फाइनल परीक्षा के समय इस वजह से खौफ में महिला टीचर, विद्यार्थियों की बढ़ेगी चिंता

punjabkesari.in Monday, Jan 29, 2024 - 12:29 PM (IST)

अमृतसर : चुनावी दौर में अध्यापकों की इलेक्शन के संबंध में लगाई गई ड्युटियों के कारण जहां पर छात्रों की शिक्षा संबंधी मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं छोटे बच्चों के तो आने वाले भविष्य के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। लोकसभा के यह चुनाव उस अवधि के बीच होने जा रहे हैं, जब छात्रों की फाइनल परीक्षा का समय होता है। इन दिनों में चाहे कोई छोटी क्लास का बच्चा हो या कॉलेज का छात्र, पढ़ाई का पीक लोड चल रहा होता है। बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि इन परिस्थितियों में यदि छात्रों के समक्ष शिक्षक की उपस्थिति न हो तो उसके भविष्य की क्या उम्मीद की जा सकती है? इसमें एक तरफ तो महिला टीचर खौफजदा है, वहीं छात्रों का भविष्य भी अधर में पड़ने लगा है। 

बच्चों की परीक्षा की यदि समय-अवधि का आंकलन किया जाए तो इन दिनों लोग पारिवारिक सदस्यों की शादियां के मुहूर्त तक नहीं निकलवाते अथवा टूर के प्रोग्राम रद्द कर देते हैं। उधर दूसरी तरफ टीचरों की समस्या इससे भी अधिक विकराल है। एक तरफ उन्हें अपने छात्रों का सिलेबस पूरा करना होता है, वहीं दूसरी तरफ अपने बच्चों की पढ़ाई और रहन-सहन का पालन करना पड़ता है। टीचरों के अपने घरों में बैठे बुजुर्ग मां-बाप जो इन पर आश्रित होते हैं, उनकी सेवा भी उनके लिए सबसे ऊपर है। वहीं इलैक्शन के दौर में तो बुजुर्गों की भी दुर्दशा होने लगती है।

इस मामले में पंजाब यूनिवर्सिटी में लॉ-प्रोफैसर एवं पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट मैडम राबिया गुंद एवं हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट कंवर पाहुल सिंह ने कहा कि सरकार ने इस मामले में पहले भी आश्वासन दिया हुआ है कि चुनाव के दिनों में महिला टीचरों की ड्यूटियां नहीं लगाई जाएंगी। वहीं ड्युटियां भी लगाई जा रही हैं और बच्चों की परीक्षा के दिन सिर पर हैं। ऐसी परिस्थितियों में बच्चों के भविष्य की सुरक्षा कहां है? उपरोक्त हस्तियों का कहना है कि महिला शिक्षकों को चुनाव के संबंधित फील्ड-वर्क आदि अन्य काम करने का कोई तजुर्बा भी नहीं है। प्रशासन को इस मामले में महिलाओं की मजबूरी और भावनाओं को समझते हुए उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।

घर-घर जाकर बनाने पड़ते हैं महिला टीचरों को वोट

जहां पर महिला टीचरों की व्यथा की बात की जाए तो पारिवारिक महिलाएं जब घर-घर जाकर वोट बनाने के लिए पहुंचती है तो उन्हें कई प्रकार के लोगों का सामना करना पड़ता है। इससे भी बड़ी मुश्किल है कि चुनावी दौर में बड़ी संख्या में पिछड़े क्षेत्र में रहने वाले लोग अधिक गुस्ताख हो चुके होते हैं। इन परिस्थितियों में महिलाओं की सुरक्षा किस प्रकार होगी? यह एक बड़ा प्रश्न है।

प्राइवेट एजेंसियों के लिए जानी चाहिए मदद

सीनियर एडवोकेट एवं पूर्व पार्षद कुंवर राजेंद्र सिंह का कहना है कि इलेक्शन के दिनों में वोट आदि बनाने के लिए संबंधित प्रशासन को महिलाओं के हितों के मध्यनजर प्राइवेट एजेंसियों की मदद लेनी चाहिए। इन्हें उचित वेतन देकर अथवा कॉन्ट्रेक्ट बेस पर जॉब वर्क देना चाहिए, ताकि किसी के भविष्य का नुकसान न हो।

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News Editor

Kalash