Love Marriage करना कम्प्यूटर इंजीनियर को पड़ा महंगा,पत्नी निकली गैंगस्टर गिरोह की सदस्य

punjabkesari.in Sunday, Apr 15, 2018 - 02:06 PM (IST)

अमृतसर(महेन्द्र): प्रेम विवाह करना बुरी बात नहीं है लेकिन बिना सच्चाई जाने जल्दबाजी में पहली नजर में ही किसी को दिल दे बैठना और तुरंत शादी कर लेना, कई बार न सिर्फ प्रेमी या प्रेमिका की जिंदगी को ही जोखिम में डाल देता है। बल्कि परिवार के अच्छे माहौल को भी खराब कर देता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें एक कम्प्यूटर इंजीनियर एक ऐसी युवती के प्रेम जाल में फंस कर उसे अपना जीवन साथी बना बैठा, जो दरअसल न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर जाने-माने गैंगस्टर विजय टोपी के गिरोह की सदस्य थी, बल्कि एक हार्डकोर क्रिमिनल भी थी। 

उसके खिलाफ अलग-अलग पुलिस थानों में जुर्म से जुड़े जहां कई मुकद्दमे दर्ज थे, वहीं कई मामलों में अलग-अलग अदालतें उसे भगौड़ा भी घोषित कर चुकी थी। इंजीनियर बेटे के पिता को कुछ भनक लगी तो उन्होंने परेशान होकर ट्रेन के आगे खुदकुशी कर ली। उसके पश्चात जैसे-जैसे परतें खुलीं तो ऐसे राज सामने आए कि इंजीनियर पति के पांवों तले से जमीन ही खिसक गई। 

उसने यह सोचते हुए कि उसकी 9 वर्षीय बेटी की भी जिंदगी कहीं खराब न हो जाए, अपने वकील अजय कुमार विरमानी के जरिए बेटी की कस्टडी हासिल करने के लिए शुरू की गई कानूनी जंग भी जीत ली है। स्थानीय सिविल जज रवि इन्द्र कौर की अदालत ने पति के दावे को सही मानते हुए उसकी पत्नी को आदेश जारी किए हैं कि 15 दिनों के अंदर वह अपनी बेटी की कस्टडी उसके पिता के हवाले करे। 

प्रेम का ऐसा पिया प्याला, जिसमें मिला था जहर
स्थानीय बटाला रोड निवासी एक कम्प्यूटर इंजीनियर, जो देश की एक मशहूर कम्प्यूटर कंपनी में काम करता था। करीब 11 वर्ष पहले पहली ही नजर में स्थानीय जंडियाला कस्बे के समीप स्थित एक गांव में रहने वाली सुंदर युवती को अपना जीवन साथी मानते हुए उसे दिल दे बैठा। उसके प्रेम जाल में फंस कर उसने ऐसा प्रेम का प्याला पी गया, जिसमें जहर मिला हुआ था। उसने नवम्बर 2015 में स्थानीय सिविल अदालत में अपनी पत्नी के खिलाफ गार्डियन एंड वार्ड एक्ट 1890 की धारा 25 के तहत अपने वकील अजय कुमार विरमानी के जरिए सिविल केस दायर किया था। इसमें उसका कहना था कि वर्ष 2007 में उनकी मुलाकात हुई थी। इस दौरान एक-दूसरे के नजदीकियां बढने के पश्चात उन्होंने नवम्बर 2007 में बिना किसी दहेज के शादी कर ली थी। इस शादी से अप्रैल 2009 में उनकी एक बेटी पैदा हुई थी। 

पत्नी का क्रूरतापूर्ण व्यवहार, पिता ने कर ली थी खुदकुशी
कम्प्यूटर इंजीनियर का कहना था कि शादी के बाद उसका तबादला दूसरे जिलों में होता रहा था। ऐसे में उसे ज्यादातर बाहर ही रहना पड़ रहा था। इस दौरान उसे पता चला कि उसकी पत्नी के जहां कई अज्ञात लोगों के साथ संपर्क बने हुए हैं। वह कई बार रात के समय घर से चली जाया करती थी और कुछ पुरुष लोग उसे छोडने आया करते थे। ऐतराज करने पर उसकी पत्नी घर में बवाल पैदा कर देती थी। उसके मां-बाप के साथ उसका व्यवहार बहुत ही क्रूरतापूर्ण हो चुका था। उसकी पत्नी की जिंदगी के पिछले हालात की शायद उसके पिता को भनक भी लग चुकी थी। इस कारण परेशानी की हालत में उसके पिता ने उसकी पत्नी से तंग व परेशान होकर ट्रेन के आगे छलांग लगा कर खुदकुशी कर ली थी। 

पत्नी का असली चेहरा आया सामने 
कम्प्यूटर इंजीनियर के पिता द्वारा अपनी पुत्रवधू से तंग आकर खुदकुशी करने के बाद उसकी पत्नी के खिलाफ भादंसं की धारा 306 के तहत केस भी दर्ज हुआ था। इस मामले में उसकी गिरफ्तारी होने के पश्चात उससे की गई पूछताछ के दौरान ऐसे कई खुलासे हुए कि कम्प्यूटर इंजीनियर का परिवार ही नहीं, बल्कि खुद पुलिस भी स्तब्ध हो गई। पता चला कि यह युवती कोई और नहीं, बल्कि जाने-माने गैंगस्टर विजय टोपी के गिरोह की मुख्य सदस्य भी है, जो अपने कई नाम बदल कर रह रही थी और इसके खिलाफ वेश्यावृत्ति के मामले के साथ-साथ जुर्म के कई मामले अलग-अलग पुलिस थानों में दर्ज हैं।

कानूनी बहस दौरान कबूल किए सारे हालात 
मासूम बच्ची की कस्टडी के मामले को लेकर अदालत में कानूनी बहस के दौरान उसकी मां यानि कम्प्यूटर इंजीनियर की पेशेवर मुजरिम पत्नी से पटीशनर इंजीनियर के वकील अजय कुमार विरमानी ने जब सवाल-जवाब किए, तो उसे अपनी जिंदगी से जुड़े पिछले सारे हालात और कई प्रकार के उसके जुड़े मामलों की सच्चाई को भी कबूल करना पड़ा। इसमें उसे यह भी कबूल करना पड़ा कि वह अपने ससुर की खुदकुशी के मामले का भी सामना कर रही है। उसने अपने पति व ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीडऩ का जो केस दर्ज करवाया था, झूठा पाए जाने पर वह भी खारिज हो चुका है।

अदालत ने भी माना, बच्ची का भविष्य सुरक्षित नहीं
मासूम बच्ची की कस्टडी हासिल करने के लिए उसके पिता कम्प्यूटर इंजीनियर ने अदालत में जो हालात बयान किए थे, उसके सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद खुद अदालत को भी मानना पड़ा कि इस बच्ची का भविष्य ऐसी मां की कस्टडी में सुरक्षित नहीं हो सकता जिसकी अपनी जिंदगी जुर्म से ही जुड़ी हुई हो। इसलिए अदालत ने मासूम बच्ची की कस्टडी उसके पिता के सुपुर्द करने का फैसला सुनाया।

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