पंजाब में वजूद को तरस रहे वामपंथी कई बार जीत चुके हैं चुनाव

punjabkesari.in Sunday, Apr 28, 2019 - 12:15 PM (IST)

चंडीगढ़(हरिशचंद्र):भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी भले ही अब पंजाब में अपने वजूद को तरस रही हैं लेकिन एक ऐसा भी दौर रहा है जब इनकी टिकट पर पंजाब से कई बार सांसद व विधायक चुने गए। इस समय मालवा इलाके में सीमित जनाधार तक सिमट चुके वामदलों का देश के दूसरे ही संसदीय चुनाव में पंजाब में खाता खुल गया था। 1957 के लोकसभा चुनाव में संयुक्त पंजाब की झज्जर सीट से सी.पी.आई. के प्रताप सिंह सांसद चुने गए थे।

1971 के लोकसभा चुनाव में तो 2 सांसद सी.पी.आई. से चुने गए थे। इनमें संगरूर से तेजा सिंह और बठिंडा (रिजर्व) सीट से भान सिंह भौरा शामिल थे। भौरा इसके बाद 1999 में भी सांसद चुने गए थे। इसी तरह सी.पी.एम. से भगत राम ने तत्कालीन फिल्लौर लोकसभा सीट से 1977 का चुनाव जीता था। इतना ही नहीं, पंजाब विधानसभा में भी कामरेडों की शुरू से हाजिरी रही है। यह अलग बात है कि बीते तीन विधानसभा चुनावों में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है।

1951 से लेकर साल 2002 के विधानसभा चुनाव तक पंजाब विधानसभा में कोई न कोई कामरेड विधायक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहा है। 2002 में आखिरी बार सी.पी.आई. की टिकट पर 2 विधायक गुरजंट सिंह कुत्तीवाल और नत्थू राम जीते थे लेकिन कुछ समय बाद ये दोनों ही कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जो उस समय कैप्टन अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व में सूबे में सत्तासीन थी। पिछले करीब डेढ़ दशक में वामदलों के खिसकते जनाधार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2007 में सी.पी.आई. ने 25 और सी.पी.एम. ने 14 उम्मीदवार खड़े किए लेकिन इन सभी की जमानत जब्त हो गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी यही दोहराया गया, जब सी.पी.आई. ने 23 और सी.पी.एम. ने 12 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई।

सी.पी.आई. का 1972 में रहा बढिया प्रदर्शन
वामदलों का पंजाब में स्वर्णिम दौर भी रहा है। सी.पी.आई. आजाद भारत के पंजाब में 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीत गई थी। 1957 में उसके 6, 1962 में 9, 1967 में 5, 1969 में 4 प्रत्याशी जीतकर विधायक बने थे। पंजाब विधानसभा में सी.पी.एम. का खाता थोड़ा देरी से खुला। वह 1967 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में तीन, 1969 में दो और 1972 में एक सीट पर जीती थी। 1977 और 1980 के विधानसभा चुनावों में दोनों वामदलों का कुल मिलाकर सबसे बढिय़ा प्रदर्शन रहा। 1977 में इनके 15 प्रत्याशी जीते थे, जिनमें 7 सी.पी.आई. और 8 सी.पी.एम. के थे। खास बात यह है कि सी.पी.एम. ने तब इन्हीं 8 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और उसका नतीजा 100 फीसदी रहा। 1980 में दोनों वामदलों से 14 प्रत्याशी विधानसभा चुनाव जीते, जिनमें सी.पी.आई. के 9 और सी.पी.एम. के 5 प्रत्याशी शामिल थे। सी.पी.आई. का अब तक का सबसे बढिय़ा प्रदर्शन 1972 में रहा, तब उसके 13 में से 10 उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।

यह सच है कि अतीत में सी.पी.आई. और सी.पी.एम. के कई प्रत्याशी लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीतते रहे हैं मगर तब अक्सर सी.पी.आई. और कांग्रेस में चुनावी तालमेल होता था। सी.पी.आई. के प्रति लोगों का रुझान हाल ही में कम नहीं हुआ, बल्कि सोवियत संघ के टूटने के साथ ही दुनियाभर में कम्युनिस्ट विचारधारा से लोगों का मोह कुछ भंग होने लगा था, जिससे पंजाब भी अछूता नहीं रहा। इसके अलावा साम्प्रदायिक ताकतों के जरिए राजनीति करने वाले दलों से भी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों पर असर पड़ा है मगर इस बार बसपा के साथ हमारा गठबंधन है और हम अपना प्रदर्शन सुधारकर लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रहेंगे। - बंत सिंह बराड़, प्रदेश सचिव, सी.पी.आई., पंजाब।पंजाब विधानसभा में कामरेडों की शुरू से हाजिरी रही 

*1971 के लोकसभा  चुनाव में तो दो  सांसद सी.पी.आई. से  चुने गए थे
*1977 के चुनाव  में सी.पी.एम. से भगत राम ने फिल्लौर चुनाव जीता था
*1999 में मान सिंह भौरा (रिजर्व) सीट से सांसद चुने गए थे


 

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