पंजाब के किसानों को इंसाफ न देने से उजड़ सकती है भाजपा की सियासी खेती

punjabkesari.in Saturday, Dec 19, 2020 - 10:52 AM (IST)

अमृतसर (दीपक):  देश के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब उत्तर भारत के अधिकतर किसान लम्बे समय से तीन काले कानूनों को हटाने की मांग को लेकर खुले आसमान तले कड़ाके की सर्दी में दिल्ली के प्रवेश मार्गों की सड़कों पर संघर्ष जारी रखे हुए है। उधर, जहां केंद्र सरकार कॉरपोरेट घरानों को किसानों के आरोपों का श्रेय देने का अभी तक कोई भी ठोस जवाब इस मुद्दे पर न देकर, किसानों को बातचीत से संतुष्ट करने में पूरी तरह असफल रही है। 

वहीं दूसरी ओर देश के उच्चतम न्यायलय ने एक सांझी कमेटी बनाकर किसानों की मांग का समाधान निकालने का जो आदेश जारी किया है। इस फैसले से केंद्र सरकार की नीयत को शक्ति तो मिली है, पर संघर्ष कर रहे किसान किसी भी तरह तीनों काले कानून वापस करवाने के अतिरिक्त कोई भी उचित समझौता करने को भी तैयार नहीं है। सरकार चाहे तो इस संघर्ष से निजात तो पा सकती है, पर सरकार का यह दावा है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को मजबूत करने के लिए किसानों को लिखित आश्वासन देने की शर्त पर अड़ी होने के कारण इस पर कानून बनाने से संकोच करते हुए किसानों से निजात नहीं हासिल कर पाएगी। 

पंजाब का किसान हो या हरियाणा का आखिरकार उसकी साख तो पुराने सांझे पंजाब से तो जुड़ी हुई है, परन्तु इतिहास इस बात का गवाह है कि इन दोनों प्रदेशों का किसान भले ही वह किसी धर्म यां जाति से जुड़ा हुआ क्यों न हो, वह अपने आखिरी सांस तक किसानों पर करने वाले जुल्मों और अत्याचारों का बदला लेकर मूल्य चुकाना पूरी तरह जानता है। 

जाहिर है कि इस बदला लेने की भावना का रोष सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे किसानों में अब तेजी से न्याय न मिलने के कारण बढ़ता जा रहा है। पर इसका परिणाम पंजाब में फिर आने वाले काले दिनों को भी दोहरा सकता है, क्योंकि पंजाब का अधिकतर किसान सिख धर्म से नाता रखता है। जो कभी भी पीछे हटने वाला नहीं है। सरकारी एजैंसियों ने प्रदर्शनकारी किसानों को आतंकवादी और खालिस्तान कहने के अतिरिक्त इनके धड़ों में फूट डालने की कोशिश तो पूरी की, पर इन आरोपों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा। धर्मों की एकता ने इन आरोपों को नकार दिया है, पर इससे सरकार को कोई फायदा भी नहीं हुआ। हालात से साफ जाहिर होता है कि केंद्र में भाजपा की सरकार में और सरकार को चलाने वाले नेताओं में कोई भी पंजाबी नेता का न होना पंजाब की बदकिस्मती है। स्व. अरुण जेट`ली, सुषमा स्वराज या मदन लाल खुराना जैसे पंजाबी नेताओं में से कोई एक में कैबिनेट में होता तो शायद किसानों को यह दिन देखने न पड़ते। 

वैसे तो कर्जे से तंग आकर पंजाब हरियाणा के अब तक सैकड़ों किसान खुदकुशी तो पहले से ही करते आ रहे हैं, पर किसानों के संघर्ष के लिए प्रदर्शन पर बैठे करीब बीस किसानों की सर्दी के कारण हुई मौत और संत बाबा राम सिंह द्वारा अपने आपको प्रदर्शन करने की जगह पर खुद गोली मारकर खुदकुशी किसानों को न्याय न मिलने के लिए करना। केंद्र की भाजपा सरकार पर कोई दया, दर्द का चिन्ह नजर नहीं आ पाया, जबकि सिख कौम की कुर्बानियों का इतिहास बेमिसाल है और बदला लेने की होड़ सिखों के इतिहास में हमेशा सुर्खियां बनकर सबक तो सिखाती है।

केंद्र में सरकारी उच्च पदों पर सिर्फ गुजरातियों का बोलबाला
केंद्र में सरकारी उच्च पदों पर सिर्फ गुजरातियों का बोलबाला है। यानि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रिजर्व बैंक का मुखी गुजराती होने के अतिरिक्त इस सरकार के आर्थिक अन्नदाता अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी, गौतम अडानी सभी गुजराती तो है, जबकि बैंकों को लूटने वाले ललित मोदी, नीरव मोदी, मुहैल भाई (सभी फरार) भी गुजराती होने के अतिरिक्त उत्तर भारत के किसानों की गुहार सुनने वाले बाकी सभी सत्ताधारी केंद्र सरकार के नेता प्रधानमंत्री, गृहमंत्री की हाजिरी भरने और हां में हां मिलाने वाले इन किसानों की अगुवाही करने में अब तक पूरी तरह से नाकाम रहे हैं, जो इन दो प्रमुख नेताओं के खिलाफ बोलेगा, उसकी छुट्टी होना तय है। लाल कृष्ण अडवानी व मुरली मनोहर जोशी की ताजा उदाहरण इस भाजपा सरकार की हठकर्मी का शिकार भाजपा को दर्पण दिखाती है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Tania pathak

Recommended News

Related News