Lok Sabha Election 2019:टकसाली अकाली प्रभावित करेंगे आनंदपुर साहिब का नतीजा

punjabkesari.in Wednesday, Feb 20, 2019 - 12:14 PM (IST)

जालंधरःपंजाब में आम आदमी पार्टी की स्थिति कमजोर होने के बाद आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट करने वाले मतदाताओं का रुख ही 2019 के चुनाव का नतीजा तय करेगा। पिछली बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी को इस सीट पर 306008 वोट हासिल हुए थे और वह तीसरे स्थान पर रही थी।

इस बार आम आदमी पार्टी की स्थिति कमजोर मानी जा रही है क्योंकि पार्टी दो धड़ों में विभाजित हो चुकी है और इस सीट पर पंथक वोटों की संख्या ज्यादा होने के कारण अकाली दल टकसाली का उम्मीदवार पंथक वोटों में सेंध लगा सकता है और अकाली दल (टकसाली) के पक्ष में होने वाले वोट ही इस सीट का नतीजा प्रभावित करेंगे। हालांकि कांग्रेस इस सीट पर हिंदू उम्मीदवार भी उतार सकती है और यदि ऐसा हुआ तो हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में हो सकता है। लेकिन इस सबके बावजूद इस सीट पर फैसला बसपा और आम आदमी पार्टी के पक्ष में पिछली बार वोट करने वाले करीब 4 लाख वोटर ही करेंगे। 

कांग्रेस उतार सकती है हिन्दू उम्मीदवार
पिछली बार भी कांग्रेस ने इस सीट पर अम्बिका सोनी को मैदान में उतारा था और वह दूसरे नंबर पर रही थीं। इस बार कांग्रेस की तरफ से इस सीट पर मनीष तिवारी का नाम भी लिया जा रहा है। हालांकि लुधियाना से सांसद रह चुके मनीष तिवारी ने चंडीगढ़ से सीट के लिए दावेदारी की है लेकिन यदि कांग्रेस ने सीट पर हिंदू उम्मीदवार उतारा तो मनीष तिवारी को आनंदपुर साहिब से मैदान में उतारा जा सकता है। पार्टी की अंदरूनी रिपोर्ट में भी कई नेताओं ने मनीष तिवारी को आनंदपुर साहिब से उतारने की वकालत की है। इस बीच पार्टी के प्रवक्ता जयवीर सिंह शेरगिल ने भी इस सीट पर दावेदारी ठोकी है।

चंदूमाजरा ही हो सकते हैं शिअद उम्मीदवार
अकाली दल की तरफ से इस सीट पर मौजूदा सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा का नाम ही तय माना जा रहा है। चंदूमाजरा अकाली दल के सरप्रस्त व पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के परिवार के करीबी हैं और संकट की घड़ी में भी उन्होंने अकाली दल टकसाली का साथ देने की बजाय बादल परिवार के साथ ही अपनी वफादारी कायम रखी। हालांकि चुनाव के बाद उन्हें केंद्र में मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी लेकिन कुर्सी न मिलने के बावजूद उन्होंने हरसिमरत कौर बादल को मंत्री बनाए जाने का विरोध नहीं किया। हालांकि इस सीट पर पूर्व  मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने भी सक्रियता बढ़ाई है और यदि चंदूमाजरा की सीट बदलती है तो चीमा को मैदान में उतारा जा सकता है।  हालांकि चंदूमाजरा ऐसी किसी संभावना से इंकार करते हैं। 

बीर दविन्द्र हो सकते हैं टकसालियों के उम्मीदवार
इस बीच अकाली दल टकसाली की तरफ से बीर दविन्द्र सिंह के नाम की भी चर्चा चल रही है। उन्होंने हाल ही में पार्टी का दामन पकड़ा है। वह अच्छे वक्ता हैं और 2002 की कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार के समय खरड़ से विधायक रहे हैं लेकिन पार्टी बदलने के कारण उनकी साख राजनीतिक हलकों और लोगों में बहुत अच्छी नहीं है। 

