BJP की पंजाब में ''एकला चलो'' की नीति 2024 लोकसभा चुनाव का ''लिटमस टैस्ट''

punjabkesari.in Saturday, Aug 05, 2023 - 08:17 PM (IST)

पठानकोट (आदित्य): भाजपा के नए-नवेले प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ (पहले कांग्रेस पार्टी में) के लिए आगामी लोकसभा चुनावों में पार्टी की नैय्या को पार लगाना सियासी माहिरों की पैनी निगाह में विशुद्ध रूप से 'लिटमस टैस्ट' है। अपने पिछले सहयोगी 'शिअद' से विमुख होकर पहली बार 'एकला चलो' की नीति का अनुसरण करते हुए चुनावी ताल ठोक रही भाजपा के लिए जाखड़ के हिंदू चेहरे को कैश करके वोटों का ध्रुवीकरण कर राज्य की हिंदू बहुल सीटों पर कब्ज़ा जमाना निश्चित रूप से फिलहाल तलवार की धार पर चलने के समान है। हालांकि 2024 के सामान्य लोकसभा चुनाव आते-आते सभी पार्टियां एक-दूसरे के साथ किस प्रकार शह-मात का खेल खेलती हैं, यह देखना भी रूचिकर होगा।

राज्य में बेशक भाजपा का मज़बूत संगठन व कार्यकर्ता की काफी अच्छी-खासी तादाद है जो चुनावों में पार्टी की जीत का परचम लहराने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं परंतु जिस प्रकार 2024 का चुनावी रण फतेह करने के लिए यू.पी.ए. का पुराना चोला छोड़ कर कांग्रेसनीत 'इंडिया' एन.डी.ए. को मात देने के लिए पिछले दिनों अस्तित्व में आया है तथा कांग्रेस पार्टी राज्य में सत्तारूढ़ 'आप' के साथ भी भाजपा व अन्य दलों को हराने के लिए हाथ मिला चुकी है। ऐसे में भाजपा के लिए इस सरहदी राज्य की 13 लोकसभा सीटों पर लगी हुई साख की बाज़ी को अपने पक्ष में करना बड़ी चुनौती है।

कांग्रेस के 'आप' के साथ सियासी गठजोड़ के परिणाम तय करेंगे दोनों दलों के भविष्य की राजनीति

चूंकि कहावत है कि राजनीति में किसी को हराने या खुद जीतने के लिए हर राजनीतिक दल बड़े से बड़ा पैंतरा चलने से पीछे नहीं हटता तथा विरोधी भी सत्ता या चुनावी जीत का किला फतेह करने के लिए विकट व विचित्र परिस्थितियों में भी 'जफ्फी' डाल सकते हैं। ऐसा ही तानाबाना देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दम भरने वाली कांग्रेस जिसका पिछले दोनों लोकसभा चुनावों के दौरान सीटों का बड़ा टोटा बना हुआ है तथा अपने दम पर उसके लिए 200 सीटें जीतना भी भारी पड़ रहा है, ने देश की नवोदित पार्टी 'आप' के साथ अपना 'हाथ' मिला लिया है। इस गठजोड़ का दोनों ही दलों को अगले लोकसभा चुनाव में कितना नफा-नुक्सान होता है, इसके परिणाम पर ही दोनों ही दलों की भविष्य की राजनीति का सफर तय हो सकेगा।

कांग्रेस व 'आप' दोनों अपने-अपने हाथों में मान रहे लड्डू हालांकि लोकसभा चुनावों में बेशक दोनों ही उक्त दल साथ आ गए हैं क्योंकि एक ओर यहां राज्य में सत्तारूढ़ 'आप' की साख दांव पर लगी है तथा आम आदमी पार्टी किसी भी सूरत में नहीं चाहेगी कि उसके कोटे (चुनावों तक सहयोगी रहते हैं तो) में आने वाली सीटों पर हार मिले। वहीं कांग्रेस भी चाहेगी कि उसके हिस्से की सीटों पर 'आप' के सहयोग से अगर कुछ सीटें जीत कर आती हैं तो लोकसभा के सदन में उनके सांसदों का कुनबा बढ़ेगा ही। ऐसे में दोनों ही दल उपरोक्त सियासी जोड़ को अपने-अपने दोनों हाथों में लड्डू मान कर चल रहे हैं तथा उनका मानना है कि उनके गठबंधन के आगे राज्य में भाजपा सहित सभी सियासी दलों के जीत के मनसूबे फिलहाल पस्त हो गए हैं तथा कांग्रेस-आप का गठबंधन भाजपा सहित सभी अन्य दलों से अच्छी-खासी चुनावी बढ़त ले चुका है।

'शिअद' कैसे करेगा गोल इसको लेकर बढ़ा झोल

वहीं राज्य की पंथक पार्टी माने जाने वाली 'शिअद' जोकि क्षेत्रीय पार्टी होने के बावजूद पिछले चुनाव के बाद करारी हार मिलने से विधानसभा में विपक्षी दल का रूतबा भी पा नहीं सकी है, हार के बाद से ही फिर से राज्य में अपनी सियासी ज़मीन साधने में जुटी है हालांकि उसके कई शीर्ष नेतृत्व जो पार्टी स्थापना के बाद से ही साथ रहे हैं तथा 'शिअद' की सरकार के समय बड़े पदों पर रहे हैं, भी साथ छोड़ कर अपना अलग मोर्चा बना चुके हैं। ऐसी परिस्थितियों में लोकसभा चुनाव के आगामी बहुकोणीय मुकाबले में कैसे गोल कर सकेगा इसको लेकर भी फिलहाल बढ़ा राजनीतिक झोल बना हुआ है तथा सियासी पंडितों की निगाह भी इस पंथक दल की सियासी सरगर्मियों पर लगी हुई हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में शिअद का वोट बैंक नवोदित पार्टी 'आप' के खाते में ट्रांसफर हो गया था जिसके चलते ही इस पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली थी तथा दिल्ली जैसे केंद्र के बाद एक पूर्ण एवं सरहदी राज्य पर कब्ज़ा जमाने में सफलता मिली थी। अब देखना यह है कि 'आप' के खाते में ट्रांसफर हुआ शिअद का वोट आगामी लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के साथ खड़ा रहता है या फिर शिअद इसे साधने व अपने साथ लाने में सफल रहती है। इसको लेकर भी लाख टके का सवाल सियासी पंडितों के सामने मुंह बाएं खड़ा है। जिसका जवाब फिलहाल दिग्गज से दिग्गज राजनीतिक विश्लेषक देने के लिए पसीना बहा रहे हैं।

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News Editor

Paras Sanotra

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