पर्यावरण के दुश्मनों की करतूत: 100 वृक्षों का कर दिया कत्लेआम

punjabkesari.in Wednesday, Feb 05, 2020 - 10:32 AM (IST)

जालंधर(खुराना): देश की राजधानी दिल्ली तथा अन्य बड़े शहरों में जिस प्रकार प्रदूषण का लैवल बढ़ता जा रहा है उससे जहां लाखों-करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पडऩा शुरू हो गया है वहीं इस मामले में पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट तक को यह कहना पड़ा था कि लोगों को ऐसे मारने की बजाय एक ही बार में बम गिरा कर क्यों नहीं खत्म कर दिया जाता। चाहे माननीय अदालत के न्यायाधीश महोदय ने ऐसी बात सरकारी लापरवाही पर बड़ा कटाक्ष करते हुए कही थी परंतु इसके पीछे एक गहरी भावना छिपी हुई थी कि अब भी अगर पर्यावरण संतुलन की ओर ध्यान न दिया गया तो पूरी मानवता पर खतरा बढ़ जाएगा।

एक ओर जहां बढ़ते प्रदूषण को लेकर इस तरह और इस लैवल की चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं और पर्यावरण को हरा-भरा करने तथा प्रदूषण खत्म करने पर जोर दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर शहरों में ही पर्यावरण के ऐसे दुश्मन भी मौजूद हैं जिन्हें अपने निजी स्वार्थों के लिए पर्यावरण को बिगाड़ने में रत्ती भर भी संकोच नहीं होता। जालंधर शहर में ही पिछले 2 दिनों के दौरान दो ऐसी घटनाएं हुई हैं, जहां पर्यावरण के दुश्मनों ने अपनी करतूत दिखाते हुए शहर के दो हरे-भरे पार्कों में लगे 100 के करीब बड़े-बड़े वृक्षों का कत्लेआम कर डाला और वहां ग्रीनरी को पूरी तरह खत्म करके उन्हें उजड़े हुए बाग जैसा स्वरूप प्रदान कर डाला।

पहली घटना 2 दिन पूर्व सैंट्रल टाऊन के गीता मंदिर के पीछे पड़ते स्व. मनमोहन कालिया पार्क में घटित हुई, जहां पार्क के बीचों-बीच और आसपास की बाऊंड्री पर लगे 50 बड़े-बड़े वृक्षों को कुल्हाड़ी चलाकर बुरी तरह काट डाला गया। आरोप है कि यह काम पार्क के आसपास रहने वाले घरों के निवासियों पर आधारित एक सोसायटी ने करवाया है परंतु अब सोसायटी का कोई पदाधिकारी इस करतूत की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। ऐसे लोगों ने शाम के अंधेरे में पार्क को उजाडऩे का कार्य किया और सुबह जब लोग सैर करने आए तो हरे-भरे पार्क की हरियाली को गायब देख कर दंग रह गए।

ऐसी ही दूसरी घटना स्थानीय चिंतपूर्णी मंदिर के सामने पड़ते मस्त राम पार्क में हुई जहां लगे 50 के करीब बड़े-बड़े वृक्षों को बुरी तरह काट डाला गया। यहां भी यह काम पार्क के आसपास रहने वाले घरों के निवासियों पर आधारित सोसायटी द्वारा किया गया है परंतु अब यहां भी इसकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है।

धूप न आने और चमगादड़ों का बनाया बहाना
100 के करीब बड़े-बड़े वृक्षों, जिनमें कई फलदार और कई डैकोरेटिव वृक्ष भी थे, को कटवाने वाले तत्व अब तरह-तरह के बहाने लगा रहे हैं। पंजाब केसरी की टीम ने जब मस्तराम पार्क का दौरा किया तो पता चला कि कई निवासियों ने वृक्षों के कारण घरों में चमगादड़ आने की शिकायत की थी जिसको आधार बना कर सोसायटी ने सभी वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलवा डाली। देखने में ही यह बहाना काफी बेतुका-सा लगता है। इसी तरह दूसरा बहाना घरों में धूप के न आने का लगाया जा रहा है, जो सैंट्रल टाऊन के कुछ निवासियों की ओर से है। ऐसे बहानों की आड़ में पर्यावरण को यूं तहस-नहस कर देना किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता।

