कैप्टन-सिद्धू विवाद: कांग्रेस के लगातार 2 टर्म सत्ता में रहने के सपने को लगा ‘ग्रहण’

punjabkesari.in Thursday, Jul 25, 2019 - 10:03 AM (IST)

पठानकोट(शारदा): लोकसभा चुनावों के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह व कांग्रेस के स्टार कंपेनर रहे नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चला लंबा शीतयुद्ध अंतत: डेढ़ माह बाद समाप्त हो ही गया। कांग्रेस पार्टी हाईकमान की अनिर्णयहीनता व बेबसी के चलते यह मामला इतना लंबा खिंच गया कि उसे अपनी भारी जग हंसाई करवानी पड़ी, जिससे बचा जा सकता था।

विधायक के तौर पर बने रहने के लिए सिद्धू करेंगे सिद्धू जी-तोड़ मेहनत 
सिद्धू प्रकरण का अध्ययन करने पर यह स्थिति उभरकर सामने आती है कि अब वह विधायक के रूप में कांग्रेस में बने रहने के लिए जी तोड़ मेहनत करेंगे परन्तु अगर उन्हें सूबे में राजनीति करनी है तो कैप्टन ग्रुप की तरफ से उनकी राजनीतिक उड़ान में कदम-कदम रुकावटें आती रहेंगी जिसे पार कर पाना उनके लिए निश्चित रूप से टेढ़ी खीर साबित होगा। प्रियंका गांधी के भरसक प्रयासों के बाद भी सिद्धू को कोई राहत नहीं मिली। सांसद मनीष तिवारी को छोड़कर किसी ने भी सिद्धू को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की, जिससे स्थिति बद से बदतर होती गई। अधिकतर मंत्रियों ने इस पर चुप्पी साधे रखी जिन्होंने टिप्पणी की भी वे इतनी नपी-तुली थी कि आने वाले समय में कांग्रेस में गुटबंदी से होने वाले नुक्सान की ओर इंगित करती थी। इससे कांग्रेस की सूबे में प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।

हरियाणा से सबक ले कांग्रेस

कैप्टन-सिद्धू प्रकरण से कांग्रेस के पंजाब में लगातार 2 टर्म सत्ता में रहने के सपने को ग्रहण-सा लग गया है। इसका राजनीतिक नुक्सान कितना होगा इसका आकलन आने वाले समय में होगा। कांग्रेस की यंग ब्रिगेड विधायक टीम इस बात को समझती है कि 10 साल के बाद वे सत्ता में आए हैं कम से कम उन्हें भी 2 टर्म सत्ता में रहने के इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। कांग्रेस को भाजपा के साथ-साथ बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से जरूर शिक्षा लेनी चाहिए थी कि एक बार सत्ता पर काबिज होने के बाद लगातार 2 बार बैक-टू-बैक कैसे सत्ता सुख भोगना है। कांग्रेसी हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा से ही नसीहत ले सकते हैं कि पहली बार 5 सीटों से सीधी सत्ता में पहुंची भाजपा हरियाणा में लोकसभा की 10 की 10 सीटें हथिया कर ले गई।

हाशिए पर चल रहे सिद्धू मौका मिलते ही लगा सकते हैं ‘चौका-छक्का’  
चूंकि सिद्धू ने कांग्रेस में टिकने की घोषणा कर दी है। इन परिस्थितियों में कैप्टन सरकार का अधिक ध्यान सिद्धू की गतिविधियों पर भी रहने वाला है। हाशिए पर चल रहे सिद्धू मौका मिलने पर चौका-छक्का मारने में कोई गुरेज नहीं करेंगे। विपक्ष के साथ-साथ कोई गंभीर मुद्दा हाथ में आया तो सिद्धू उसे छोडऩे वाले नहीं हैं। नशा व बेरोजगारी के साथ-साथ माइनिंग माफिया आज के समय में भी गंभीर मुद्दे बने हुए हैं। जिनका समाधान जनता की नजरों में अभी तक नहीं हो पाया।  

कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद अब नजरें मध्य प्रदेश, पंजाब व राजस्थान पर
देश की जनता ने कर्नाटक के घटनाक्रम को बहुत करीबी से देखा है जिस प्रकार से कांग्रेस के 15 विधायक पार्टी को छोड़कर चले गए। राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी व उनकी टीम ने इस घटनाक्रम को लेकर कोई भी आक्रमक स्थिति नहीं बनाई। वह इस बात का द्योतक है कि कांग्रेस अब भाजपा के सम्मुख अपने हथियार डाल चुकी है, जिन सूबों में कांग्रेस की सरकारें हैं, उन्हें अपनी सरकारें बचाने के लिए भाजपा से टक्कर प्रदेश स्तर पर ही लेनी होगी। हाईकमान से किसी प्रकार की उम्मीद रखना बेमानी होगा। अब मध्य प्रदेश में भाजपा किस प्रकार से कांग्रेस को अस्थिर करती है यह देखना रुचिकर होगा। कांग्रेस की आपस में खींचातान व एक-दूसरे को नीचा दिखाने की धड़ेबंदी ही भाजपा के लिए वरदान साबित हो रही है। गुटबंदी की यह स्थिति राजस्थान में भी है तथा पंजाब में भी अब इसकी नींव गहरी हो चुकी है। 

भाजपा चला रही मैंबरशिप ड्राइव, पंजाबियों के रिस्पांस से स्थिति होगी स्पष्ट
राष्ट्रीय पार्टी भाजपा इस बार बड़े जोर-शोर से पंजाब में भी मैंबरशिप ड्राइव चला रही है। बूथ स्तर पर लोगों को जोडऩे के लिए बहुत ही हाई टैक तरीका अपनाया गया है जिससे पार्टी के पास एक ऐसा डैटा बैंक इकट्ठा हो जाएगा कि उसे चुनावों में प्रयोग करना आसान हो जाएगा। जो व्यक्ति भाजपा का मैंबर बन रहा है उसकी फोटो के साथ मोबाइल नंबर, एक पारिवारिक सदस्य का मोबाइल नंबर तथा उसके ईमेल एड्रैस लिए जा रहे हैं। अगर भाजपा अपने निर्धारित लक्ष्य को पंजाब में भेदने में सफल रहती है तो निश्चित रूप से जो संगठन ने 53 सीटों पर दावा पेश करने का या अकेले वि.स. चुनाव लडऩे का निर्णय लिया है वह साकार होता नजर आएगा लेकिन पंजाबियों के रिस्पांस से ही ये स्थिति स्पष्ट होगी। इसी प्रकार लोस में महज 2 सीटें जीतने के कारण एक परिवार की पार्टी बन चुकी अकाली दल पुन: जनता में जाकर एक ऐसा आधार तैयार करे कि भाजपा भी उसके सामने बौनी नजर आए। 

 

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