पंजाब की तमाम मंडियों में आज से एफ.सी.आई. का बहिष्कार
punjabkesari.in Thursday, Oct 01, 2020 - 09:22 AM (IST)
जालंधर(एन.मोहन): एक अक्तूबर से पंजाब के आढ़ती केंद्रीय खरीद एजैंसी भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) का बहिष्कार कर रहे हैं। सभी व्यापारियों को उन तमाम खरीद मंडियों में एफ.सी.आई. को फसल न बेचने का निर्णय हुआ है, जहां पर पंजाब सरकार ने एफ.सी.आई. को खरीद के अधिकार दिए हैं।
व्यापारियों का यह फैसला केन्द्र सरकार के फसल संबंधी नए नियम के विरुद्ध किया गया है, जिसके तहत केन्द्र ने अप्रैल-मई माह में हुई गेहूं की खरीद में मजदूरों की मजदूरी, फसल की संभाल और आढ़तियों के कमीशन की 105 करोड़ की राशि रोक ली थी, जिसे करीब 5 महीने गुजरने के बाद भी नहीं दिया गया। फैडरेशन ऑफ आढ़ती एसोसिएशन ऑफ पंजाब के अध्यक्ष विजय कालड़ा ने बताया कि व्यापारी सिर्फ पंजाब की एजैंसियों को ही फसल देंगे, जबकि किसानों से अपील की गई है कि वे उन मंडियों में फसल ही न लाएं, जहा पर एफ.सी.आई. ने खरीद करनी है।
कालड़ा ने बताया कि पंजाब के व्यापारी अपने राज्य के नियमों को मानें या फिर केन्द्र सरकार के नियमों को, इसी बात पर केन्द्र अब व्यापारियों को परेशान कर रहा है। पंजाब सरकार द्वारा वर्ष 1961 से ए.पी.एम.सी. (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्कीट कमेटी) अधिनियम लागू है और इसी एक्ट के अनुसार फसल की बोली लगने तक के खर्च फसल बेचने वाले के होते हैं परन्तु केन्द्र सरकार ने पंजाब की मंडियों में भी अपनी दखलअंदाजी शुरू कर दी है और लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया है। केन्द्र सरकार ने पंजाब के आढ़तियों के 105 करोड़ रुपए 5 माह से रोक रखे हैं।
इसी बात को लेकर फैडरेशन ऑफ आढ़ती एसोसिएशन ऑफ पंजाब का एक शिष्टमंडल अध्यक्ष कालड़ा की अध्यक्षता में चंडीगढ़ स्थित एफ.सी.आई. के महाप्रबंधक से मिला था और पंजाब सरकार के नियमों की कॉपी देकर स्थिति स्पष्ट की थी परन्तु एफ.सी.आई. ने पंजाब के एक्ट को नजरअंदाज कर दिया। बाद में 21 अगस्त को व्यापारियों ने एक दिन की हड़ताल करके केन्द्र को अल्टीमेटम दिया था कि अगर केन्द्र ने मनमानी की तो व्यापारी अक्तूबर में होने वाली धान की खरीद में सख्त फैसला लेंगे।
आढ़तियों का तर्क था कि जिन व्यापारियों ने पंजाब की खरीद एजैंसियों को फसल बेची थी, उन्हें तो राशि दे दी गई, परन्तु जिन व्यापारियों ने केन्द्रीय एजैंसी एफ.सी.आई. को फसल बेची उनकी राशि रोक ली गई। केन्द्र सरकार के इसी फैसले के विरुद्ध व्यापारियों ने आंदोलन का निर्णय किया है। कालड़ा ने यह भी कहा कि केन्द्र सरकार की पोल भी अब खुलती नजर आ रही है जिसमें केन्द्र सरकार ने कहा था कि किसान देश में कहीं भी अपनी फसल को बेच सकता है, परन्तु आज के ताजा मामले में हरियाणा सरकार ने उत्तर प्रदेश सीमा पर करीब एक हजार धान से भरी ट्रैक्टर-ट्रालियों को रोक रखा है, क्योंकि भाजपा शासित प्रदेश यू.पी. में धान एम.एस.पी. से कहीं नीचे बिक रही है और किसान हरियाणा में अपनी फसल बेचना चाहते हैं, परन्तु हरियाणा सरकार ने बैरीकेड लगा कर उन्हें अपने राज्य में आने से रोक रखा है क्योंकि हरियाणा सरकार ने मेरी फसल मेरा ब्यौरा के तहत सिर्फ हरियाणा के किसानों को ही एम.एस.पी. पर फसल बेचने की अनुमति दे रखी है।
