मॉल्स से निकल कर सड़कों पर आने की तैयारी में बड़े रैस्टोरैंट्स, जानें क्यों

punjabkesari.in Monday, Jun 01, 2020 - 01:25 PM (IST)

नई दिल्ली-जालंधर(विशेष): कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाऊन के प्रभाव से कोई भी व्यवसाय अछूता नहीं है। इस कारण आने वाले दिनों में इन व्यवसायों में बड़े स्तर पर बदलाव देखने को मिलेगा। व्यवसायों के लिए अपने कर्मचारियों और इमारत का किराया दे पाना मुश्किल हो रहा है। भले ही सरकार ने मॉल्स खोले जाने की 8 जून से  परमिशन दे दी है मगर करीब दो दशक पहले मुख्य सड़कों से मॉल्स का रुख करने वाले बड़े रैस्टोरैंट अब वहां से निकलने के बारे में सोच रहे हैं और एक बार फिर से मुख्य सड़कों पर शिफ्ट होना चाहते हैं और डाइन-इन रैस्टोरैंट्स भी अपने पुराने ग्राहकों के साथ फोन और सोशल मीडिया के द्वारा संपर्क बना कर आर्डर भुगता रहे हैं तथा आर्डर भुगतान का तरीका भी बदल गया है। 

उल्लेखनीय है कि रैस्टोरैंट्स व्यवसाय से 70 लाख के करीब लोगों का भविष्य जुड़ा हुआ है। मुख्य सड़कों पर लौटने की तैयारी कर रहे बड़े रैस्टोरैंटों में मैकडॉनल्ड, स्पैशियलिटी रैस्टोरैंट, डीगस्टिबस और लाइट बाइट फूड्स तक शामिल हैं। इनकी इस तरह की योजना के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। इन रैस्टोरैंट्स के मालिकों का कहना है कि इसकी पहली वजह यह है कि मुख्य सड़क पर मॉल्स से पहले रैस्टोरैंट खोल सकते हैं। वहीं मॉल्स में संक्रमण का खतरा भी ज्यादा है। दूसरा कारण यह है कि मॉल्स खुल जाने के बाद भी कारोबार के समय पर अंकुश होता है। साथ ही उपभोक्ताओं को डर भी ज्यादा होता है। तीसरी अहम वजह यह है कि सड़क के स्टोरों का किराया मॉल के मुकाबले कहीं कम होता है।

कनॉट प्लाजा रैस्टोरैंट्स लिमिटेड (सी.पी.आर.एल.) ग्रुप, जोकि उत्तर और पूर्वी भारत में 155 मैकडॉनल्ड रैस्टोरैंट्स चलाता है, के चेयरमैन संजीव अग्रवाल ने बात करने पर बताया कि हमने उत्तर और पूर्व में अपने 17 रैस्टोरैंट्स में ड्राइव-थ्रू सुविधा शुरू की है। इसके तहत कस्टमर को उनकी गाड़ी में खाना पहुंचाया जाता है और उन्हें अपने वाहन से उतरना नहीं पड़ता। इंडस्ट्री के एग्जीक्यूटिव कहते हैं कि लॉकडाऊन से पहले के मुकाबले उन्हें रैस्टोरैंट के बिजनैस वॉल्यूम में 30-40 फीसदी की आशा है। मेनलैंड चाइना और ‘ओह! कलकत्ता’ को चलाने वाली स्पैशलिटी रैस्टोरैंट के मैनेजिंग डायरैक्टर अंजन चटर्जी का कहना है कि मुख्य सड़क स्टोर बाहरी कारकों पर निर्भर नहीं है। यहां किराया भी कम होता है। मॉल्स की तरफ से लिया जाने वाला कॉमन एरिया मैंटीनैंस चार्ज भी नहीं वसूला जाता है।  

