Labour Day: चुनावी वादों में दब जाती हैं मजबूर हुए मजदूर की उम्मीदें !

punjabkesari.in Monday, May 01, 2023 - 01:13 PM (IST)

अमृतसर : कहने को तो देश आजाद है और आजादी से पहले हमारे देश के नेता कहते थे ‘अपनी सरकार आने के बाद सबसे पहले मजदूरों का उत्थान होगा। आज देश को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक मजदूरों की स्थिति वही की वही है। कई सरकारें आई और कई सरकारें बदली पर मजदूरों की दशा नहीं सुधरी। रास्ते में जहां भी देखें मजदूर दिवस के बावजूद भी मजबूर हो चुके मजदूर अपनी रोटी रोजी का जुगाड़ लगाते हुए जगह-जगह मेहनत मजदूरी करके अपने काम में खोए हुए हैं। कई मजदूरों से पूछने पर भी किसी को मजदूर दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं। मात्र नेता लोगों को अपनी नेतागिरी चमकाने और सुर्खियों में आने के लिए इस दिन की याद आ जाती है।

मजदूरों के हितों को मद्देनजर रखते हुए विश्वभर में मजदूर दिवस मनाया जाता है, लेकिन यह बातें सिर्फ आयोजन तक ही रह जाती है। वहीं जीवन से मजबूर हो चुके मजदूर की उम्मीदें और आकाक्षाएं चुनावी वायदों के नीचे दब जाती है। विदेशों की चर्चा की जाए तो वहां पर एक मजदूर की स्थिति पढ़े-लिखे व्यक्ति से कहीं अधिक बेहतर है। समृद्ध देशों में होटलों में बर्तन धोने वाला व्यक्ति दफ्तर में काम करने वाले बाबू से अधिक कमाता है। यही कारण है कि यहां का मजदूर जब भी मौका मिलता है थोड़े- बहुत पैसे का जुगाड़ करके गरीब देशों में मजदूरी कर लेता है। हैरानी की बात है कि छोटी अर्थव्यवस्था वाले खाड़ी के देश में मजदूरों की कदर करते हैं, लेकिन 2.84 ट्रिलियन डॉलर की क्षमता में विश्व की 7वीं अर्थव्यवस्था रखने का दावा करने वाला देश भारत मजदूरों के प्रति क्यों उदासीन है?

परिवार का पेट पालने के लिए पूरे दिन की कमाई काफी नहीं

मजदूर के हालात यह है कि एक मजदूर पूरा दिन काम करके अपने परिवार को 2 वक्त की रोटी नहीं दे सकता। यदि एक मजदूर सामान्य तौर पर दिन में 2 से 3 सौ कमा लेता है तो इतने पैसे में बड़ी मुश्किल से ही वह अपने परिवार को रोटी दे सकता है, जबकि इसके अलावा भी अनेक ऐसे खर्चे हैं, जिसे पूरा करने के लिए उसे कहीं न कहीं अपने परिवार का पेट काटना पड़ता है। कई बार मजबूरी में किसी सूदखोर से लिया ब्याज पर पैसा उसे पूरा जीवन गुलाम बना कर रख देता है।

छुट्टियों में हो जाती है हालत पतली

देखने वाली बात से समृद्ध लोग जब छुट्टियां होती हैं तो परिवार सहित मनाने के लिए दूरदराज इलाकों में जाते हैं। वहीं मजदूर इन छुट्टियों में किस प्रकार से अपना दिन काटता है, यह मजदूर और उसका परिवार जानता है। छुट्टियों के दिनों में मजदूर के पास कोई काम नहीं होता। उधर वर्षा आदि के दिन भी मजदूरों के लिए आफत बन जाते हैं।

केवल चुनावों में आती है मजदूरों की यादें

अपवाद के तौर पर मजदूरों के दिन चुनावों के समय में थोड़े से बहार में आते हैं, जब सभी दलों के नेता इनके दरवाजे पर पहुंचकर वोटों की भीख मांगते हैं। नजराने के तौर पर इन्हें थोड़ा बहुत दे जाते हैं और चुनाव जीतने के बाद ‘वही बूढ़ी घोड़ी और वही गंगू दास’ वाली मिसाल बन जाती है।

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News Editor

Urmila