BJP ने निकाय चुनावों में 60 प्रतिशत से ज्यादा उतारे उम्मीदवार, दलित सीटों पर किया फोकस
punjabkesari.in Tuesday, Feb 09, 2021 - 11:17 AM (IST)
जालंधर (राहुल): 14 फरवरी को पंजाब में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने सबको चौंका दिया है। पंजाब की 8 नगर निगमों व 109 नगर परिषदों में होने वाले चुनावों को आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों का सैमीफाइनल भी माना जा सकता है।
राज्य में होने वाले इन चुनावों में जहां किसान आंदोलन के चलते राजनीतिक परिदृश्य भाजपा बनाम शेष राजनीतिक दल बन रहा है, वहीं कट्टरपंथियों द्वारा भाजपा पर किए जा रहे हमलों से जनता की सहानुभूति भाजपा के साथ होती दिखाई दे रही है। किसान आंदोलन के चलते पंजाब में भाजपा द्वारा ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ के साथ चलाए गए विशेष अभियान से दलित वर्ग में भी भाजपा के प्रति आकर्षण दिख रहा है जिसका परिणाम यह है कि राज्य में भाजपा 60 प्रतिशत से अधिक सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार चुकी है जो अकाली दल बादल से संबंध विच्छेद के चलते सबसे उच्च आंकड़ा है।
पहले अकाली दल से गठबंधन के कारण भाजपा केवल 20 प्रतिशत वार्डों पर ही उम्मीदवार उतारती रही है। अब तक भाजपा द्वारा 8 निगमों तथा ए और बी क्लास की नगर कौंसिल में चुनाव चिन्ह पर चुनाव लडऩे का फैसला किया था। इन निकायों के 1687 वार्डों में से भाजपा 1257 वार्डों में अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार चुकी है।
वर्तमान में स्थिति यह है कि राज्य की 8 नगर निगम, 109 नगर पालिका, परिषद और नगर पंचायत चुनाव के लिए भाजपा के 1003 उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं। पंजाब के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भी 15 में से 6 वार्डों में मुस्लिम उम्मीदवारों का नामांकन करवाया गया था, परंतु अंतिम क्षणों में भारी दबाव के चलते 4 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन वापस लिए हैं।
भाजपा ने दलित सीटों पर काफी फोकस किया
दिल्ली में आंदोलनकारी किसानों से वार्ता के दौरान केंद्र सरकार का नेतृत्व करने वालों में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल मंत्री पियूष गोयल के साथ-साथ केंद्रीय राज्य मंत्री सोम प्रकाश भी शामिल रहते हैं जो पंजाब की सुरक्षित लोकसभा सीट होशियारपुर के सांसद हैं और पंजाब का दलित चेहरा हैं। किसान वार्ताकारों की जिद पंजाब में दलित सम्मान से टकराती भी दिखती है और इसके चलते अगर दलित भाजपा के पाले में एकजुट हों तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। इसके चलते भाजपा ने चुनावों में दलित सीटों पर ज्यादा फोकस किया है।
गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर तिरंगे का अपमान और किसान आंदोलन के चलते पंजाब में शहरी मतदाता आंदोलनकारियों के साथ-साथ इसके समर्थक कांग्रेस व अकाली दल से नाराज दिखाई दे रहे हैं। आंदोलन के नाम पर किस तरह कई महीनों से राज्य में रेल सेवा प्रभावित हुई, रास्ते रोके गए, मोबाइल टावर तोड़े गए, लोगों के कामकाज ठप्प हुए, भाजपाइयों के कार्यक्रमों में व्यावधान डाले गए आदि घटनाएं शहरी मतदाताओं में गुस्सा पैदा कर रही हैं। अगर भाजपा इन मुद्दों को उठाती है तो इन चुनावों में वह वास्तव में चौंका सकती है।
विश्लेषक चाहे अकाली दल-भाजपा के तलाक को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़ के राजनीतिक नुक्सान के रूप में आंक रहे हों परंतु जमीनी वास्तविकता तो यह है कि भाजपा का काडर इससे खुश है क्योंकि गठजोड़ के चलते पंजाब भाजपा की हालत सौतेले भाई से भी बदतर हो चुकी थी।
गठजोड़ के चलते राज्य के बड़े हिस्से में भाजपाई नेताओं को चुनाव लडऩे का अवसर नहीं मिलता था और न ही उनकी सुनवाई होती थी। राजनीतिक हिस्सेदारी के नाम पर भाजपा पंजाब में लोकसभा की 3 और विधानसभा की 23 सीटों पर सिमट गई थी लेकिन अब पंजाब भाजपा के लिए उडऩे को खुला आसमान है। स्वाभाविक है कि स्थानीय निकाय चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर भविष्य में विधानसभा व लोकसभा चुनावों के लिए प्रत्याशियों का भविष्य तय होने वाला है।
अश्वनी शर्मा की आक्रामकता ने फूंकी जान
सियासी गलियारों में भाजपा को पंजाब में खारिज माना जा रहा था। राजनीतिक विश्लेषक और विरोधी दल यह मान बैठे थे कि भाजपा लम्बे समय तक पंजाब में खड़ी नहीं हो पाएगी परंतु भाजपा अध्यक्ष अश्वनी शर्मा ने जिस आक्रामकता से नेतृत्व दिया उससे पार्टी के कैडर का हौसला बढ़ा है। अपने पर हुए हमले के बावजूद वह पंजाब में घूमे, रैलियां कीं, चुनाव चिन्ह पर लडऩे के लिए कार्यकर्ताओं को तैयार किया।
भाजपा डरने वाली नहीं, जनहित में खड़ी होने वाली पार्टी है - मिंटा
भाजपा पंजाब के प्रवक्ता मिंटा कोछड़ ने कहा कि भाजपा डरने वाली नहीं, जनहित में खड़ी होने वाली पार्टी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस किसानों की आड़ लेकर प्रदेश को 1984 के भयानक काले दौर में धकेलने पर तुली हुई है पर पंजाब के लोग आपसी भाईचारा कभी टूटने नहीं देंगे।