किसान आंदोलन के कारण पंजाब में हाशिए पर पहुंची भाजपा!

punjabkesari.in Sunday, Sep 27, 2020 - 10:31 AM (IST)

पठानकोट (शारदा): केन्द्र की मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र से संबंधित अपने 3 आर्डीनैंसों को कानून में बदलने की जो प्रक्रिया अपनाई है उसके बाद उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि पंजाब और हरियाणा में उनकी मैनेजमैंट इतनी बुरी तरह से फेल हो जाएगी कि किसान आंदोलन का मार्ग अपनाएंगे और कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी को एक राजनीतिक सुअवसर मिल जाएगा कि वह केन्द्र सरकार पर हमला बोल सकें। परिस्थितियों को भांपते हुए अकाली दल को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा दिलवाना पड़ा और अकाली दल भी किसानों के हक में पूरी तरह से कूद गया। अत: पंजाब में भाजपा की स्थिति ऐसी बन गई कि वह एकाएक हाशिए पर चली गई क्योंकि 25 वर्षों से वह अकाली गठबंधन के साथ सत्ता में रही है और उसका मुख्य आधार शहरी क्षेत्रों में है।

भाजपा के पास पंजाब में कभी भी कृषि मंत्रालय नहीं रहा और न ही उसका कोई नेता किसानों और कृषि से संबंधित मामलों का माहिर है या ऐसा कद्दावर नेता उनके पास नहीं है जिसकी किसानों में पैठ हो। इस स्थिति में भाजपा पूरी तरह योजनाविहीन है। उसका मुख्य भागीदार अकाली दल जो 94 सीटों पर चुनाव लड़ता था किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी पकड़ रखने वाली पार्टी रही है परंतु कुछ राजनीतिक मुद्दों ने अकाली दल के अस्तित्व को खतरे में डाला हुआ है परंतु अब अकाली दल के अचानक अलग होने से भाजपा के पास एक सुअवसर भी है।

50 प्रतिशत से काफी अधिक आबादी सिखों और दलितों की
पंजाब एक सिख बहुल स्टेट है जहां दलितों और ओ.बी.सी. समुदाय की संख्या भी काफी अधिक है। अगर सीधे-सीधे हिसाब लगाया जाए तो लगभग 50 प्रतिशत से काफी अधिक आबादी सिखों और दलितों की है। पंजाब की राजनीति को समझने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी अपने सम्बोधन में सिखों और दलितों के लिए अपने दिल के द्वार खोलने की बात कही थी परंतु क्या इस पर अमल हो रहा है। अगर मंडल या जिला स्तर पर सिख चेहरों को प्रतिनिधित्व देने की बात हो भी रही है तो यही प्रयास हो रहा है कि कोई शरीफ सा डम्मी टाइप व्यक्ति आगे आए ताकि मौजूदा टीम को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो।

प्रदेश स्तर के लगभग 70 प्रतिशत पदाधिकारी 23 विधानसभाओं से संबंधित
राजनीतिक विश्लेषक इस बात को लेकर हैरान हैं कि भाजपा जैसी समझदार पार्टी किस प्रकार से पंजाब में अकेले चुनाव लडऩे की बात कर रही थी क्योंकि जैसे ही किसान आंदोलन ने गति पकड़ी और अकाली दल से उसका नाता टूटा तो ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों में पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले चेहरे गायब मिले। 

इस स्थिति में यह तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि जो प्रदेश नेतृत्व है उसके 70 प्रतिशत के लगभग पदाधिकारी उन 23 सीटों से संबंधित हैं जहां से भाजपा लम्बे समय से चुनाव लड़ती आ रही है जबकि चाहिए तो यह था कि जिन 94 सीटें जहां पर अकाली दल चुनाव लड़ता है वहां से अधिक से अधिक नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां दी जातीं और धीरे-धीरे उन क्षेत्रों में भी पार्टी एक बड़ा रूप ले लेती। एक तरफ कांग्रेस और दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी जबकि तीसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू, बैंस ब्रदर्स और किसान जत्थेबंदियां इतना जबरदस्त हमला कर रही हैं कि मात्र 23 सीटों पर चुनाव लडऩे वाली भाजपा कहीं भी खड़ी नजर नहीं आ रही। 

12 हजार गांव और किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले मात्र 4 पदाधिकारी
यह तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि शहरी क्षेत्र को अधिक प्रतिनिधित्व प्रदेश स्तर की टीम में मिला हुआ है। 43 में से 32 पदाधिकारी शहरी क्षेत्र से हैं क्योंकि लगभग 70 प्रतिशत पदाधिकारी उन स्थानों से हैं जहां पर पार्टी विधानसभा या लोकसभा के चुनाव लड़ती है। 12 हजार गांव और किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले मात्र 4 पदाधिकारी हैं। आज से कुछ समय पहले तक सैंकड़ों की संख्या में सिख और दलित चेहरे पार्टी में शामिल होने के लिए लालायित थे, अब किसान आंदोलन के बाद कौन आएगा यह तो समय ही बताएगा। मई, 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी को सिख चेहरों और दलितों के लिए अपने दरवाजे खोलने चाहिए थे यदि ऐसा किया होता तो भारी संख्या में भाजपा के नेता इन्हीं किसानों के बीच में होते और उनका पुन: विश्वास जीतने का प्रयास करते।

Tania pathak