वृक्षों को सिर्फ थोड़ा-थोड़ा छांगने की बात हुई थी, मस्त राम पार्क में तो वृक्षों का बुरा हाल कर डाला
इस मामले में जब मस्त राम पार्क क्षेत्र की पार्षद रजनी बाहरी के पति सलिल बाहरी से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने माना कि मस्त राम पार्क के बीच और आसपास लगे बड़े-बड़े वृक्षों को बुरी तरह काटा जाना गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए था। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में रहने वाले कुछ लोगों ने अपने घरों में चमगादड़ आने की शिकायत करते हुए वृक्षों को थोड़ा-थोड़ा छांगने की बात अवश्य की थी परंतु वृक्षों की हरियाली को बिल्कुल ही खत्म कर देना निंदनीय है।

निगम को कोई जानकारी नहीं, अब एफ.आई.आर. करवाने की तैयारी
अंदरुनी शहर के दो बड़े पार्कों में लगे 100 के करीब बड़े-बड़े वृक्षों को दिन के उजाले में सरेआम काट दिया जाता है परंतु शहर में लगे वृक्षों की रखवाली के जिम्मेदार नगर निगम के अधिकारियों को इसकी कोई खबर नहीं है। जब इस पत्रकार ने निगम के हॉर्टीकल्चर विभाग के एक्सियन दलजीत सिंह से सम्पर्क किया तो उन्होंने ऐसी किसी प्रकार की जानकारी होने से इंकार करते हुए कहा कि बड़े वृक्ष को बुरी तरह काटने पर एफ.आई.आर. करवाई जा सकती है। निगम का स्टाफ बुधवार को सुबह दोनों पार्कों में जाकर स्थिति का जायजा लेगा और उसके बाद एफ.आई.आर. करने की सिफारिश की जाएगी।

शहरों में आकर कश्मीरी लक्कड़हारे करते हैं यह काम
सर्दियों के दिनों में अक्सर वृक्षों को अवैध रूप से काटे जाने के समाचार मिलते रहते हैं परंतु इन्हें स्थानीय लोगों द्वारा नहीं बल्कि उन कश्मीरी लक्कड़हारों द्वारा काटा जाता है जिन्हें इस काम में विशेष महारत हासिल है। ऐसे लक्कड़हारे दो-तीन व्यक्तियों के झुंड में गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले घूमते हैं और उनके पास कुल्हाड़ी, आरी जैसे हथियार होते हैं। वृक्षों से परेशान लोग इनसे सौदेबाजी कर लेते हैं। बदले में यह थोड़े पैसे और लकड़ी इत्यादि लेकर रफूचक्कर हो जाते हैं और इन पर कोई केस भी नहीं बन पाता।

जालंधर में मात्र 5 प्रतिशत भी नहीं है ग्रीन कवर
पर्यावरण से संबंधित कानूनों की बात करें तो यह अत्यंत सख्त हैं परंतु इन्हें लागू करने वाली मशीनरी इस ओर ध्यान नहीं दे रही। केन्द्र सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन और अन्य योजनाओं हेतु शहरों में कम से कम 15 प्रतिशत ग्रीन कवर एरिया अनिवार्य कर रखा है परंतु जालंधर में ग्रीन कवर मात्र 5 प्रतिशत भी नहीं है। अगर ऐसे ही पार्कों में लगे पेड़ों को काटा जाता रहा तो ग्रीन कवर एरिया और भी कम हो सकता है।

बेंगलूरू तथा साऊथ के अन्य शहरों से ही कुछ सबक ले लो जालंधर वालो, पेड़ न बचे तो सांस कहां से लोगे
जो शहर निवासी साऊथ इंडिया के शहरों विशेषकर बेंगलूरू इत्यादि आते-जाते रहते हैं उन्हें पता होगा कि उन शहरों में पेड़ों को किस प्रकार पूजा जाता है और उनका संरक्षण किस भावना से किया जाता है वहां एक पेड़ को काटना एक मानवीय कत्ल के समान समझा जाता है इसलिए वहां अक्सर किसी पेड़ को बचाने के लिए घर या बिल्डिंग तक का डिजाइन बदल दिया जाता है ताकि पेड़ को काटना न पड़े परंतु उत्तरी भारत के शहर जालंधर में ज्यादातर लोगों को वृक्षों की अहमियत तक पता नहीं है। ऐसे शहरों में अब भी अगर लोग जागरूक न हुए तो आने वाले समय में सांस तक लेना मुश्किल हो जाएगा।

Edited By

Sunita sarangal