महिला दिवस : शक्ति का नाम ही नारी है, जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझ से हारी है

punjabkesari.in Sunday, Mar 08, 2020 - 09:07 AM (IST)

जालंधर(शीतल): ‘कोमल है कमजोर नहीं तू, शक्ति का नाम ही नारी है, जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझ से हारी है।’ नारी उस शक्ति का नाम है जो एक मां, बहन, पत्नी व बेटी के रूप में सदैव सबको सुख देने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देती है। सदियों से ही भारत में महिलाओं का सम्मान किया जाता है। घर की रसोई से लेकर परिवार के हर सदस्य की जरूरतों की पूर्ति करने की जिम्मेदारी बखूबी संभालने की वजह से उसे ‘अन्नपूर्णा’ व ‘गृहलक्ष्मी’ के नाम से भी पुकारा जाता है। 

भारतीय संस्कृति में तो यहां तक भी कहा जाता है:-
‘यस्य पूज्यतें नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’
अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां स्वयं ईश्वर निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में तो नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है। घर में कन्या के जन्म पर उसे देवी लक्ष्मी के आगमन के रूप में देखा जाता है। घर, समाज और परिवार की इसके बिना कल्पना करना भी असंभव है। 

संगीत, साहित्य, शिक्षा, फिल्म, राजनीति, खेलों व अन्य कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके अपनी धाक जमाई है। कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो महिलाएं नहीं कर सकतीं फिर चाहे वह प्लेन उड़ाने का हो या फिर अंतरिक्ष तक जाने का सफर हो। आर्मी, एयर फोर्स, पुलिस, आई.टी., इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे कठिन माने जाने वाले क्षेत्रों में भी वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं।

इस वर्ष का थीम  
हर वर्ष महिला दिवस का एक थीम निर्धारित किया जाता है। इस वर्ष का थीम है ‘आई एम जैनरेशन इक्वैलिटी : रिलाइजिंग वुमैन्स राइट्स।’ इसका भाव है कि दुनिया का हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, समुदाय, लिंग या देश से क्यों न हो, सब बराबर हैं। 

कैसे हुई अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरूआत 
1909 में सोशलिस्ट पार्टी आफ अमेरिका ने 28 फरवरी को महिला दिवस मनाया था। आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने अपने मताधिकार, सरकारी कार्यकारिणी में स्थान, नौकरी में भेदभाव को खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग को लेकर रैली निकाली जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचारों को रोकना था। यह दिन उन महिलाओं की स्मृति में मनाया जाता है जिन्होंने महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने के लिए संघर्ष किया था। संयुक्त राष्ट्र संघ महिलाओं के समानाधिकारों को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर की महिलाओं के लिए कुछ नीतियों, कार्यक्रमों व मापदंडों को निर्धारित करता है। 

वर्तमान स्थिति 
आज समाज में बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं समझा जाता। बेटे के जन्म पर जितनी खुशियां मनाई जाती हैं उससे दोगुनी खुशी बेटी के जन्म पर होती है। इसकी वजह है कि जन्म से ही लक्ष्मी के रूप में परिवार में उसका स्वागत होता है। अपनी नाजुक, कोमल सी बातों से पहले अपना परिवार महकाए रखती है और शादी के बाद ससुराल घर की जिम्मेदारियों का निर्वाह भी बखूबी करती है। माना जाता है कि लड़की का जन्म तो एक घर में होता है पर अपनी कार्यकुशलता व व्यवहार से वह सबको अपना बनाने की ताक पर रखती है। 

कितनी अतिशयोक्ति है कि जहां समाज से लेने की बजाय स्त्री दूसरों की खुशी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है वहीं कहीं न कहीं समाज में औरत ही औरत की दुश्मन भी है। कहीं सास बहू पर अत्याचार करती है तो कहीं अत्याचारी बहू अपने वृद्ध सास-ससुर की सेवा करने की बजाय उन्हें परेशान करती है। 

Edited By

Sunita sarangal