‘लोरी’ सुनने की उम्र में सुना रहा ‘भजन’, ढोल की ‘थाप’ के साथ गुजर रहा बचपन

punjabkesari.in Wednesday, Aug 22, 2018 - 12:43 PM (IST)

 अमृतसर (स.ह.): अब साइंस भी मानने लगा है कि कोख में पल रहे शिशु पर ‘रहन-सहन’, ‘खान-पान’ के साथ-साथ ‘आचरण’ का असर पड़ता है। यह भी कहा जाता है कि महाभारत काल में कोख में अभिमन्यु ने रणबेदी पर ‘चक्रव्यूह’ तोडने की कला सीख ली थी, लेकिन आखिरी क्षण में मां सो गई तो अभिमन्यु चक्रव्यूह तोडने में निपुण न हो सके। यह तो हुई ‘युग-युगांतर’ से चली आ रही कथाएं, कहानियां, लेकिन हम बात कर रहे हैं ऐसे बच्चे की जो ‘लोरी’ सुनने की उम्र में खुद ‘भजन’ सुनाता है, ढोल की ‘थाप’ के साथ उसकी सुबह व रात होती है। जिस उम्र में बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं। उस उम्र में यह ‘यूट्यूब’ पर ढोल बजाना सीखता है। ढोल तो 2 साल की उम्र में बजाने लगा था, भजन गाने का सिलसिला 3 साल की उम्र में शुरू हो गया।

जी हां, यह बच्चा है मन्नत। 25 अक्टूबर 2014 को रामबाग (गोल हट्टी चौक) के गली खलासिया वाली में अनुराधा शर्मा की कोख से जन्म लिया। पिता पवन कुमार प्राइवेट जॉब करते हैं।  मां घर में रसोई के साथ-साथ ‘ऑनलाइन’ कपड़ों का व्यापार करती है, दोनों ग्रेजुएट हैं। शादी के 17 साल बाद जन्में ‘मन्नत’ 25 अक्टूबर को 4 साल का हो जाएगा, लेकिन उसकी उम्र मत देखिए, हुनर देखें। जब वह ढोल बजाता है तो सुनने वाले व देखने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उसे खिलौने से नहीं बल्कि ढोल से मोहब्बत है। प्री-नर्सरी में पढ़ता है, एक बार जो पढ़ ले या सुन ले भूलता नहीं। यही वजह है कि बाबा बालक नाथ मंदिर में मां के साथ जब जाता है तो वहां भेंटें व भजन बोलता है। 1 साल की उम्र से ही वह ढोल मांगने लगा था। 

मन्नत अपनी बड़ी बहन वंशिका का हर इशारा समझ लेता है। इशारों में घंटों तक बातें करता है। वंशिका ‘स्पेशल स्कूल’ डी.ए.वी रेडक्रास में प्लस टू में पढ़ती है। मन्नत उसे रोज भजन सुनाता है, लेकिन वह अभी नहीं समझ पाता कि दीदी भजन सुन क्यों नहीं पाती, बोल क्यों नहीं पाती। कहता है कि एक दिन मैं भगवान को भजन सुनाकर कहूंगा कि मेरी दीदी को ठीक कर दें, वह बोल सके और सुन सके ताकि में उसे ढोल बजाकर भजन सुनाऊं।

मन्नत के दादा राम प्यारा 2013 में राम को प्यारे हो गए। दादी मिसेज शकुंतला 70 साल की होने के बावजूद पोते मन्नत की ढोल पर खुशी से झूम उठती है। मन्नत को ढोल बजाते देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। वहीं मन्नत के ढोल बजने की आवाज सुने बिना मोहल्ले वालों को नींद नहीं आती, जिस दिन घर में ढोल न बजे मोहल्ले वाले पूछने लगते हैं कि ‘मन्नत’ घर में नहीं है क्या? मन्नत की मां अनुराधा कहती हैं कि ‘मन्नत’ के आने से सूने घर में ‘जन्नत’ सी रौनक आ गई है। जब वह ढोल बजाता है तो वंशिका उसे निहारती रहती है, हंसती है। वंशिका को खुश रखने के लिए मन्नत ढोल बजाता है, भजन गाता है। मेरी चाहत है कि ‘मन्नत’ एक दिन देश-दुनिया का बड़ा सितारा बने।

मूक-बधिर ‘बेटी’ के लिए छोड़ दी थी ‘बेटे’ की आस
‘पंजाब केसरी’ से खास बातचीत में अनुराधा शर्मा उर्फ अनु कहती हैं कि उनका मायका बाजार काठियां वाला है। पिता महंत पिशौरी लाल भजन, भेंटें गाया करते थे। मां मिसेज वीणा अरोड़ा गृहिणी थी। उनकी शादी 4 मई 1997 को हुई। पहली संतान में 1998 में बेटी मिली, लेकिन मूक व बधिर। पति पवन कुमार ने अनुराधा से कहा कि बेटी की परवरिश में कोई कमी न रह जाए इसके लिए और संतान को जन्म नहीं देंगे। 

अनुराधा बेटी के लालन-पालन के साथ-साथ मंदिर सिद्ध बाबा बालक नाथ में उसे लेकर जाने लगी। गद्दीनशीन भगत जगत राम जी ने 2013 में उनसे कहा कि बेटी की परवरिश के लिए जो त्याग दिया है, उसी के चलते घर में बेटा पैदा होगा जो देश-दुनिया में नाम रोशन करेगा और उस बहन के चेहरे पर खुशी लाएगा जो मूक व बधिर है। उन्होंने कहा कि शादी के 17 साल बाद 2004 में जो मन्नत हमें मिली है, शायद भाग्य से अधिक है।

‘कार्टून’ नहीं ‘धार्मिक’ चैनल देखता है
मन्नत टी.वी. देखता है लेकिन कार्टून के बजाए धार्मिक चैनल। उसे धार्मिक बातों से बड़ा लगाव है। मंदिर श्री बाबा बालक नाथ जाकर वह घंटों तक भजन गाते हुए भक्तों को देखता रहता है, जब मन करता है माइक लेकर गाने लगता है, गाता केवल भजन ही है। फिल्मी गीत न सुनता है न गाता है। मां अनुराधा कहती है कि मन्नत कोख में था तो उस दौरान जो भेंट मैं गाती थी, जब मन्नत वो भेंट गाने लगा तो मैं समझ गई कि ऊपर वाले ने मन्नत के रूप में मेरी कोख में ‘विशेष भेंट’ दी है। 

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