पहुंच से बाहर हुआ किराया
उद्योग निकाय नैशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एन.आर.ए.आई.) ने मॉल्स के मालिकों को किराया जैसी ङ्क्षचताओं का हल तुरंत करने को लिखा है। एन.आर.ए.आई. के अध्यक्ष और डीगस्टिबस हॉस्पिटैलिटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनुराग कटियार, जो इंडिगो, टोटे और दक्षिण रसोई का संचालन करते हैं, ने कहा, ‘‘हम किसी भी परिचालन उच्च जोखिम वाले स्थान से बाहर निकलेंगे।’’ उन्होंने एक अन्य कारण उच्च मॉल किराए का भी हवाला दिया। लाइट बाइट फूड्स के निदेशक रोहित अग्रवाल, जो पंजाब ग्रिल, स्ट्रीट फूड्स और जंबर चलाते हैं, ने कहा, ‘‘हम सभी मॉल्स में अपनी दुकानों को बंद कर देंगे, जहां किराया पहुंच से बाहर है।’ इसी तरह कैफे दिल्ली हाइट्स के सह-संस्थापक शरद बत्तरा का कहना है कि वह भी इस तरह के कदम पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुख्य सड़कों पर व्यवसाय को संचालित करना आसान है।’’ मॉल्स के मालिकों का विचार है कि एक उद्योग संघ के साथ सामूहिक सौदेबाजी नहीं हो सकती।

इन-हाऊस कैटरिंग सॢवस को तैयार हाई-एंड डाइन रैस्टोरैंट्स 
देशव्यापी लॉकडाऊन से प्रभावित नामी रैस्टोरैंट्स उदाहरण के तौर पर द टेबल, मास्क, नोशी, द बाम्बे कैंटीन और फियो जैसे हाई-एंड डाइन रैस्टोरैंट्स अपने पुराने ग्राहकों को बनाए रखने के लिए उनसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फोन के जरिए संपर्क बना रहे हैं। ये रैस्टोरैंट्स अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए वीडियो कांफ्रैंसिंग के जरिए जहां कुकरी क्लासें दे रहे हैं, वहीं अपने मूल्यवान ग्राहकों से आर्डर मिलने पर 5 किलोमीटर के घेरे में इन-हाऊस कैटरिंग सुविधा को भी तैयार हैं।    

बॉम्बे कैंटीन, ओ’ पेड्रो और बॉम्बे स्वीट शॉप के मालिक और हंगर इंक के सी.ई.ओ. समीर सेठ का कहना है कि परंपरागत रूप से होम डिलीवरी उनके व्यवसाय का एक छोटा-सा हिस्सा थी और हमारी लागत संरचना होम डिलीवरी अनुसार डिजाइन नहीं की गई थी, लेकिन कोविड-19 ने हमें पुनॢवचार के लिए मजबूर कर दिया है। हंगर इंक होम डिलीवरी, गिङ्क्षफ्टग मील्स, ऑनलाइन भोजन और कॉकटेल सीखने की क्लासों के साथ-साथ किट्टी पाॢटयों के लिए कैटरिंग सेवाएं प्रदान कर रहा है।  क्रिसिल रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाऊन शुरू होने के बाद से अब तक रैस्टोरैंट्स का कारोबार 90 प्रतिशत तक गिर गया है और चालू वित्त वर्ष में रैस्टोरैंट्स के कुल रैवेन्यू में 40-50 प्रतिशत तक की गिरावट हो सकती है। 

4 लाख करोड़ रुपए है रैस्टोरैंट इंडस्ट्री की टर्नओवर
नैशनल रैस्टोरैंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार लॉकडाऊन से पहले रैस्टोरैंट इंडस्ट्री का सालाना कारोबार 4 लाख करोड़ रुपए था तथा 70 लाख के करीब कर्मचारियों का भविष्य इसी रोजगार पर निर्भर है। वहीं विश्लेषकों का मानना है कि फूड डिलीवरी कारोबार में 70 प्रतिशत के करीब गिरावट आ गई है और इसके दोबारा पटरी पर आने में काफी समय लग सकता है, क्योंकि नौकरियों में छंटनी और वेतन कटौती के चलते उपभोक्ता बाहरी खर्च से बच रहे हैं। लॉकडाऊन के कारण व्यवसायों पर प्रभाव के चलते हाई-एंड डाइन शृंखलाओं जैसे द टेबल, मस्जिद और हकासन, साथ ही द लीला, रिट्ज-कार्लटन और जेडब्ल्यू मैरियट भी फुल टाइम डिलीवरी चेन में बदलने को मजबूर हो गए हैं। इन रैस्टोरैंट्स का कहना है कि 50 प्रतिशत से अधिक डिलीवरी आर्डर सीधे चैनलों के माध्यम से होते हैं, जबकि बाकी काम सविगी, स्कूट्सी और जोमैटो के माध्यम से चल रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 10 में से 4 रैस्टोरैंट्स इस साल सरकार से कोई मदद नहीं मिलने के कारण बंद हो सकते हैं।   


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Vaneet

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