चुनाव आयोग ने जलियांवाला बाग हत्याकांड शताब्दी समारोह मनाने की नहीं दी इजाजत

punjabkesari.in Thursday, Apr 11, 2019 - 11:14 AM (IST)

इलैक्शन डैस्क(सूरज ठाकुर):देश में हो रहा सबसे बड़ा लोकतांत्रिक पर्व क्या जलियांवाला बाग कांड में हुई हजारों लोगों की शहादत से बड़ा है? देश के सभी सियासी दल जो लोकसभा चुनाव में सत्ता पाने के लिए आतुर हैं क्या वे भूल गए हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में लाखों लोगों की शहादत के बाद ही सत्ता के हकदार बने हैं? ये प्रश्न इसलिए हैं कि चुनाव आचार संहिता के चलते चुनाव आयोग ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का शताब्दी समारोह बड़े पैमाने पर मनाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है। अब चुनाव प्रक्रिया खत्म होने के बाद ही बड़े स्तर के आयोजन हो पाएंगे।

इससे बड़ी शर्मनाक बात हमारे लोकतंत्र में क्या हो सकती है। हैरत तो तब होती है जब राष्ट्रवाद की दुहाई देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही सरकार द्वारा गठित जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट के चेयरमैन हों। मोदी चाहते तो सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बिना चुनाव आयोग के दखल के बड़े स्तर पर समारोहों का आयोजन करवा सकते थे। यह कार्यक्रम सभी देशवासियों का सांझा कार्यक्रम था। यहां फिर से इन पंक्तियों को दोहराने की आवश्यकता आन पड़ी है कि ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा...।’’ 

जलियांवाला बाग हत्याकांड 
19 अप्रैल, 2019 को जलियांवाला बाग हत्याकांड को 100 साल पूरे हो जाएंगे। इसी दिन पंजाब राज्य के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में जनरल डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने अंधाधुंध फायरिंग करके सैंकड़ों निहत्थे भारतीयों को मार डाला था और हजारों लोगों को घायल कर दिया था। इस हत्याकांड को अंजाम देने में 10-15 मिनट के भीतर कुल 1650 राऊंड गोलियां चलाई गई थीं। ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस घटना में कुल 379 लोग मारे गए थे लेकिन गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मरने वालों की संख्या 1000 से भी ज्यादा थी। गौरतलब है कि मार्च, 1919 में ब्रिटिश औपनिवेशक सरकार ने रोलेट एक्ट पारित किया जिसके तहत देशद्रोह के अभियुक्त को बिना मुकद्दमे के जेल में डालने का प्रावधान था। इसी का विरोध करने के लिए बाग में करीब 20,000 लोग एकत्रित हुए थे।

ऐसे शुरू होती है सियासत
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री की चेयरमैनशिप में चलने वाले जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक और पूर्व सांसद तरलोचन सिंह हैं। जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट को गैर-राजनीतिक बनाने के लिए एक प्रस्ताव पर केंद्र सरकार मोहर भी लगा चुकी है। राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम 1951 में व्यवस्था की गई थी कि इसका प्रमुख कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष रहेगा लेकिन 13 फरवरी, 2019 को इस व्यवस्था को संशोधन विधेयक के माध्यम से खत्म किया गया। इस पर भी कांग्रेस का आरोप है कि यह विधेयक सिर्फ  कांग्रेस अध्यक्ष को ट्रस्टी पद से हटाने के लिए लाया गया है। 

बड़े पैमाने पर मनाना चाहते थे शताब्दी वर्ष, चुनाव आयोग ने बांध दिए हाथ: अमरेंद्र
राज्य सरकार ने शताब्दी वर्ष बड़े पैमाने पर मनाने की योजनाएं तैयार की थीं लेकिन चुनाव आयोग ने राज्य सरकार के हाथ बांध दिए हैं। चुनाव आचार संहिता के चलते जलियांवाला बाग हत्याकांड समारोहों के आयोजनों की चुनाव आयोग अनुमति नहीं दे रहा है इसलिए 12 अप्रैल को शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कैंडल मार्च निकाला जाएगा। 13 अप्रैल की सुबह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आएंगे, वह स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे।

मोदी ने जलियांवाला बाग के लिए कुछ नहीं किया: सिद्धू
पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने बताया कि यूं तो केंद्र सरकार देशभक्ति और राष्ट्रवाद की बड़ी-बड़ी बातें करती है परंतु जलियांवाला बाग के गौरवमयी इतिहास की 100वीं वर्षगांठ को धूमधाम से मनाने को जलियांवाला बाग ट्रस्ट के चेयरमैन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज तक न तो खुद कुछ किया और न ही पंजाब सरकार को इस ऐतिहासिक धरोहर की डिवैल्पमैंट करने की परमिशन दी जिस कारण 100वीं वर्षगांठ को धूमधाम से मनाने की पंजाब सरकार की सारी तैयारियां धरी की धरी रह गईं।

ट्रस्ट के चेयरमैन होते हुए भी मोदी नहीं ले पाए सुध
जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट के चेयरमैन नरेंद्र मोदी ने खुद भी कभी बाग की सुध नहीं ली। हालांकि भाजपा लोकसभा चुनाव ही राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ रही है। केंद्र सरकार के देशभक्ति के जज्बे को सलाम है कि सरकार ने 100 करोड़ रुपए शताब्दी वर्ष के समारोहों को जारी करने का ऐलान कर रखा है। जानकारी के मुताबिक करीब 15 करोड़ रुपए भी जारी हो चुके हैं। स्मारक में न तो किसी प्रकार का कोई नवनिर्माण शुरू हुआ और न ही किसी तरह के समारोहों की शुरूआत हुई। अप्रैल, 2019 तक जलियांवाला बाग स्मारक में बंद पड़े लाइट एंड साऊंड प्रोग्राम, दर्दनाक हादसे को दर्शाती डॉक्यूमैंट्री फिल्म, लेजर शो और सोविनार हाल का नवनि र्माण भी ठंडे बस्ते में पड़ा है। सच्चाई तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शताब्दी समारोहों और बाग के सौंदर्यीकरण के लिए कोई ग्रांट जारी नहीं की।   

Suraj Thakur