अतीत में उंगलियां जला चुकी कांग्रेस  फिर खेल रही है पंथक आग से

punjabkesari.in Sunday, Sep 09, 2018 - 09:02 AM (IST)

जालंधर(रविंदर): अतीत में उंगलियां जला चुकी कांग्रेस एक बार  फिर पंथक आग से खेलती नजर आ रही है। बरगाड़ी कांड के बाद आई जांच रिपोर्ट से उपजी पंथक राजनीति को लेकर कांग्रेस के भीतर ही बवाल मचा हुआ है। कांग्रेस का एक धड़ा जहां इस मामले में उग्र रूप धारण कर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल व पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सिंह सैनी को सलाखों के पीछे धकेलना चाहता है वहीं एक दूसरा धड़ा इस मामले में पार्टी हाईकमान को फूंक-फूंक कर कदम रखने की बात कह रहा है। 

पार्टी के कई सीनियर नेताओं का मानना है कि अगर पूर्व डी.जी.पी. समेत अन्य पुलिस अधिकारियों पर एक्शन हुआ तो इसका पुलिस फोर्स पर गलत असर पड़ेगा और पुलिस का मनोबल गिरेगा। भविष्य में कोई भी फैसला लेने से पहले पुलिस अधिकारी 100 बार सोचेंगे और ऐसे में हालात और बिगड़ सकते हैं। इन नेताओं का मानना है कि पूर्व में कांग्रेस के इसी तरह के  फैसलों से प्रदेश में आतंकवाद पनपा था, जिसकी आग में डेढ़ दशक तक पंजाब झुलसा था। कांग्रेस के इन नेताओं का मानना है कि पंजाब सरकार को पूर्व के अनुभव से सबक लेना चाहिए और पंथक आग में खेलने से बचना चाहिए। 

कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग जिसमें सुखजिंद्र सिंह रंधावा, तृप्त राजेंद्र बाजवा और सुनील जाखड़ जैसे नेता हैं, पंथक राजनीति खेलने के पक्षधर हैं। इन नेताओं का मानना है कि जिस तरह से हर बार अकाली दल 1984 के दंगों व आप्रेशन बलू स्टार की बातें उठाकर कांग्रेस को घेरता रहा है तो इस बार अकाली दल पर काऊंटर अटैक करने का इससे अच्छा मौका नहीं है। इन नेताओं का कहना है कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले सिखों पर फायरिंग का आदेश देकर पूर्व सरकार ने बेहद घिनौना काम किया है और इस बात को हर सिख तक पहुंचाया जाना जरूरी है, मगर जिस तरह से बरगाड़ी कांड की रिपोर्ट के बाद उग्र नेता बलजीत सिंह दादूवाल व ध्यान सिंह मंड का नाम कांग्रेस से जुडऩे लगा है, वह एक बार फिर से कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है।

हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह अभी इस मामले में कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहे हैं, मगर जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल व पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सैनी के खिलाफ ज्यादा देर तक कार्रवाई न करना उनके बस में नहीं रहेगा। एक तरफ उग्र दल नेता बलजीत सिंह दादूवाल व ध्यान सिंह मंड का नाम कांग्रेस से जुडऩा और दूसरी तरफ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एक्शन की बात को लेकर कांग्रेस का एक बड़ा दल पंजाब सरकार की नीतियों के विरोध में है। वे साफ तौर पर कहते हैं कि अतीत की गलतियों से कांग्रेस को सबक लेना चाहिए और पंथक राजनीति से पार्टी को दूर रहना चाहिए। 

कांग्रेस के एक बड़े धड़े का मानना है कि पार्टी ने 2004 लोकसभा चुनाव से पहले भी इसी तरह की पंथक राजनीति में अपने को शामिल करने का प्रयास किया था जिसका असर यह हुआ था कि सत्ता में रहते हुए पार्टी को मात्र 2 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी। यही नहीं 2007 में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था और 10 साल तक प्रदेश की सत्ता से बाहर रहना पड़ा था। 2017 पंजाब विधानसभा में भी ‘आप’ के साथ जैसे ही उग्र नेताओं का नाम जुड़ा तो पंजाब में पार्टी का हाल बुरा हो गया। इसी कारण अगर कांग्रेस ने अभी पंथक राजनीति से अपने हाथ पीछे न खींचे तो 2019 लोकसभा चुनाव में इसके विपरीत नतीजे देखने को मिल सकते हैं।

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