पार्टी को सत्ता में लाने वाला दोआबा ही सरकार में नगण्य

punjabkesari.in Saturday, Apr 21, 2018 - 01:23 PM (IST)

जालंधर(रविंदर): जिस दोआबा के बल पर हमेशा कांग्रेस सत्ता का सुख भोगती रही है, उसी दोआबा को नजरअंदाज कर कैप्टन ने यहां की राजनीति में नया चलन पैदा कर दिया है। दोआबा में दलित राजनीति की बात करें तो जालंधर के दलित नेताओं की राज्य भर में तूती बोलती थी। इसी दलित वोट बैंक के बल पर कांग्रेस सत्ता में अपने कदम आगे बढ़ाती रही है। मगर जिस तरह से अब दोआबा को प्रदेश की राजनीति से दूर किया जा रहा है, उसके दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं। 

 

जालंधर वह जिला रहा है, जिसके 6-6 मंत्री कैप्टन की पूर्व सरकार में मंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे थे। मगर इस बार जालंधर के हाथ एक भी मंत्री पद नहीं आया है। जालंधर की बात करें तो 2007 में यहां 10 में से केवल एक सीट ही कांग्रेस के हाथ में आई थी और 2012 में 10 से कम कर सीटें 9 कर दी गई थीं और फिर कांग्रेस के हाथ 8 सीटें ही आई थीं। लगातार 2 बार जालंधर के लोगों ने जब कांग्रेस को नजरअंदाज किया तो प्रदेश की सत्ता से भी कांग्रेस को हाथ धोना पड़ा। इस बार दोआबा के लोगों ने खुलकर कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया और दोआबा की 23 में से 15 सीटें जीतने में कांग्रेस सफल रही। 

 

 

वहीं जालंधर की भी 9 में से 5 सीटें कांग्रेस की झोली में गईं। ऐसे में उम्मीद थी कि जालंधर के किसी नेता को मंत्री पद से नवाज कर पार्टी अपना दोआबा का वोट बैंक पक्का करना चाहेगी और 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इसका फायदा ले सकेगी। मगर ऐसा न हो सका, कैप्टन ने न केवल जालंधर को ही पूरी तरह नजरअंदाज किया, बल्कि साथ ही दोआबा के अन्य बड़े नेताओं को भी खुड्डे लाइन लगा दिया। दोआबा में 23 से 8 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोट बैंक पूरी तरह से डोमीनेट करता है और यह रिजर्व 8 सीटें दलित राजनीति का प्रभाव प्रदेश भर में दिखाती है। मगर जिस तरह से जालंधर समेत कपूरथला व नवांशहर के हाथ पूरी तरह से खाली रहे हैं, का खासा असर 2019 के लोकसभा चुनावों पर पडऩा तय है और इसका सीधा फायदा विपक्षी पार्टियों को मिल सकता है। 

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