Loksabha Election: माझे की सरहदी सीट पर कौन होगा उम्मीदवार, संशय बरकरार

punjabkesari.in Monday, Jan 29, 2024 - 09:55 AM (IST)

पठानकोट: देश व सूबे में 75वां गणतंत्र दिवस शान से मनाने के बाद मौजूदा वर्ष की पहली छमाही में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां पूरी तरह से तेज हो गई हैं, जिनके तहत अब संशय बरकार है कि माझे की सरहदी सीट पर उम्मीदवार कौन होगा। सूबे में सत्तारूढ़ ‘आप’ भी अकेला चलो की नीति को अख्यितार करती फिलहाल नजर आ रही है, क्योंकि सीटों को लेकर इसका कांग्रेस के साथ शेयरिंग फार्मूला अभी तक कोई आकार नहीं ले पाया है, चूंकि ‘आप’ को उम्मीद है कि कांग्रेस सहित अन्य दलों को सूबे की जनता नकार चुकी है, ऐसे में अगर वो अपने दम पर भी चुनाव लड़ती है तो सभी 13 सीटों में से अधिक से अधिक सीटों पर वो अपनी जीत का परचम विस चुनावों में मिली ऐतिहासिक जीत के दम पर फहरा सकती है। सूबे का कांग्रेस नेतृत्व व वर्कर भी ‘आप’ को अधिक सीटें देने पर राजी नहीं है, इन परिस्थितियों में अगर आगे चलकर यही तस्वीर व स्थिति रहती है तो ‘आप’ व इंडिया ब्लॉक में सहयोगी कांग्रेस को अलग से लोस चुनाव लड़ना पड़ेगा। ऐसे में हर सीट पर बहुकोणीय मुकाबला बनने की स्थिति बन आ सकती है।

जनता निगेहबान, पठानकोट या गुरदासपुर किस जिले से होगा ‘आप’ का प्रत्याशी’
चूंकि गुरदासपुर संसदीय सीट सूबे की हॉट सीटों में शुमार है तथा इस सीट पर कई सैलेब्रिटियां चुनाव लड़कर अपने तिलिस्मी व्यक्तित्व की चकाचौंध जनता-जनार्दन पर बिखेर चुकी हैं। अधिकतर पार्टियों ने पिछले हुए लोस चुनावों में संलग्र जिले गुरदासपुर से ही अपने प्रत्याशी या तो उतारे हैं या पैराशूटर नेता उम्मीदवार बनाए हैं। तब कहीं उन्हें जाकर जीत नसीब हुई है। पैराशूटर सैलेब्रिटियों को उम्मीदवार बनाने में भाजपा ने अधिक पहल दिखाई है। स्व. सिने अभिनेता विनोद खन्ना इस सीट से चार बार चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें तीन बार उन्हें जीत तो एक बार हार मिली है। उनके निधन के बाद विछले लोस चुनाव में भाजपा ने फिर उसी परिपाटी का अनुसरण करते हुए फिर से सिने स्टार सन्नी देओल को प्रत्याशी बनाया, नतीजा भी पार्टी नेतृत्व के उम्मीद मुताबिक जीत के रूप में ही आया, क्योंकि देओल ने प्रदेश कांग्रेस के उस समय अध्यक्ष रहे धाकड़ नेता सुनील जाखड़ (अब भाजपा में) को अप्रत्यशित रूप से हराकर सभी दलों को चौंका दिया। हालांकि अब सन्नी देओल ने आगे चुनाव न लड़ने की बात कहकर राजनीति से दूरी बना ली है। ऐसे में भाजपा के लिए भी इस बार इस सीट पर चुनावी रण फतेह करने के लिए उम्मीदवार ढूंढना निश्चित रूप से बड़ी परेशानी का सबब है तथा देखते हैं कि पार्टी नेतृत्व इस बार इस सीट पर फिर से पैराशूटर कोई प्रत्याशी उतारती है या स्थानीय वर्कर पर भरोसा जताती है, यह देखना फिलहाल भविष्य के गर्भ में है, परन्तु यह भी देखना रूचिकर होगा कि क्या भाजपा व सूबे में सत्तारूढ़़ आप पठानकोट जिले से कार्यकत्र्ता को चुनावी रण में उतारती है या पड़ोसी जिले गुरदासपुर के किसी निर्वाचण क्षेत्र से संबंधित को।

