एक हजार करोड़ से ज्यादा कर्ज में डूबा साइकिल उद्योग

punjabkesari.in Saturday, Jan 12, 2019 - 11:46 AM (IST)

लुधियाना(धीमान): पंजाब का साइकिल उद्योग 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज में डूब गया है। ऐसी 32 कंपनियों के नाम सामने आए हैं जो समय पर लोन न चुका पाने के कारण विभिन्न बैंकों की एन.पी.ए. (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) की लिस्ट में शामिल हो गई हैं। इनमें से कुछ कंपनियों के केस एन.सी.एल.टी. (नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) में भी लगे हुए हैं। साइकिल इंडस्ट्री की हालत इस कदर पतली हो गई है कि कई नामी कंपनियां बिकने की कगार पर हैं। हर साल करीब 1.50 करोड़ के आसपास साइकिल बनते हैं। इनका निर्माण करने वाली कंपनियां और पार्ट्स बनाने वाली 90 प्रतिशत कंपनियां लुधियाना में हैं।


क्यों साइकिल इंडस्ट्री कर रही है डिफाल्ट
एशिया की सबसे बड़ी यू.सी.पी.एम.ए. एसोसिएशन के पूर्व प्रधान चरणजीत सिंह विश्वकर्मा के मुताबिक साइकिल इंडस्ट्री की बिगड़ी चाल का मुख्य कारण 27 विदेशी ब्रांड का भारत में आना और सरकारी टैंडरों में साइकिल सप्लाई के कारण पेमैंट देरी से अदा करना माना जा रहा है। आज से 2 वर्ष पहले तक पेमैंट अदा करने का समय 45 से 60 दिन होता था लेकिन अब यह 120 से 150 दिन तक चला गया है। जिन कंपनियो ने बैंकों से क्रैडिट लिमिट ले रखी है, उनके अकाऊंट में 60 दिन के अंदर अगर पेमैंट जमा नहीं होती तो बैंक उनके अकाऊंट को एन.पी.ए. लिस्ट में डाल रहे हैं। इसके अलावा नॉन-ब्रांडिड साइकिल निर्माता भी बाजार में आ गए हैं जिस कारण बड़े ब्रांड की बिक्री प्रभावित हुई है। इस बिक्री का सीधा असर साइकिल पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों पर पड़ रहा है। जहां तक काले साइकिल की बात है उसकी अधिक बिक्री सरकारी टैंडरो के जरिए हो रही है लेकिन यह बता देना जरूरी है कि सरकारी टैंडरों में दिए जाने वाले साइकिल घूम कर फिर दुकानों पर बिकने को आ रहे हैं जिससे डीलरों ने कंपनियों से खरीद को घटा कर टैंडरों वाले साइकिलों को तरजीह देनी शुरू कर दी है। डीलर व दुकानदार सस्ते में साइकिल खरीद कर महंगे दामों में बेच खूब कमाई कर रहे हैं। इस कारण भी साइकिल निर्माताओं का उत्पादन नीचे गिरा है।

एन.सी.एल.टी. में केस लगाकर सस्ते में छूट रही हैं कंपनियां
फोपसिया के प्रधान बदीश जिंदल के मुताबिक डिफाल्ट करने वाली कंपनियों ने अब एन.सी.एल.टी. (नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) में केस लगाने शुरू कर दिए हैं। इसमें लगने वाले केसों का निपटारा 25 से 30 प्रतिशत पेमैंट देकर हो रहा है। इस संबंध में जब बैंकों से आर.टी.आई. के जरिए लिस्ट मांगी गई तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया। यही एक वजह है कि देश के बड़े बैंक भी कर्ज में डूबते जा रहे हैं। बैंकों की मिलीभगत से पहले लोन दे दिए जाते हैं फिर सस्ते में निपटारा एन.सी.एल.टी. के जरिए बैंक ही करवा देते हैं। स्टील की एक बड़ी कंपनी का कर्ज करीब 250 करोड़ था जिसने सिर्फ 70 करोड़ अदा कर छुटकारा पा लिया।

कई कंपनियां बिकने के लिए बाजार में आईं
डिफाल्ट होने के बाद कई बड़ी कंपनियां बिकने के लिए बाजार में आ गई हैं। सूत्रों से पता चला है कि साइकिल के एक बड़े ब्रांड को बेचने के लिए मुम्बई की एक फर्म ने मध्यस्थता करते हुए करीब 300 करोड़ की पेशकश साइकिल कंपनियों को भेजी जबकि इस कंपनी पर 200 करोड़ का लोन खड़ा है। इसे खरीदने के लिए 250 करोड़ तक की ऑफर लगी। इसी तरह साइकिल पार्ट्स बनाने वाली करीब 15 कंपनियों के नाम सामने आए हैं जिन्होंने घाटे के चलते कंपनियों को बेचने के लिए लगाया हुआ है।

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