महंगाई घर की रसोई में नहीं, बाजारी व्यंजनों में बरसते रहे ‘अंगारे’
punjabkesari.in Saturday, May 18, 2024 - 11:37 AM (IST)

अमृतसर (इन्द्रजीत): एक कहावत बन चुकी है कि महंगाई बहुत है। विशेष करके यदि खाने-पीने की चीजों की बात की जाए तो लोग यही कहते दिखाई देते हैं कि पैसे में अब ताकत नहीं रही। वहीं वास्तविकता की है कि महंगाई खाने का सामान बनाने वाले रॉ-मैटेरियल में नहीं बल्कि तैयार करने वाले लोग महंगाई को बढ़ा रहे हैं।
इस संबंध में बुद्धिजीवी विश्लेशको का कहना है कि खाने-पीने के समान के रेट इतने बढ़ा दिए गए हैं कि लोग सोचने पर मजबूर हो रहे हैं कि आखिर इन पदार्थों में लगा क्या है? वास्तविकता है कि जो वस्तु में रसोई में बन जाती है उन पर कोई महंगाई नहीं है। एक सामान्य भोजन करने वाला व्यक्ति रसोई के खाने से 10 रुपए में पेट भर लेता है। वहीं यदि घर से खाना-खाए बिना बाजार निकल चलो तो जेब खाली अवश्य होगी। कभी पिछले वर्षों में बच्चों को इतवार की शाम 100-50 में भरपेट खिला-पिला कर घर लाया जाता था, लेकिन आज बच्चों को बाहर से नाश्ता करवाना अथवा शाम को खाने पीने की चीजों का स्वाद चखाना हजारों में पड़ता है। पहले समय में यदि बाहर से आए मेहमान को किसी रेस्टोरैंट में खाना खिलाना एक सम्मान माना जाता था, लेकिन वर्तमान समय में यदि तीन-चार परिवार किसी बड़े रेस्टोरैंट में बैठ जाएं तो पुराने समय के छोटे-मोटे शादी ब्याह जितना खर्चा पड़ जाता है।
नॉनवेज ने तोड़ी महंगाई की हदें, लागत से 6 गुना वसूली
आमतौर पर आज भी बड़ी संख्या में ऐसे घराने हैं, जो अपने घरों में नॉनवेज के व्यंजन तैयार नहीं करते और ज्यादातर नॉनवेज के शौकीन बाहर से ही इसका स्वाद लेते हैं। चाहे चिकन हो या मटन, फिश हो या बिरयानी, कोई भी चीज बाजार में ऐसी उपलब्ध नहीं है, जिसकी बनी हुई की कीमत अपनी असल लागत मटेरियल से 6 गुणा ज्यादा न हो। नॉनवेज की दुकानों पर लगी हुई रेट लिस्ट देखकर अच्छे-अच्छे दिलेर दिलों की भूख उड़ जाती है। कई स्थानों पर तो मछली की कीमत 2500 रुपए किलो से अधिक है। पुराने समय में शहर का जिलाधीश खाने-पीने की चीजों का अनुमान लेकर अधिक वसूली करने पर कार्रवाई भी करता था, लेकिन शायद यह प्रथा अब खत्म हो चुकी है।
11 रुपए के दो एंड अंडे.., आमलेट 100 रुपए
प्रत्येक व्यक्ति को पता है कि इस समय बाजार में दो अंडों की कीमत 11 रुपए है। इसमें पांच-सात रुपए का मैटीरियल डालकर इसे फ्राई किया जाता है। मात्र 2 मिनट में तैयार हो जाने वाला आमलेट टी-स्टॉल और रेस्टोरैंट पर 100 रुपए में बिकता है।
पिज़्ज़ा की कीमत 300 से 500 रुपए
50 से 75 रुपए तक मटीरियल की लागत में बनने वाला बच्चों का फेवरेट खाद्य पदार्थ यानि फास्ट फूड ओपन मार्किट में 300 से 500 रुपए तक मिलता है। वहीं यदि इस लोकप्रिय फास्ट फूड को घर पर तैयार किया जाए तो इसकी लागत मात्र 50 से 75 रुपए आती है।
पूरी/भटूरे की प्लेट 100/120 रुपए
पिछले वर्षों में 10 में मिलने वाली पूरी/भटूरे अब एक प्लेट यानि 2 पीस की कीमत बाजार में 100 से लेकर 120 रुपए तक है। कई बड़े रेस्टोरैंट में तो इसका चार्ज डेढ़ गुना है।
गरीबों का चाय का कप भी हुआ कड़वा!
आए हुए अतिथि का स्वागत करने और अपरिचित तौर पर यदि दो चार बातें करनी हो तो चाय का कप एक सस्ता विकल्प है और यदि घर में चाय का कप बनाया जाए तो इसकी लागत 3 से 4 रुपए तक होती है। वहीं बाजार में किसी टी-स्टाल पर पहुंच जाओ तो कड़क से 20 से 30 रुपए प्रति चाय के कप के मांग लिए जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में गरीब आदमी के लिए तो चाय का कप भी ‘बेस्वाद’ हो गया है।
शुगर फ्री पदार्थों पर भारी लूट!
देखा जाता है कि शुगर के मरीज मिठाई आदि नहीं खा सकते और न ही उनके व्यंजन घर पर तैयार होते हैं। मात्र परहेज के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। इसका लाभ उठाते शहर के अंदरूनी हिस्से में कई स्वीट शॉप के मालिक है, जो 800 रुपए किलो तक चने की दाल की शुगर-फ्री बर्फी बेचते हैं। बिहार से आए अमृतसर में एक टूरिस्ट परिवार ने कहा कि 600 रुपए किलो बादाम की गिरी मिल जाती है और चने की बर्फी 800 की?
पुरानी विरासती चीजें अभी भी हैं सस्ती !
पुराने समय के विरासती व्यंजन बनाने वाले शायद अब भी भगवान से डरते हैं। शायद यही कारण है कि पुराने समय का भट्टी वाला अमृतसरी कुल्चा-छोले, अमृतसरी आलू वाला कुल्चा (मक्खन वाला) और नान, समोसा, सतपुड़ा, कचोरी और हवाई पूड़ी, मट्ठी छोले, आलू टिक्की गोलगप्पे, खट्टे वाले मुंगरा लड्डू, गोलगप्पे आज भी सस्ते हैं। ऐसे पदार्थ अमृतसर की शान माने जाते हैं। वहीं उन्नत इलाकों में टी-स्टॉलों और रेस्टोरैंटों ने तो महंगाई की हद ही कर दी है।
क्या कहते हैं जिला फूड सप्लाई कंट्रोलर
इस संबंध में जिला फूड सप्लाई विभाग के कंट्रोलर सरताज सिंह चीमा ने कहा कि इस प्रकार की दर्जनों शिकायतें आ रही है कि लोग खाने-पीने की चीजों में आम जनता का शोषण कर रहे हैं, यहां तक कि बाहर से आए टूरिस्टों को भी बुरी तरह से ठगा जाता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए विशेष तौर पर टीमें तैयार की जाएंगी, जो इस बात का आकलन करेंगे की किस चीज पर कितना बनाने में खर्च आता है और कितने में बेची जाती है। उन्होंने कहा कि कोविद-19 के समय में भी उपभोक्ताओं से अधिक रेट वसूलने पर कई खाद्य पदार्थ और दवा विक्रेताओं पर जुर्माने डाले गए थे।
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