गुरदासपुर को दी जाती रही है पठानकोट से अधिक तवज्जो
बाकी अन्य मामलों को अगर छोड़ दिया जाए तो जब किसी पार्टी को लोकसभा जैसे बड़े चुनाव में रण फतेह करना होता है तो अधिकांश मामलों में पठानकोट जिले की अपेक्षा गुरदासपुर जिले से संबंधित व्यक्ति को ही चुनाव में उतारा जाता रहा है तथा पठानकोट जिले के मामले में यह सौभाग्य काफी कम आया है। इसका एक बड़ा कारण है कि पठानकोट जिला गुरदासपुर जिले से ही अलग होकर अस्तित्व में आया है। वहीं आज भी इस सीट को गुरदासपुर संसदीय सीट के रूप में राजनीतिक गलियारों में जाना जाता है। इसका मुख्य कारण इस सीट के अधीन आते पौने दर्जन असैंबली हलकों में दो तिहाई का गुरदासपुर जिले से संबंधित है तथा पठानकोट जिले में महज तीन ही असैंबली हलके इस सीट के अंतर्गत आते हैं। संभवत: यहीं कारण है कि अधिकांश पार्टियां इस जिले की तुलना में गुरदासपुर जिले से ही संबंधित वर्कर को इस बड़े चुनाव में प्रत्याशी बनाती आई है, जिसका गुरदासपुर जिले के आधा दर्जन असैंबली हलकों में अच्छा रसूख व प्रभाव होता है। इसकी मिसाल कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा व स्व. सुखबंस कौर भिंडर की सामने है। स्व. भिंडर कई बार सांसद रहीं तथा कई चुनाव भी लड़े। वहीं बाजवा ने भी स्व. खन्ना को हराकर इतिहास अपने नाम दर्ज करवाया। ऐसे में आम जनता की निगाहें सभी दलों पर लगी हुई हैं, इस दफा आगामी लोस रण में उपरोक्त दोनों में किस जिले से प्रत्याशी रण में लड़ने आते हैं। अकाली दल जो फिलहाल भाजपा से अलग होकर अकेले अगला चुनाव लड़ने का दावा कर रहा है, के प्रत्याशी अधिकांश रूप से गुरदासपुर जिले से ही संबंधित रहे हैं, क्योंकि अकाली दल का प्रभाव इस हिन्दू बहुल जिले की तुलना में गुरदासपुर में अधिक है।

जनता जनार्दन की सबसे अधिक पैनी निगाह ‘आप’ पर
अन्य दलों की तुलना में जनता की सबसे अधिक पैनी निगाह ‘आप’ पर बनी हुई। एक तो आप विस चुनाव जीतने के बाद पहला बड़ा लोस चुनाव इस सूबे में लड़ने जा रही है तथा उसकी ही सबसे अधिक साख दांव पर लगी हुई है। पार्टी नेतृत्व भी आकलन कर रहा है कि किस जिले से अपना प्रत्याशी उतारने में तरजीह दे, जिसका उसे लाभ भी चुनाव में मिले। वहीं टिकट को लेकर ‘आप’ में भी एक अनार सौ बीमार वाली बनी हुई है। हर वर्कर चाहता है कि सूबे में सतारूढ़ होने का एज उसे चुनाव लड़ने की सूरत में मिले तथा वह पार्टी की लोकप्रियता के रथ पर सवार होकर आराम से संसद में जा पहुंचे। अब देखना यह है कि सौ बीमार में से किसके हाथ टिकट रूपी अनार आता है।

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Vatika