जी.के ने इमरान खान को लिखा पत्र, कहा- पाक में गैर मुसलमानों के धार्मिक स्थानों पर भू-माफिया हावी

punjabkesari.in Friday, Nov 29, 2019 - 08:06 PM (IST)

चंडीगढ़: पाकिस्तान में गुरुद्वारों का रख-रखाव देख रही पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति को संपूर्ण खुद मुख्तारी देने की मांग उठी है। धार्मिक पार्टी जागो-जग आसरा गुरु ओट (जत्थेदार संतोख सिंह) के अंतरराष्ट्रीय प्रधान मनजीत सिंह जी.के ने इस सम्बन्ध में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास के माध्यम से भेजे एक पत्र में यह मांग उठाई है। साथ ही मौजूदा समय में पाकिस्तान समिति को रबड़ स्टैंप की तरह चला रहे इवैकई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (इ.टी.पी.बी.) का चेयरमैन किसी गैर मुसलमान को लगाकर सभी गुरुद्वारों की जमीनों का मालिकाना हक बोर्ड से पाकिस्तान समिति या गुरू ग्रंथ साहिब के नाम स्थानांतरित करने की वकालत भी की है। साथ ही गुरू नानक देव जी और महाराजा रणजीत सिंह के खिलाफ पाकिस्तान के मौलाना खादिम रिजवी द्वारा की गई ऐतराजयोग्य टिप्पणी के लिए रिजवी के खिलाफ ईश निंदा कानून के अंतर्गत मुकद्मा दर्ज करने की मांग की है। 

जी.के ने कहा कि इमरान खान ने करतारपुर कॉरिडोर को खोलकर सिख जगत की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। इमरान खान का नाम सिखों के दिलों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है। इसलिए सिख हितों के लिए और फैसले लेने के लिए इमरान को उदारता दिखानी चाहिए। इमरान के लिए सबसे बड़ा काम गुरू द्वारों की जमीनों का मालिकाना हक सिखों के मौजूदा गुरू श्री गुरु ग्रंथ साहिब के नाम स्थानांतरित करना सबसे अहम कार्य हो सकता है। इसलिए पाकिस्तान में खंडित हालत में पड़े अनगिनत ऐतिहासिक गुरुद्वारों का सुधार करने की जिम्मेदारी बोर्ड से लेकर समिति को पाकिस्तान सरकार द्वारा दी जानी चाहिए। क्योंकि बोर्ड इस समय भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है। यहां कारण है कि शर्णार्थी जमीनों को संभालने की जगह बोर्ड उन पर भूमाफिया का कब्जा करवाते हुए उनको खुर्द-बुर्द करने का माध्यम बन गया है। 

जी.के ने अफसोस जताया कि पाकिस्तान में अपने पवित्र स्थानों के दर्शनों के लिए विश्वभर से आते सिख श्रद्धालुओं को कुछ खास स्थानों के इलावा कहीं ओर जाने से रोका जाता है। जी.के ने बताया कि 1947 की बांट के बाद दोनों देशों में रह गई शर्णार्थी जमीनों की संभाल करने के लिए 8 अप्रैल 1950 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच एक समझौता हुआ था। जिसको नेहरू लियाकत पैक्ट 1950 के तौर पर जाना जाता है।

इस समझौते अनुसार पाकिस्तान से हिंदू और सिखों के आने के बाद उनकी तरफ से छोड़ी गई जायदाद और धार्मिक स्थानों को संभालने की जिम्मेदारी बोर्ड को दी गई थी। समझौते अनुसार बोर्ड के चेयरमैन पर पाकिस्तान में हिंदू या सिख को तथा भारत में मुस्लमान को चेयरमैन लगाने का फैसला हुआ था। परन्तु आज तक पाकिस्तान ने यह वायदा नहीं निभाया। साथ ही बोर्ड में 6आधिकारिक और 18 गैर आधिकारिक व्यक्ति नियुक्त होते हैं। जिसमें इस समय 8 आधिकारिक और 10 गैर आधिकारिक मैंबर मुसलमान है। केवल 8 गैर आधिकारिक मैंबर हिंदू या सिख हैं। यह नेहरू-लियाकत पैक्ट 1950 और पंत-मिरजा समझौता 1955 का उल्लंघन है। 

जी.के ने बताया कि बोर्ड के पास 109404 एकड़ कृषि जमीन और 46499 बने हुए भूखंड का कब्जा या प्रबंध है। पाकिस्तान के चीफ जस्टिस मिलन साकिब निसार ने दिसंबर 2017 में बोर्ड के भ्रष्टाचार पर सख्त टिप्पणी की थी। जब उनके पास कटासराज मंदिर की जमीन की दीवार में बोर्ड के पूर्व चेयरमैन आसिफ हासमी की तरफ से करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार करके पाकिस्तान से भागने का मामला सामने आया था। जी.के ने कहा कि बोर्ड का प्रबंध हिंदू या सिख को सौंपने का निजी बिल 2018 में रमेश कुमार वनकवानी नेशनल असेंबली में लेकर आए थे, परन्तु असेंबली की धार्मिक मामलों की स्टेंडिग समिति ने इसको रद्द कर दिया था। यही कारण है कि गुरुद्वारों और मन्दिरों की जमीनों पर गैरकानूनी कब्जा करवा कर उसका व्यापारिक प्रयोग बोर्ड के आधिकारियों की शह पर हो रहा है।

इस वजह से डेरा इस्माइल खान में श्मशानघाट की जमीन पर कब्जा होने से मुर्दों के अंतिम संस्कार की मुश्किल हो रही है। साथ ही यहां के काली बाड़ी मंदिर को बोर्ड ने एक मुसलमान के हवाले कर वहां ताज महल होटल खुला दिया है। जी.के ने कहा कि गुरू साहिबानों के साथ सबंधित कई अहम गुरुद्वारे इस समय खंडित हालत में हैं। जिनकी तस्वीरों हमारे पास हैं। इसकी संभाल करने के लिए पाकिस्तान समिति को बोर्ड के नौकर बनने से हटाके समिति को खुद मुख्तारी देनी चाहिए और समिति मैंबर चुनने का अधिकार पाकिस्तान की सिख संगत को मिलना चाहिए। 

Vaneet