दिल्ली में ‘आप’ के लिए अधिक सीटों की राह में कांग्रेस बन सकती है रोड़ा

punjabkesari.in Sunday, Aug 20, 2023 - 08:53 AM (IST)

पठानकोट: जहां एक ओर सरहदी सूबा पंजाब हिमाचल प्रदेश के डैमों से छोड़े जा रहे पानी से बनी बाढ़ की स्थिति से जूझ रहा है, वहीं 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गलियारों में चुनावी सरगर्मियों की बाढ़ वाला माहौल बना हुआ है। एन.डी.ए. को तीसरी बार केंद्र में सत्ता में आने से रोकने के लिए जहां कांग्रेस सहित अन्य पार्टियां एक छत तले अब यू.पी.ए. के स्थान पर ‘इंडिया’ के बैनर तले लामबंद हो रही हैं जिसका भाग सूबे की आम आदमी पार्टी भी है। परन्तु एलांयस में आने के बावजूद कांग्रेस व ‘आप’ के नेताओं द्वारा की जा रही विरोधता से एन.डी.ए. खेमा मुस्करा रहा है, जबकि ‘इंडिया’ न चाहते हुए भी फिलहाल सुखद नहीं अलबत्ता विषम परिस्थितियों से जूझता प्रतीक हो रहा है।

परस्पर विरोधाभास के बावजूद जहां इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के साथ चूंकि ‘आप’ न चाहते हुए भी अपनी राजनीतिक विषमताओं को पार पाने के लिए शामिल हुई है, वहीं पंजाब व दिल्ली को लेकर दोनों ही पार्टियों के लिए अपने-अपने हिस्से की सीटों का बंटवारा करना एलायंस में शामिल होने से भी अधिक टेढ़ी खीर है। यही कारण है कि गठबंधन में आने तथा लोकसभा चुनाव दूर होने के बावजूद दोनों ही दलों के नेता परस्पर विरोधी हवा का माहौल तैयार करके राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा रहे हैं। अगर बात पंजाब व दिल्ली की करें तो जहां पंजाब में पहली बार सत्तारूढ़ होने के चलते ‘आप’ की स्थिति बेहतर नजर आ रही है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली में तीसरी बार सरकार होने के बावजूद लोकसभा चुनाव में जीत केजरीवाल सरकार के लिए उतनी आसान नहीं होगी।

पंजाब व दिल्ली में सीटों का गड़बड़ाया गणित बढ़ा रहा मुश्किलें

गठबंधन में आने के बाद भी पंजाब व दिल्ली दोनों ही स्थानों पर आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपनी-अपने हिस्से की सीटों को लेकर फंसा पेंच इन दिनों ही दलों की मुश्किलें बढ़ा रहा है जिसके चलते गतिरोध बना हुआ है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि देश की नवोदित पार्टी ‘आप’ के लिए सरहदी सूबे पंजाब में तो स्थिति गठबंधन होने के चलते सुखद हो सकती है क्योंकि विधानसभाा चुनावों में इस पार्टी ने सभी विरोधी दलों पर एकतरफा जीत दर्ज करके इतिहास रच दिया था, ऐसे में सूबे की 13 की 13 ही सीटों पर ‘आप’ खुद की चुनावी बढ़त के रूप में फिलहाल देख रही है।

सूबे की 13 सीटों पर अगर दोनों ही दलों में कोई पेंच फंसता है तो 8-5 या 9-4 का गणित ‘आप’ व कांग्रेस में फिट बैठ सकता है। बेशक इस भावी गणित पर अधिक सीटों पर दावा सत्ता में होने के चलते ‘आप’ ही ठोकेगी तथा कांग्रेस सत्ता से बाहर होने के चलते बेमन से ही सही इस गणित को अपनी झोली में डालना ही चाहेगी क्योंकि कांग्रेस के लिए यह स्थिति भी कुछ नहीं सही से कुछ ही सही वाली हो सकती है जिस पर पार्टी नेतृत्व देर से ही सही मोहर लगाने की दिशा में काम कर सकता है। वहीं ‘आप’ अगर उपरोक्त गणित पर लोकसभा चुनाव में उतरती है तो कांग्रेस की सहयोगी पार्टी होने के चलते उसकी सीधी टक्कर केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा से होगी जिससे सत्ता का लाभ निश्चित रूप से ‘आप’ को मिलता दिखाई देगा।

दिल्ली में सत्ता में नहीं होने के बावजूद कांग्रेस दिखा सकती है आंखें

वहीं, कांग्रेसी नेताओं के दिल्ली की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे के बयानों से दोनों ही दलों में मचा घमासान इन दलों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी किसी भी सूरत में ‘आप’ के साथ बराबर सीटों पर लड़ना नहीं चाहेगी, वह अधिक सीटों पर लड़ने का दावा करेगी। इसका एक बड़ा कारण यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में बेशक कांग्रेस भाजपा के हाथों हार गई थी परंतु वह कुल 7 सीटों में से 5 पर दूसरे स्थान पर रही थी, जबकि ‘आप’ महज 2 सीटों पर दूसरे पायदान पर रही थी। अधिक वोट शेयर मिलने के चलते कांग्रेस पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान वाली सीटों पर अपना दावा ठोकेगी, जबकि पंजाब में धमाकेदार जीत दर्ज करने वाली ‘आप’ को कांग्रेस के इस दावे पर आपत्ति होगी। सीटों का यह बंटवारा दोनों ही दलों के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में गले की फांस बनेगा।

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News Editor

Urmila