मानव सभ्यता के इतिहास में एक कायरतापूर्ण कार्रवाई जलियांवाला कांड

punjabkesari.in Saturday, Apr 13, 2019 - 12:21 PM (IST)

अमृतसरः अमृतसर के दूर-दराज के गांवों से आए लोग, रोलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण सभा, जनरल डायर की गोलियां, नृशंस हत्याकांड, रोते-बिलखते बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और तड़पते नौजवान। हां, यह सब उन लोगों की करामात है जो दुनिया को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाते नहीं थकते। 21 मार्च, 1919 को ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट लागू कर दिया। इसका मतलब था क्रांतिकारियों के खिलाफ बंद कमरे में सुनवाई, बिना मुकद्दमा चलाए संदेह के आधार पर नजरबंद करना, सजा भुगतने के बाद भी बंदी इत्यादि। इस एक्ट के खिलाफ देश भर में आंदोलन शुरू हो गए जिसके मुख्य केन्द्र बने पंजाब और बंगाल।

अमृतसर में इस आंदोलन का नेतृत्व डा. सत्यपाल और डा. सैफुद्दीन किचलू के हाथों में था। अमृतसर की जनता के जोश को देखते हुए 29 मार्च, 1919 को एक आदेश जारी करके डा. सत्यापाल पर सार्वजनिक सभा में भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अगले ही दिन 30 मार्च को जलियांवाला बाग में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता डा. किचलू ने की। बस क्या था, 4 अप्रैल को डा. किचलू पर भी सार्वजनिक सभा में बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन क्रांति की ज्वाला को अंग्रेज रोक नहीं पाए। रोलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया जिसकी सफलता को देखकर पंजाब के तत्कालीन लैफ्टीनैंट (माइकल ओ’डायर) गवर्नर के होश उड़ गए।

लैफ्टीनैंट गवर्नर माइकल ओ’डायर के आदेश पर 11 अप्रैल की रात्रि 9 बजे अमृतसर पहुंचा वह क्रूर-वहशी जिसका नाम था ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडनर्ड डायर जिसे जनरल डायर के रूप में जाना गया। उसने राम बाग की बारादरी में अपना मुख्यालय स्थापित किया और डिप्टी कमिश्नर से शहर का प्रशासन अपने हाथों में ले लिया। उसने हर प्रकार की सभा पर प्रतिबंध लगा दिया और 4 से ज्यादा लोगों को एक साथ एकत्रित होने की भी मनाही कर दी।13 अप्रैल (रविवार) के दिन बैसाखी का पावन पर्व था और अमृतसर की जनता ने रोलेट एक्ट के खिलाफ तथा डा. सत्यपाल एवं डा. किचलू की नजरबंदी के विरोध में शांतिपूर्ण सभा का आयोजन जलियांवाला बाग में शाम को 4.30 बजे किया था जहां 25,000 से ज्यादा व्यक्ति एकत्रित हो चुके थे। कुछ लोग ऐसे थे जो बैसाखी का मेला देखने अमृतसर पहुंचे थे।

इधर सभा की शुरूआत हुई और उधर जनरल डायर को मुखबिर से सूचना मिली। वह शाम करीब 5 बजे 90 सैनिकों की टुकड़ी के साथ जलियांवाला बाग पहुंच गया जिनमें से 50 के पास आधुनिक राइफलें थीं। मशीनगनों से लैस 2 बख्तरबंद गाडिय़ां भी थीं। जिस समय 90 सैनिकों के साथ डायर ने जलियांवाला बाग में प्रवेश किया, उस समय लोगों के बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा था क्योंकि इस स्थान पर एकमात्र प्रवेश द्वार था, वह भी बहुत संकीर्ण था। कुछ समय तक डायर ने वहां की स्थिति का आकलन किया। तत्पश्चात 25 सैनिक अपने बाईं ओर 25 सैनिक दाईं ओर खड़े करके फायरिंग का आदेश दे दिया। करीब 10 मिनट तक बंदूकें आग उगलती रहीं। लोगों में भगदड़ मच गई, हर तरफ चीख-पुकार का माहौल बन गया। बाहर निकलने के एकमात्र रास्ते पर डायर और उसके सैनिक खड़े थे। बहुत सारे लोगों को गोलियां लगीं जिनमें स्त्री, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे। बहुत सारे लोग बाग स्थित कुएं में जा गिरे। आज यह कुआं शहीदी कुआं के नाम से जाना जाता है।

शांतिपूर्ण सभा कर रहे निहत्थे लोगों पर जनरल डायर की यह बर्बरतापूर्ण कार्रवाई मानव सभ्यता के इतिहास में एक कायरतापूर्ण कार्रवाई थी। गोलीबारी बंद होने के बाद बाग का ऐसा कोई कोना नहीं बचा था, जहां शवों का ढेर न लगा हो। सैंकड़ों घायल पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे थे। मौत के तांडव का यह खेल खेलकर डायर अपने दलबल के साथ वहां से चला गया और छोड़ गया विरानगी, गोलियों के निशान, जमीन पर बिछी लाशें और तड़पते-बिलखते लोग। इस घटना में करीब एक हजार से ज्यादा निर्दोष व्यक्ति शहीद हुए और कई हजार घायल होगए।

डायर ने बड़े गर्व से घोषणा की कि उसने यह कदम क्रांतिकारियों के मन में दहशत फैलाने के लिए उठाया था। लैफ्टीनैंट गवर्नर माइकल ओ’डायर ने ब्रिटिश भारतीय हुकूमत को सूचना दी कि पंजाब में 200 विद्रोहियों का सफाया किया जा चुका है। इंगलैंड लौटने पर डायर को बहादुर की भांति सम्मानित किया गया और उसके लिए फंड एकत्रित किए गए। अंग्रेजों ने तो इस तरीके से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया लेकिन इस बर्बर हत्याकांड ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह सरीखे वीर सपूतों के मन में क्रांति की ज्वाला भर दी।

आज जरूरत है हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को देश-प्रेम की भावना से प्रेरित कर नए भारत का निर्माण करने में उनकी प्रतिभा और शक्ति का प्रयोग करने की ताकि जलियांवाला बाग के शहीदों की आत्मा को शांति मिल सके तथा देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले वीरों और वीरांगनाओं के अधूरे सपने साकार किए जा सकें। आधुनिकता के नाम पर अंग्रेजी भाषा और संस्कृति को अपनाने का पाठ पढ़ाने वाले लोग जनरल डायर से कम नहीं हैं जोकि भारतीय सभ्यता, संस्कृति और भारत की महान परम्पराओं को जड़ से खत्म करने में माइकल ओ’डायर और लार्ड मैकाले से भी एक कदम आगे हैं जिनसे हमें सावधान रहने की जरूरत है। -प्रस्तुति विजय कुंवर प्रताप सिंह

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