जी.एस.टी. बिल की डाऊन हो रही वैल्यू से विभाग की मुश्किलें बढ़ीं

punjabkesari.in Monday, Mar 06, 2023 - 02:01 PM (IST)

अमृतसर: जी.एस.टी. के 18 से 28 प्रतिशत के बिल 3 फीसद की दर में बिकने के कारण जहां पर दो नंबर का काम करने वाले लोगों के रास्ते सरल हो चुके हैं, वहीं जिसमें इसमें जी.एस.टी. विभाग की मुश्किलें भी बढ़ गई है। दो नंबरी बिल बेचने वालों के इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए जी.एस.टी. विभाग के पास फिलहाल कोई योजना नहीं है। इस दो नंबर के बिल को एक्सपोर्टर भी इस्तेमाल करके सरकार से पूरा रिफंड ले रहे हैं। दिल्ली, एन.सी.आर. के बड़े डीलरों और बिल सटोरियों के पास माल बेचने के बाद कंपनियों द्वारा दिया गया बिल उनके स्टॉक में सुरक्षित रह जाता है, जबकि कंपनियों द्वारा भेजा गया माल आने से पूर्व ही बिक चुका होता है। इसके उपरांत बचे हुए बिल को बेचने की डीलिंग शुरू हो जाती है। इसका सीधा असर पंजाब पर पड़ रहा है, क्योंकि जो भी माल दिल्ली अथवा एन.सी.आर. की मंडियों से मंगवाया जाता है उनमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो इस प्रकार के बिल का प्रयोग कर रहे हैं। विभाग इसे चैलेंज करने में असमर्थ है, क्योंकि बिल की पृष्ठभूमि में इसकी टैक्स अदा की गई है लेकिन माल बिना बिल के निकल गया है।

जी.एस.टी. बिल के उत्पादक हैं मल्टीनेशनल कंपनियां

मल्टीनेशन कंपनियां अथवा कारपोरेट ग्रुप द्वारा भेजा गया माल दिल्ली अथवा बड़ी मार्केटों में पहुंचता है तो वहां के होलसेलर व धनकुबेर माल की खेप आते ही दूसरे प्रदेशों में माल को बिना बिल ही बेच देते हैं। दो नंबरी ट्रांसपोर्टरों के माध्यम से भेजे गए सामान के बाद पक्का बिल उनके पास बच जाता है, जबकि माल की कीमत जी.एस.टी. लगाकर ही पहले चरण में ही वसूल कर ली जाती है। अन्य प्रदेशों से माल खरीदने वाले लोग बिल को इसलिए अपने खाते में नहीं डालते, ताकि उनकी सेल पिछले वर्षों की अपेक्षा न बढ़ जाए। इसमें आयकर विभाग का डर भी मायने रखता है। वहीं स्टोरिए के पास बिल डिपॉजिट हो जाता है, जबकि स्टॉक बिक चुका होता है।

उधर बचे हुए 28 प्रतिशत वैल्यू के जी.एस.टी. बिल को वहां के लोकल डीलरों को बेचा जाता है। जी.एस.टी. लागू होते समय इस प्रकार के बिल की कीमत ज्यादा थी और 28 प्रतिशत का बिल 10 प्रतिशत में मिलता था। वहीं अब इसकी मार्किट ग्राउंड फ्लोर वैल्यू 2-3 प्रतिशत से भी कम आ चुकी है।

कई निर्माता ले जाते हैं बिना टैक्स दिए बिल के रिफंड

कच्चा माल जब निर्माता के पास आता है तो उसके बाद माल को प्रोडक्ट बनाने के लिए निर्माता को कई प्रोसैसिंग यूनिटस से गुजारना पड़ता है। जब अगली प्रोसैसिंग में सामान को भेजा जाता है, तब 12 प्रतिशत टैक्स सरकार को अदा करना होता है। उदाहरण के तौर पर यदि 90 रुपए प्रति किलो का कच्चा माल तैयार होने के बाद 500 रुपए की कीमत बना जाता है तो 410 रुपए पर सरकार को अतिरिक्त तौर पर प्रोसेसिंग टैक्स देना पड़ता है। उधर, बड़ी संख्या में शातिर और घाग किस्म के निर्माता 2 प्रतिशत का बिल मार्केट से खरीद कर अपने अकाउंट में डाल देते हैं और मैन्युफैक्चर से ट्रेडर दर्शा कर अपना काम चला जाते हैं। इसके उपरांत 18/28 प्रतिशत सरकार के खाते से रिफंड ले जाते हैं। इस प्रकार के एक्सपोर्टर से तो सरकार को दोहरी मार पड़ती है।

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News Editor

Urmila

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