डी.जी.पी की जान बचाने वाला पूर्व इंस्पैक्टर के बेटे को मिलेगी नौकरी

punjabkesari.in Tuesday, Apr 10, 2018 - 12:12 PM (IST)

अमृतसर(स.ह., नवदीप):‘पंजाब केसरी’ में प्रकाशित खबर  ‘मैं शहीद हो जाता तो कम से कम बेटे को नौकरी तो मिल जाती...’ पर संज्ञान लेते हुए बार्डर रेंज के आई.जी. एस.एस. परमार ने पूर्व सब इंस्पैक्टर के बेटे को नौकरी दिलाने के लिए डी.जी.पी. को पत्र  लिखा है।  
 

पंजाब केसरी’ के साथ बातचीत करते हुए आई.जी. ने कहा कि पंजाब पुलिस से सेवामुक्त सब इंस्पैक्टर गुरदीप सिंह की बहादुरी पंजाब पुलिस के लिए गौरव की बात है। तत्कालीन डी.जी.पी. सुमेध सैनी की जान बचाने वाले गुरदीप सिंह को ‘बहादुरी पुरस्कार’ ने नवाजा गया था। 72 वर्ष की उम्र में भी वह आज भी पंजाब पुलिस के लिए किसी मोर्चे पर जाने से पीछे हटने वाले नहीं है।

भले ही ड्यूटी के दौरान जिप्सी पलट जाने से उनकी रीढ़ की चोट उन्हें सीधा खड़ा होने में बाधा पहुंचा रही है, लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं। आई.जी. ने कहा कि पूर्व सब इंस्पैक्टर पंजाब पुलिस की शान है और हमें उस पर मान है। 

7 साल बाद सपना पूरा होता दिख रहा है पूर्व सब इंस्पैक्टर को 
‘पंजाब केसरी’ का धन्यवाद करते हुए गुरदीप सिंह कहते हैं कि 7 सितम्बर 2011 को परमदीप सिंह गिल (डी.जी.पी.) ने चिट्ठी नंबर 8635 में लिखा था कि मेरे बेटे को नौकरी दी जाए। पुलिस कमिश्रर अमृतसर ने भी पत्र नंबर 42884-914/ 11 अक्तूबर 2013 के तहत बेटे को नौकरी देने की सिफारिश की थी। 2011 से अब तक (7 साल) वह भटकता रहा, किसी ने नहीं सुनी। यहां तक की आई.जी. ने एस.एस.पी. देहाती से डिटेल मांगी थी, लेकिन करीब एक महीने बाद एस.एस.पी. कार्यालय से पत्र  आई.जी. आफिस तब पहुंचा जब ‘पंजाब केसरी’ ने उनकी आवाज बुलंद की। 

नाम सुनकर भागते थे आतंकी
पूर्व सब इंस्पैक्टर गुरदीप सिंह ने कहते हैं कि हालात ने मुझे मजबूर किया वरना आतंकी मेरा नाम सुनकर भागते थे। मैंने इन्हीं हाथों से 12 आतंकवादी गिरफ्तार किए। 2 आतंकवादियों को 2-2 साल के लिए नजरबंद करवाया और 45 आतंकवादियों को स्पेशल कोर्ट से सजा दिलाई। 1988 में आतंकियों की सूचना मिलने के बाद जब दलबल के साथ गिरफ्तार करने जा रहे थे तभी जीप पलट गई और रीढ़ में ऐसी चोट लगी कि आज भी सीधा खड़ा नहीं हो पा रहा हूं। 2003 में सेवामुक्त होने  के बाद अपने बेटे की नौकरी के लिए दर-दर भटक रहा था। भला हो आई.जी. और ‘पंजाब केसरी’ का जिन्होंने मेरी आवाज सुनी। 

swetha