जीना इसी का नाम है: चलने-फिरने से लाचार फिर भी कर रहे हैं ये काम

punjabkesari.in Thursday, Dec 05, 2019 - 06:50 PM (IST)

होशियारपुर (अमरेन्द्र): आज के जमाने में कई लोग तो ऐसे भी हैं जो शरीर से पूरी तरह परफेक्ट होते हुए भी मेहनत किए बिना बड़े-बड़े मुकाम पाना चाहते हैं लेकिन कुछ लोग चलने-फिरने से लाचार होते हुए भी अपनी मंजिल को पाने के लिए लगन से जुट जाते हैं। किसी ने सही कहा है कि दिव्यांग शरीर नहीं बल्कि सोच है। यह साक्षात उदाहरण होशियारपुर के साथ लगते गांव बस्सीगुलाम हुसैन के किसान करनैल सिंह पर सटीक बैठती है। रीढ़ के हड्डी में लगी गंभीर चोट की वजह से करनैल सिंह चलने फिरने के काबिल नहीं रहे लेकिन उन्होंने मुश्किलों के आगे हथियार नहीं डाल चुनौतियों से दो-दो हाथ करने का निर्णय लिया। आज करनैल सिंह भले ही चलने -फिरने से लाचार हैं पर ट्राईसाइकिल पर सवार हो अपने 3 एकड़ की जमीन पर जैविक खाद के जरिए सब्जियों की खेती कर ना सिर्फ मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि अपने बेमिसाल जज्बे से अपने जैसे लोगों के लिए एक मिसाल भी कायम कर रहे हैं।



बुलंद हौसलों के मालिक हैं करनैल
बस्सीगुलाम हुसैन गांव में प्रगतिशील किसान करनैल सिंह ने बताया कि 18 मई 2018 को जब वह अपनी स्कूटर से शहर की ओर जा रहा था तो अचानक उसके उपर पेड़ की टहनी आ गिरी। हादसे में गंभीर चोट लगने से परिजनों ने पहले सिविल अस्पताल व बाद में बेहतर इलाज के लिए डी.एम.सी.लुधियाना भेज दिया। लुधियाना में बताया गया कि उसके रीढ़ के हड्डी के 27 मनके हिल गए हैं अत: आप चल फिर नहीं सकोगे। इलाज के दौरान मेरी ही तरह लाचार लोगों को देख मन में ठान लिया कि वह बिस्तर पर पड़े पड़े जीवन नहीं गुजारेगा। परमात्मा ने जब भेजा है तो यह हादसा भी उनके मर्जी से ही हुई होगी। हमारा शरीर भले ही दिव्यांग हो गया है लेकिन बुलंद हौसला तो है मेरे पास।

मुश्किलें तो आई लेकिन नहीं छोड़ा हौसला
करनैल सिंह ने बताया कि वह गांव में पहले भी मजदूरों से काम लेते हुए खेती किया करता था। अब चले-फिरने से लाचार हो गया तो बिस्तर पकडऩे की बजाए क्यों ना मजदूरों से पहले की ही तरह काम लेते हुए खेती करु। यही सोच उसने मजदूरों को मोबाइल फोन दे खेत में लगी सब्जियों का फोटो खींच उसे देख मजदूरों को निर्देश देने लगा। कैमीकल खाद की जगह उसने जैविक खाद से सब्जियां उगानी शुरू  कर दी।। बस सिलिसिला चल पड़ा तो सभी मुश्किलें भी पीछे हटनी शुरू  होती चली गई।



हाथों हाथ बिक जाया करती है सब्जियां
करनैल सिंह ने बताया कि जब लोगों को पता चला कि वह जैविक खेती से सब्जियां उगाता है तो शहर के कई लोग मेरे पक्के ग्राहक बन गए। सब्जियां होटलों तक जानी शुरू  हो गई। कई बार ज्यादा सब्जी होने पर उसे बड़ी मंडी में थ्री व्हीलर से भेज देता हूं जहां से उसे नगद पैसे भी मिल जाता है। करनैल सिंह ने कहा कि मैं अपने आपको कभी दिव्यांग हुं सोंचता ही नहीं हुं क्योंकि दुनियां में कई लोग मेरे से भी बदतर हालात में जी रहे हैं। आगे बढऩा है तो आप अपने हौंसलों को कभी ना छोड़े। जीवन में सफलता अवश्य मिलेगी यह तय है।

Mohit