10वीं व 12वीं की बोर्ड की वार्षिक परीक्षाओं के परिणामों को डंसेगा COVID-19!

punjabkesari.in Tuesday, Nov 24, 2020 - 03:20 PM (IST)

मजीठा(सर्बजीत): कोविड -19 कोरोना वायरस वाला समय जिसको अब हम ‘कोरोना काल’ के नाम से जानने लग पड़े हैं, ने हर वर्ग चाहे वह व्यापारी हो, दुकानदार , उद्योगपति हो या फिर गरीब वर्ग, को थोड़ा-बहुत जरूर डंसा है और इससे शैक्षिक अदारे भी नहीं बचे, क्योंकि कोरोना काल का अब एक ऐसा समय चल रहा है, जिस दौरान हर तरफ हाहाकार और त्राहि-त्राहि मची पड़ी है। 

इस समय के चलते स्कूल वाले चाहे वह प्राइवेट हो या सरकारी, हर स्कूल कोविड -19 को मुख्य रखते हुए बंद हो गया, जिसके चलते बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई सरकार की हिदायतों के अनुसार सरकारी और प्राइवेट स्कूल वालों ने शुरू कर दी और अब कुछ महीने हो गए हैं स्कूल लगे हुए, परन्तु ऑनलाइन पढ़ाई में जहां प्राइवेट स्कूली बच्चों ने ज़्यादातर रूचि दिखाई, वहीं साथ ही सरकारी स्कूलों में पढ़ते बच्चों पर इस ऑनलाइन पढ़ाई का ज्यादा प्रभाव देखने को नहीं मिला, क्योंकि सुनने में आ रहा है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ते बच्चों में से सिर्फ और सिर्फ 8 महीनों के कोरोना काल दौरान करीब बीस प्रतिशत बच्चे ही ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ लेने में कामयाब हो सके हैं, जबकि अस्सी प्रतिशत विद्यार्थी खाली कागज की तरह कोरे ही स्कूल में आए, क्योंकि सरकार की हिदायतें को मुख्य रखते हुए चाहे अक्तूबर महीने से स्कूल लग गए हैं और 9वीं से लेकर 12वीं श्रेणी तक के विद्यार्थियों को 3-4 घंटे स्कूल में पढ़ाई भी करवाई जा रही है, परन्तु इसके बावजूद ज्यादातर बच्चे स्कूल फीस देने के डर से ही घर से नहीं आ रहे। 



इसके अलावा दूसरा बड़ा कारण यह है कि विद्यार्थियों के मां-बाप से सहमति पत्र मांगा जा रहा है, परन्तु माता-पिता स्वयं घोषणा का ग्रामीण क्षेत्र अंदर कोई असर देखने को नहीं मिला, जिसके चलते बच्चों ने 7 महीने कोई पढ़ाई नहीं की, इसलिए वह अध्यापकों से डर से भी स्कूल नहीं पहुंच रहे। उधर, यदि स्कूल मुखियों की बात की जाए तो उनका कहना है कि वह तो पढ़ाने को तैयार बैठे हैं, परन्तु विद्यार्थियों के ज्यादातर स्कूल न आने चलते अध्यापक भी असमंजस में हैं, क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई का कोई ज्यादा प्रभाव न होने के चलते जहां बच्चों के ऑनलाइन पेपर उनको करने पड़ रहे हैं, वहां साथ ही अध्यापकों पर शिक्षा सचिव भी सौ प्रतिशत नतीजा लाने के लिए दबाव बना रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि ज्यादातर सरकारी स्कूलों में पढऩे आने वाले बच्चों के पास स्मार्ट फोन तक नहीं हैं और तो और ज्यादातर अध्यापकों का यह भी कहना है कि बच्चों की 7 रुपए महीना फीस तो माफ है, परन्तु बाकी फंड मांगने के चलते बच्चे स्कूल में नहीं आ रहे, इसलिए सरकार को चाहिए कि फीसों में बारे अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए सरकारी स्कूलों में पढ़ते बच्चों के अभिभावकों को जागरूक करे, जिससे ज्यादातर बच्चे स्कूल पढ़ाई करने के लिए आ सकें।

बच्चों का भविष्य होगा धुंधला या सुनहरी, बनी बुझारत
‘कोरोना काल’ के इस भयानक समय दौरान माता-पिता भी अपने बच्चों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं, क्योंकि उनको अंदर ही अंदर यह डर सता रहा है कि कहीं कोरोना काल का यह समय जाता-जाता बच्चों का भविष्य सुनहरी बनाने की बजाय धुंधला ही न कर जाए, जिससे बच्चों का यह साल खराब हो जाए, परन्तु यह सब अभी बुझारत ही बना पड़ा है, क्योंकि कोविड -19 का प्रभाव आखिर क्या रंग दिखाता है, यह आने वाले दिनों में ही पता चल जाएगा। फिलहाल मौजूदा समय दौरान देशभर में कोरोना पीड़ितों की संख्या में विस्तार हो रहा है और लगता है कि सरकारें फिर दोबारा लॉकडाऊन करन की तैयारी में कमर कसकर बैठी हुई हैं। उधर, दूसरे तरफ यदि 2021 में होने वाली 10वीं और 12वीं श्रेणी की बोर्ड की परीक्षाओं की बात की जाए तो इन परीक्षाओं के आने वाले नतीजों पर भी कोविड -19 अपना प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि कोविड -19 का यह काल स्कूली बच्चों ने सिर्फ और सिर्फ ज्यादातर फुर्सत में बैठे ही बिताया होगा, क्योंकि ज्यादातर बच्चे स्मार्ट फोन न होने के चलते पढ़ाई से वंचित होकर रह गए थे। उधर, बोर्ड की सालाना परीक्षाएं हो सकता है कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड इस बार फरवरी मार्च की बजाय मई-जून में ले और यदि ऐसा संभव हो गया तो फिर कोविड -19 का डंक बोर्ड के परिणामों पर पडऩे की बजाए उलटा सरकारी स्कूलों का आने वाला सौ प्रतिशत परिणाम ही कोविड -19 पर भारी पड़ जाए, परन्तु यह सब तो अब कोरोना कब खत्म होता है, पर ही निर्भर करेगा। 

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