कभी भी फूट सकता है कांग्रेस के अंदर धधक रहे राजनीति के ‘ज्वालामुखी’ का लावा

punjabkesari.in Wednesday, May 29, 2019 - 09:27 AM (IST)

पठानकोट(शारदा): बेशक 17वीं लोकसभा के गठन के लिए देश भर में चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं तथा भाजपा को प्रचंड जीत मिल गई। मोदी की चली सुनामी ने कई राज्यों में विरोधी दलों में राजनीतिक तबाही मचाई है। कई राज्यों में तो कांग्रेस पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया। इसके चलते कांग्रेस पार्टी में अब हार को लेकर बनी हुई ‘रार’ के चलते इस्तीफों का दौर जारी है। प्रदेश में चाहे कांग्रेस की कैप्टन सरकार 13 में से 8 सीटें जीतकर वाहवाही लूट रही है, परन्तु कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति एक ऐसे शांत नजर आ रहे ज्वालामुखी की तरह है जो अंदर से तेजी से धधक रहा है तथा इसका लावा कभी भी फूट सकता है।  

इस बात का इशारा दिया जा रहा है कि मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह एक धाकड़ नेता हैं जिनका प्रदेश की कांग्रेस पार्टी पर पूरा नियंत्रण है, परन्तु लोकसभा चुनावों में जिस प्रकार के संदेश कांग्रेस की राजनीति से निकले हैं वे न तो पार्टी के लिए सुखद हैं तथा न ही प्रदेश के लिए अच्छे। लोगों के मनों में यह बात घर कर चुकी थी कि अकाली दल व कांग्रेस पार्टी में कोई खास अंतर नहीं है, इसलिए तीसरे विकल्प की संभावना बन रही थी। यह तो आम आदमी पार्टी का ही दुर्भाग्य समझा जाना चाहिए कि राजनीति के अनाड़़ी ‘आप’ के युवा नेताओं ने मुर्गी के अधिक अंडे खाने के चक्कर में मुर्गी ही मार डाली। । पिछले 2 वर्षों के दौरान कांग्रेस पार्टी चाहे कई प्रकार के चुनाव जीत गई हो परन्तु धन के अभाव व अन्य कारणों से कांग्रेस अपने राजनीतिक वायदों व प्रदेश के विकास को नई दिशा देने में अधिक सफल नहीं हो पाई है।

लोकसभा चुनावों से एक महीना पहले कांग्रेस पार्टी के लिए प्रदेश का मिशन 13 आसान नजर आ रहा था। महज चुनावों से डेढ़ महीने पहले ही ऐसी राजनीति हुई कि यहां अंतत: चुनावों का परिणाम 8-5 हो गया वहीं कांग्रेस की गुटबंदी लगभग सभी संसदीय क्षेत्रों (सभी जिलों) में खुलकर सामने आई। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष शमशेर सिंह व लाल सिंह की लड़ाई को लोगों ने खूब चटकारे लेकर सुना व समझा। ये दोनों कांग्रेस के अति वरिष्ठ नेताओं की सूची में शामिल हैं, अगर उनकी यह राजनीतिक लड़ाई सड़कों व मीडिया में आ गई तो बाकियों के  क्या कहने। दूलों ने भी कमाल कर दिया कि राज्यसभा सांसद होने के बावजूद उनकी पत्नी व बेटा विद्रोही होकर ‘आप’ में चले गए। इससे दूलों परिवार की प्रांतीय कांग्रेस नेतृत्व के प्रति क्या मनो स्थिति है, इसे समझा जा सकता है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री संतोष चौधरी ने टिकट कटने पर मीडिया व टी.वी. चैनलों में जाकर अपने मन की व्यथा द्रवित भाव से बताई वह चर्चा का कारण बनीं।

वहीं कांग्रेस के दिग्गज प्रत्याशी डा. राजकुमार चब्बेवाल इस चुनाव में भाजपा के हाथों औंधें मुंह गिरे। वहीं दूसरी ओर मतदान के दिन मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच हुई नूराकुश्ती खुले में नजर आई। पंजाब में 8 सीटें जीतने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने राहुल गांधी को अपना इस्तीफा भेजा है। निश्चित रूप से वह गुरदासपुर में हुई कांग्रेस की हार से पूरी तरह व्यथित हैं। कांग्रेस के पास खुद को दुरस्त करने का आगे लंबा समय है। उप-चुनाव अगले 6 महीनों में होने हैं तथा 2020 में नगर पालिकों व कार्पोरेशनों के चुनाव हैं। लोगों की नजरें अब पंजाब की कांग्रेस पर लगी रहेंगी तथा कब क्या और कहां राजनीतिक धमाका हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

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