सुरभि है। जिनको दोनों पति-पत्नी के पार्षद जीतने पर पूरा समय न दे पाने के मद्देनजर पढऩे के लिए मेयो कालेज अजमेर में भेज दिया गया था। जो 10 साल में छुट्टियों के दौरान ही घर आते हैं और उनको लाने-छोडऩे की जिम्मेदारी भी ममता के ही हिस्से आती है। अब आशु के मंत्री बनने के बाद उनके ज्यादा समय चंडीगढ़ या दूसरे शहरों में रहने दौरान पबिलक के बीच रहने के लिए ममता को और समय निकालना पड़ेगा। 


आशु ने सादगी के साथ तय किया डेयरी बिजनैस से मंत्री बनने तक का सफर
आशु का पुश्तैनी बिजनैस डेयरी फार्म का है और समाज सेवा के अलावा कांग्रेस के साथ जुड़े रहे पिता पंडित नारायण दास की मौत के बाद सियासत की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। जब आशु 3 बार पार्षद रहे तो डेयरी के काम पर चक्कर लगाते रहे और विधायक बनने के बाद पूरी जिम्मेदारी अपने छोटे भाई को दे दी। आशु को सादगी व मिलनसार स्वभाव के लिए जाना जाता है, जिसकी बदौलत वह लगातार दूसरी बार विधायक जीतकर मंत्री बनने जा रहे हैं। 

पिता के मंत्री बनने को नई चुनौती मानता है बेटा सौरव
आशु का बेटा सौरव मेयो कालेज अजमेर में पढऩे के बाद ग्रैजुएशन के लिए क्राइस्ट बेंगलोर चला गया था और अब नीति आयोग दिल्ली में इंटरनशिप कर रहा है। जब आशु को मंत्री बनाने का ऐलान हुआ तो वो घर ही आया हुआ था। उसके मुताबिक पिता के मंत्री बनने की खबर मिलते ही उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सौरव का कहना है कि पिता को मिली नई जिम्मेदारी को वो चुनौती के रूप में मानते हैं, क्योंकि मेरे कंधों पर भी पिता का नाम मेंटेंन रखने की जिम्मेदारी बढ़ गई है।  

 फूड सप्लाई विभाग मिलने की रही चर्चा
आशु को कौन सा मंत्रालय मिलेगा, इस बारे में फैसला कैप्टन ने लेना है और यह बात पूरी तरह गुप्त रखी जा रही है। लेकिन इससे पहले आशु के मंत्रालय को लेकर अटकलों का बाजार पूरी तरह गर्म रहा। जिसमें फूड सप्लाई विभाग मिलने की चर्चा रही। हालांकि इस बारे में औपचारिक ऐलान शपथ ग्रहण समारोह के बाद होगा।


 

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