13 अप्रैल को जानिए क्यों हरा हो जाता है देश को मिला यह पुराना जख्म
punjabkesari.in Thursday, Apr 12, 2018 - 04:04 PM (IST)
जालंधर/ अमृतसरः हर साल जब 13 अप्रैल की तारीख आती है तब-तब देश को मिला एक पुराना जख्म हरा हो जाता है। पंजाब में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने कई मासूम लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था। इस दौरान हजारों लोगों की मौत हो गई थी। इसी कांड के बाद देश को ऊधम सिंह तथा भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी मिले। आइए जानते हैं जलियांवाला कांड का इतिहासः-
बैसाखी पर बरसीं गोलियां
अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का त्याहौर मनाने के लिए लोग तथा श्रद्धालु श्री हरमंदिर साहिब आए हुए थे। उस दौरान अमृतसर में मार्शल लॉ लगाया गया था । जलियांवाला बाग में बाहर से आए नागरिक इकट्ठा हुए थे। वह इस बात से अनजान से थे कि अमृतसर सहित पंजाब में मार्शल लॉ लगाया जा चुका है। इसी दौरान जनरल डायर के आदेशों पर ब्रिटिश आर्मी ने निहत्थे लोगों पर फायरिंग कर दी। फायरिंग होती देख लोगों ने बाहर निकलने की कोशिशें भी कीं लेकिन रास्ता संकरी होने तथा बाहर निकलने के रास्ते बंद करने के चलते वह असफल रहे।
10 मिनट तक बरसीं थीं गोलियां
जनरल डायर के आदेश पर उनके सैनिकों ने भीड़ पर करीब 10 मिनट तक बिना रुके गोलियां बरसाई थीं। जब सेना के पास गोलियां खत्म हो गईं तब जाकर सीजफायर घोषित किया गया। इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। ब्रिटिश सरकार ने जो आंकड़ें जारी किए उसके मुताबिक 379 लोगों की मौत हुई थी और 1200 लोग घायल थे। जबकि बाकी सूत्रों का कहना था कि करीब 1000 से ज्यादा लोगों की मौत इस त्रासदी में हुई थी।
क्या थी वजह
प्रथम विश्व युद्ध के बाद फरवरी 1915 में ब्रिटिश इंटेलीजेंस को ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन की सूचना मिली थी। इससे आंदोलन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। भारत में भी कई छोटे-छोटे हिस्सों में विद्रोह शुरू हो रहा था। ब्रिटिश सरकार को उस समय इस आंदोलन को दबाने के लिए डिफेंस इंडिया एक्ट पास किया जिसके जरिए नागरिकों की ताकतों को सीमित कर दिया गया था। इस एक्ट के समर्थन में जनरल माइकल और डायर सबसे पहले आगे आए थे जो उस समय पंजाब के गर्वनर भी थे। इसके बाद 1919 में रोलेट एक्ट पास हुआ, जिसने पूरे देश में अस्थिरता पैदा कर दी थी।
जान बचाने को कुंए में कूदे थे लोग
जब जनरल डायल के आदेश पर गोलियां बरसाई जा रही थी उस समय कई लोग अपनी जान बचाने के लिए बाग में स्थित कुंए में कूद पड़े। इस कुंए को आज शहीदी कुएं के नाम से जानते हैं और यह आज भी बाग में मौजूद है। इसमें हिंदु, सिख और मुसलमान तीनों ही धर्मों के लोग शामिल थे।