‘लामाओं के दबाव में सिखों के धार्मिक स्थल पर संकट’

punjabkesari.in Thursday, May 03, 2018 - 02:21 PM (IST)

नई दिल्ली : सिक्किम के गुरुद्वारा डांगमार साहिब को लेकर बुधवार को दिल्ली  सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सिक्किम सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। कमेटी अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. तथा महासचिव मनजिन्दर सिंह सिरसा ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बौद्ध लामाओं के दबाव में गुरुनानक देव से संबंधित गुरुद्वारा डांगमार साहिब का धार्मिक व कानूनी अस्तित्व मिटाने के लिए सिक्किम सरकार पर असहनशीलता फैलाने का आरोप लगाया।

इसी बीच केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दे चुका है। जी.के. ने बताया कि सिक्किम सरकार गुरुद्वारा डांगमार साहिब को आठवीं सदी के तांत्रिक बौद्ध भिक्षु पंडित सम्भव जिन्हें गुरू रिन्पोछे के नाम से जाना जाता है, का मठ बनाने के लिए कृतसंकल्प नजर आती है। जबकि गुरुनानक देव जी ने 1516-17 के बीच की लगभग 6 महीने के अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान गुरु डांगमार झील के माइनस &0 डिग्री तापमान पर जमी हुई झील के पानी को स्थानीय लोगों की मांग पर लकड़ी का डंडा मारकर पिघला दिया था। उसके बाद से उस स्थान पर अभी तक झील के उस हिस्से से लोग पानी प्राप्त करते हैं।

जी.के. ने बताया कि सिक्किम को बौद्ध राज्य बनाने की ओर अग्रसर सरकार ने कुछ बौद्ध लामाओं को साथ लेकर पहले इस स्थान को सर्वधर्म प्रार्थना स्थल घोषित किया, जबकि सर्वे जरनल ऑफ इंडिया के 1981 में बने नक्शे में इस स्थान पर गुरुनानक देव जी के 500 वर्ष पहले आने का हवाला मिलता है। साथ ही ऐवरेस्ट हीरो के नाम से जाने जाते श्याम गेस्टो ने 1965 में इस स्थान की खोज की थी। कुछ समय पहले तक इस स्थान पर गुरू रिन्पोछे का यहां आने का कोई इतिहास बौद्ध लामाओं के पास भी नहीं था। दिल्ली के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि सोशल मीडिया पर बौद्ध धर्म के अनुयायी दबाव बनाने के लिए कई पोस्टे डाल कर अपने धर्म के लोगों को सिक्किम हाईकोर्ट में & मई को होने वाली सुनवाई में पहुंचने की अपील कर रहे हैं। साथ ही बौद्ध लामाओं द्वारा सिखों को सिक्किम में टैक्सी से सवारी ना करवाने के भी आदेश दिए गए हैं। बौद्ध लामाओं का व्यवहार सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना तथा संविधान द्वारा सिखों को मिले धार्मिक अधिकारों से मुंह मोडऩे के सामान है।

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