‘आप’ की तरफ से शेरगिल मैदान में
आम आदमी पार्टी ने इस सीट के लिए नरेन्द्र सिंह शेरगिल के नाम की घोषणा कर दी है। पेशे से किसान शेरगिल खरड़ के गिराकलां गांव से आते हैं। वह अरविंद केजरीवाल की सरकार द्वारा दिल्ली में किए गए कामों का हवाला देकर प्रचार कर रहे हैं। 

विधानसभा चुनाव में कमजोर हुआ अकाली दल
2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान वोटों की संख्या के लिहाज से अकाली दल को इस सीट पर विधानसभा चुनाव के दौरान नुक्सान हुआ है। पार्टी को इस सीट के तहत आने वाली विधानसभा सीटों पर 327230 वोट हासिल हुए जोकि उसे 2014 में हासिल हुए वोटों के मुकाबले 20164 कम हैं।
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की स्थिति इस सीट पर मजबूत हुई है। विधानसभा चुनाव के दौरान ‘आप’ को इस लोकसभा सीट के तहत आने वाली 9 विधानसभा सीटों में 370272 वोट हासिल हुए जोकि उसे 2014 में हासिल हुए वोटों के मुकाबले 64264 ज्यादा हैं।  


 
कांग्रेस की स्थिति भी इस सीट पर मजबूत हुई है। 2014 में कांग्रेस ने हलके की गढ़शंकर, बलाचौर व रूपनगर सीटों पर लीड किया था जबकि 2017 में उसने नवांशहर, चमकौर साहिब, बलाचौर व एस.ए.एस. नगर की सीटें जीतीं। वोटों के लिहाज से भी कांग्रेस को 85525 वोटों का फायदा हुआ। 2017 के चुनाव के दौरान कांग्रेस को इस सीट पर कुल 409222 वोट हासिल हुए हैं जबकि 2014 में उसे 323697 वोट हासिल हुए थे। 

2008 की डिलिमिटेशन के बाद बदला नाम
आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट पहले रोपड़ लोकसभा सीट के नाम से जानी जाती थी। 2008 की डिलिमिटेशन के बाद इस सीट का नाम बदल कर आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट किया गया। उसके बाद इस सीट पर 2 चुनाव हुए हैं। इनमें से 2009 में कांग्रेस के रवनीत बिट्टू और 2014 में अकाली दल के प्रेम सिंह चंदूमाजरा जीते हैं। 

अकाली दल 7 बार जीता, कांग्रेस 6 बार
1967 में इस सीट के गठन के बाद से यहां पर 13 चुनाव हुए हैं और इन 13 चुनावों में कांग्रेस ने 6 बार जीत दर्ज की है जबकि 6 बार अकाली दल और एक बार अकाली दल मान ने इस सीट पर कब्जा किया है। इस सीट पर पंथक वोटों का प्रभाव ज्यादा है जिसका अकाली दल को फायदा मिलता रहा है लेकिन हाल ही के दिनों में पंथक वोटरों की अकाली दल के प्रति नाराजगी बढ़ी है जिसका उसे नुक्सान हो सकता है। 

वर्ष   विजेता पार्टी
1967 बी. सिंह कांग्रेस
1971  बूटा सिंह  कांग्रेस
1977   बसंत सिंह     अकाली दल
1980    बूटा सिंह     कांग्रेस
1985  चरणजीत सिंह  अकाली दल
1989 बिमल कौर  अकाली दल (मान)
1992  हरचंद सिंह कांग्रेस
1996 बसंत सिंह अकाली दल
1998 सतविंद्र कौर  अकाली दल
1999    शमशेर सिंह  कांग्रेस
2004    सुखदेव सिंह लिब्रा अकाली दल
2009    रवनीत सिंह  बिट्टू    कांग्रेस
2014  प्रेम सिंह चंदूमाजरा     अकाली दल

     
     
  
   
    

  

swetha