पंजाब ने केंद्र सरकार के कृषि फसल नियमों को किया रद्द, किसान को नहीं मिलेगी आर्थिक राहत
पंजाब सरकार ने किसानी फसलों को लेकर केंद्र सरकार द्वारा किसानों के पक्ष में किया गया निर्णय पलट दिया है। केंद्र सरकार ने एक निर्णय में मंडी में फसल लाने वाले किसानों से फसल की उतरवाई, सफाई और मजदूरी न वसूलने को कहा था परंतु पंजाब सरकार ने एक पत्र जारी करके कहा है कि मंडी में फसल बिक्री से पहले होने वाले सभी खर्चे किसान को ही देने होंगे। यह राशि प्रत्येक फसल के दौरान 20 करोड़ के आसपास बनती है। सरकार के पत्र अनुसार खर्च की गई यह राशि अब एजैंसियों द्वारा जारी की जाती राशि की बजाय किसान से अलग से ली जाएगी।
वैसे पंजाब में पहले से ए.पी.एम.सी. (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्कीट कमेटी) अधिनियम लागू है और इस एक्ट के उपबंधों अनुसार जब किसान अपनी फसल मंडी में लेकर आता है तो उस फसल की उतरवाई, सफाई इत्यादि का खर्च किसान को ही देना पड़ता है। ऐसा 1961 से ही चला आ रहा है। परन्तु गत वर्ष केंद्र सरकार ने किसानों की फसल आय में वृद्धि के मकसद से ये तमाम खर्चे किसान से न लेने के निर्देश जारी किए थे परंतु इसके बावजूद पंजाब में ये खर्चे इस बार की गेहूं की फसल में किसानों से वसूले गए। इसी के चलते केंद्रीय खरीद एजैंसी भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) ने फसल खरीद करने वाले व्यापारियों की कमीशन व अन्य खर्चों की 105 करोड़ की राशि रोकली। एफ.सी.आई. ने स्पष्ट तौर पर कहा कि केंद्र सरकार के नियमानुसार जब तक व्यापारी किसानों से लिए खर्चे उनको वापस नहीं लौटाते तब तक उनकी राशि नहीं जारी की जाएगी। इसके चलते व्यापारी नाराज थे।
गौरतलब है कि मंडी में आने वाली फसल पर किसान से गेहूं पर 12 रुपए और धान पर 16 रुपए प्रति क्विंटल खर्च लिया जाता है। यह राशि किसान की फसल खरीद के बाद अदा की जाती राशि में से काट ली जाती है परंतु केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति की थी। इस टकराव को रोकने के लिए 2 दिन पहले सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक हुई जिसमें मुख्य सचिव विनी महाजन, मुख्य प्रमुख सचिव सुरेश कुमार, प्रमुख सचिव तेजबीर सिंह और गुरकीरत किरपाल सिंह, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारी और व्यापारी शामिल थे। बैठक में इस समस्या का समाधान इस प्रकार से किया गया कि केंद्र सरकार की बात भी मानी जाए और पंजाब की नीति भी वैसे ही रहे। इसके लिए पंजाब मंडी बोर्ड की तरफ से एक स्पैशल आधिकारिक पत्र जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि फसल बेचने वाले को फसल की बोली से पहले तक के होने वाले खर्च फसल उतरवाई, सफाई, ड्रैसिंग का खर्च फसल खरीदने वाले (व्यापारी) को देना होगा, जबकि व्यापारी किसान को फसल की पूरी राशि ही देंगे।