धार्मिक जत्थेबंदियों में चर्चाएं हुई तेज, 15 वर्षों बाद पंजाब को डी.जी.पी. के रूप में मिला गुरु सिख चेहरा

punjabkesari.in Saturday, Nov 13, 2021 - 11:45 AM (IST)

जालन्धर (धवन): पंजाब की सिख धार्मिक जत्थेबंदियों को डी.जी.पी. इकबालप्रीत सिंह सहोता से धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के मामलों में इंसाफ मिलने का भरोसा बढ़ा है। धार्मिक जत्थेबंदियों में यह चर्चा है कि पंजाब को 15 वर्षों बाद गुरु सिख के रूप में डी.जी.पी. मिला है। 2015 में राज्य के विभिन्न स्थानों पर धार्मिक ग्रंथों की हुई बेअदबी की घटनाओं की छाया अब भी पंजाब की राजनीति पर पड़ रही है। राज्य के गृह मंत्री सुखजिंद्र सिंह रंधावा भी बार-बार कह रहे हैं कि धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के लिए जिम्मेदार किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। जहां तक डी.जी.पी. इकबाल प्रीत सिंह सहोता का संबंध है, उन्होंने अपना पदभार संभालने के बाद पहले साक्षात्कार में कहा था कि उनकी प्राथमिकता धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी करने वालों को कड़ी सजा दिलवाना रहेगा।

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सहोता के डी.जी.पी. बनने के बाद बेअदबी कांड की जांच का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है तथा इसमें संलिप्त कई दोषियों में खौफ देखा जा रहा है। सहोता एक गुरु सिख डी.जी.पी. हैं तथा उनके घर श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश भी होता है। वह व्यक्तिगत तौर पर इस जांच पर नजर रख रहे हैं। धार्मिक क्षेत्र में तो यह भी कहा जा रहा है कि अगर गुरु सिख डी.जी.पी. सहोता इस मामले में इंसाफ नहीं दिलवा सके तो फिर कोई भी पुलिस अधिकारी इस कार्य में कामयाब नहीं हो सकेगा। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेदअबी की घटनाओं की जांच एस.आई.टी. द्वारा और तेज कर दी गई है। फरीदकोट की अदालत द्वारा डेरा सिरसा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ भी प्रोडक्शन वारंट जारी किए गए थे तथा उनसे जांच टीम ने इस संबंध में पूछताछ भी की है। सहोता की निष्पक्षता पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता है।

सहोता के नेतृत्व में बनी एस.आई.टी. को जांच के लिए केवल 19 दिन मिले थे
चाहे डी.जी.पी. सहोता पर कुछ तत्वों ने उंगलियां उठाई हैं तथा 2015 में बनी एस.आई.टी. जिसके सदस्य सहोता भी थे, की कार्यप्रणाली पर किंतु-परन्तु किया है। वास्तविकता यह है कि उस समय एस.आई.टी. को जांच के लिए केवल 19 दिन ही मिले थे। उसके बाद तत्कालीन पूर्व सरकार ने जांच का कार्य उनसे लेकर सी.बी.आई. के हवाले कर दिया था इसलिए सहोता के नेतृत्व में बनी पूर्व एस.आई.टी. 19 दिनों में किस तरह से इंसाफ दे सकती थी। अगर यह मामला सी.बी.आई. के पास न जाता तो संभव था कि सहोता के नेतृत्व में बनी एस.आई.टी. जांच का कार्य पूरा करके दोषियों को कटघरे में खड़ा कर देती। यह भी पता चला है कि इकबालप्रीत सिंह सहोता की रिपोर्ट के आधार पर ही बहिलबल कलां गोलीकांड में संलिप्त पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 302 आई.पी.सी. के तहत कत्ल का केस दर्ज किया गया था। इसलिए सहोता पर बेअदबी मामलों को लेकर पक्षपात करने के आरोप नहीं लगाए जा सकते।

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दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी सहोता ने दर्ज करवाया था केस
21 अक्तूबर 2015 को फरीदकोट के एस.एस.पी. को एक पत्र लिख कर बहिबल कलां गोलीकांड में तत्कालीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 302, 307, 34 आई.पी.सी. तथा 25/27 आम्र्स एक्ट के तहत कार्रवाई करने के आदेश भी सहोता ने दिए थे। यह बात भी अब सामने आ गई है कि सहोता के नेतृत्व में बनी पुरानी एस.आई.टी. ने किसी भी राजनीतिक नेता को क्लीन चिट नहीं दी थी।

सहोता जांच को निष्पक्षता से अंजाम तक पहुंचाने के हक में  
12 अक्तूबर 2015 को दर्ज 128 नंबर एफ.आई.आर. की जांच सहोता के अधीन बनी एस.आई.टी. ने की थी जिसमें तत्कालीन फिरोजपुर रेंज के आई.जी. अमर सिंह चाहल तथा बठिंडा रेंज के तत्कालीन डी.आई.जी. आर.एस. खटड़ा भी शामिल थे। इसी तरह कोटकपूरा में हुई बेअदबी की घटना के बाद स्थानीय पुलिस ने 2 नौजवानों रूपिन्द्र सिंह तथा जसविंद्र सिंह को गिरफ्तार किया था। इन दोनों की गिरफ्तारी का संबंध उस समय सहोता के नेतृत्व में बनाई गई एस.आई.टी. से नहीं था। इसके उल्ट जब सहोता ने इस मामले की गहराई से जांच की तो उक्त नौजवान बेकसूर पाए गए तथा उन्होंने उक्त नौजवानों को स्थानीय पुलिस की मार्फत अदालत से रिहा करवाया।

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Content Writer

Sunita sarangal