अब चुनावी सभाओं में कैप्टन यह नहीं कहते हैं कि यह उनकी आखिरी सियासी पारी है
punjabkesari.in Friday, May 10, 2019 - 10:23 AM (IST)
जालंधर। सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिज्ञ किसी भी हद से गुजर जाने में गुरेज नहीं करते हैं। हाल ही में पीएम मोदी का राजीव गांधी को लेकर दिया गया बयान इसका जीवंत उदाहरण है। खैर बात पंजाब की करते हैं लंबे अरसे से हाशिए पर चली गई कांग्रेस 2017 में जब विधानसभा चुनावी अखाड़े में उतरी तो कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने जनता से ये भी वादा किया कि यह उनका आखिरी चुनाव है, इसलिए वोट कांग्रेस को ही दें, और भी बड़े वादे थे कि चार हफ्ते में पंजाब से नशा खत्म कर दूंगा वैगरा-वैगरा। अब सवाल यह है कि चुनावी सभाओं में कैप्टन यह क्यों नहीं कह रहे हैं कि यह उनकी आखिरी सियासी पारी है, इसलिए जनता 13 सीटें कांग्रेस की झोली में डाल दे।
क्या सियासी पारी के बचे हैं 3 ही साल
कैप्टन अमरेंद्र सिंह द्वारा दिए गए इस सार्वजनिक बयान के मुताबिक उनकी सियासी पारी के करीब तीन साल ही बचे हैं। इस बात का जिक्र अब वह लोकसभा की चुनावी जनसभाओं में नहीं कर रहे हैं तो इसका कारण वह स्वयं ही जानते हैं। पंजाब की राजनीति में कैप्टन अपने आप में एक अनूठा व्यक्तित्व हैं जिनका नेतृत्व सूबे के हर समुदाय के लोग पंसद करते हैं। अपने कहे के मुताबिक यदि वह तीन साल बाद राजनीति से सन्यास ले लेते हैं तो फिलहाल कांग्रेस में ऐसा कोई नहीं है, जो विपक्ष को आने वाले चुनाव में अकेले टक्कर दे सके।
ऐसे मिला था अकाल्पनिक बहुमत
यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि पंजाब में नशे का मुद्दा बहुत पुराना है। विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे पर भी कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिला था। बेअदबी की घटनाओं ने भाजपा-अकाली गठबंधन सरकार को पहले से ही बहुत कमजोर कर दिया था। इसके अलावा सरकार के 10 साल के कार्यकाल से भी लोग ऊब चुके थे। जबकि कैप्टन के इस बयान से कि यह मेरा आखिरी चुनाव है, इससे ही कांग्रेस को अकाल्पनिक बहुमत मिला। भले ही बाद में इसका पूरा श्रेय एक परंपरा के तहत राहुल और सोनिया गांधी को ही दे दिया गया।
इंदिरा गांधी ने कहा था "भावुक मूर्ख"
कैप्टन अमरेंद्र एकमात्र ऐसे नेता हैं, सही और गलत में फर्क को समझते हुए कांग्रेस आलाकमान के आगे कभी नहीं झुके। उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में कांग्रेस पार्टी और संसद से इस्तीफा दे दिया था। बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके इस्तीफा देने पर उन्हें "भावुक मूर्ख" कहा था। जबकि ऑपरेशन ब्लूस्टार से आहत सिख समुदाय के लोगों ने कैप्टन अमरेंद्र की भरपूर सराहना की थी। आपरेशन ब्लू स्टार की मुखालफत करने के बाद शहरों के हिंदू उन्हें एक कट्टरपंथी की तरह नहीं लेते। यही वजह है कि पंजाब के किसी अन्य कांग्रेसी नेता की ऐसी साख कभी नहीं बन पाई थी जैसी कि कैप्टन अमरेंद्र की रही है।
जब 6 माह तक सानिया ने नहीं दिया मिलने का समय
2002 में जब कांग्रेस सत्ता में आई तो बतौर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने केंद्र सरकार को विश्वास में लिए बिना ही सतलुज के पानी पर उत्तरी राज्यों के मध्य हुए समझौते को विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर निरस्त कर दिया। कैप्टन की इस दबंगता की पंजाबी आज भी प्रसंशा करते हैं। उनके इस निर्णय में दिल्ली के राजनीतिक गलियारों और मीडिया में हलचल मचा दी थी। कैप्टन ने इस बात का खुलासा खुद किया था कि इससे नाराज होकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें छह महीने तक मिलने का समय तक नहीं दिया था। कैप्टन अमरेंद्र का लोकसभा चुनाव के दौरान सियासत से सन्यास के मुद्दे पर अब वोट नहीं मांगना एक पहेली है। जबिक विधानसभा चुनाव में यह तीर सही निशाने पर लगा था।