1947 के मंजर को याद करके आज भी कांप उठता है ये परिवार, पढें पूरी खबर

punjabkesari.in Thursday, Aug 15, 2019 - 12:53 PM (IST)

बरनालाः देश को आजाद हुए 72 वर्ष बीत गए है। सारे देश में यह दिन बड़े चाव से मनाया जाता है परंतु एक खुशी के साथ दूसरी दुखदायी कहानी बंटवारे वाली भी जुड़ी हुई है। पक्खोकलां का गुरदेव  खां अभी भी इस बंटवारे के घावों को सीने से लगाकर जिंदा घूम रहा है। उसकी आंखों के सामने उसका नानका परिवार मारा गया, जो बचे थे वे बिखर गए।


उस मंजर को याद करके उसकी अब भी रूह कांप उठती है। पक्खोकलां में पैदा हुआ 85 वर्षीय गुररदेव खां बताता है कि हमले के समय उसकी आयु 12-13 वर्ष की थी। 3 वर्ष आयु में माता के निधन के साथ उसके दुखों का सफर शुरू हुआ था। उसकी माता गांव पक्खोकलां में तानी का काम करती थी उसको नानके घर गांव कोठा गुरु में छोड़ दिया गया। उसके अनुसार देश के बंटवारे के कुछ समय बाद ही दंगे शुरू हो गए। उस समय वह नानके घर भैंसे चराता था। उन्होंने पाकिस्तान की तरफ जाने का फैसला लिया व अपने परिवार के साथ जत्था बनाकर किसी अज्ञात जगह पर चले गए। अभी उन्होंने 15 किलोमीटर का सफर ही तय किया था कि आगे दोदा गांव के पास एक जत्थे ने उनको घेर लिया। अफरा-तफरी में वह अपने परिवार से बिछड़ गया।

इस घेरे में उसकी नानी व मामा की लड़की को जत्थे वाले ने मार दिया। उसके दोनों मामा जान बचाकर भाग गए। उसके पास आगे जाने के लिए कोई रास्ता नहीं था, जिस कारण वह वापस भाई रूपा आ गया। तीसरे दिन खेतों में चारा काटने आए गांव के व्यक्ति जगजीत सिंह की नजर पड़ गई जो उसको जानता था, वह उसको इलाके के प्रसिद्ध व्यक्ति नाथा सिंह की हवेली में छोड़ आया। हवेली में और भी लगभग 50 मुसलमान परिवार पनाह लेकर बैठे थे। जिस पर बूटा सिंह व नछत्तर सिंह नामक व्यक्ति हमला करने की फिराक में थे परंतु नत्था सिंह के आगे एक न चली। आखिर उन्होंने एक रात बाहर से जत्था लेकर हवेली पर धावा बोल दिया। दोनों तरफ से लड़ाई में कुछ मुसलमान परिवार मारे गए व नत्था सिंह गोली लगने से मारा गया। 2 महीने वह गांव में रहा परंतु उसको अपने परिवार बारे कुछ पता नहीं था कि कौन मारा गया कौन जीवित है।जगजीत सिंह उसको अपनी रिश्तेदारी में मझूके गांव छोड़कर आया। गुरदेव खां बताता है कि उसका अपनी मौसी नेको से मेल हुआ जिसने उसके पिता को सूचना भेजकर मेरे जिंदा होने का प्रमाण दिया। उसका पिता भी हमले के डर से पखोकलां छोड़कर  रूडे़के खुर्द जा बसा था। 

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