1200 फुट तक गिरा ग्राऊंड वाटर लैवल, पेयजल को भी तरसेंगे लुधियानवी

punjabkesari.in Friday, Feb 07, 2020 - 09:07 AM (IST)

लुधियाना(धीमान): पंजाब के औद्योगिक शहर लुधियाना में नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल का पहली बार एन्वायरनमैंट अवेयरनैस प्रोग्राम में बतौर चीफ गैस्ट पहुंचने पर स्वागत होगा लेकिन खास स्वागत महानगर की करीब 280 डाइंगों के कारोबारी 10.50 करोड़ लीटर पानी बुड्ढे नाले में बहाकर करेंगे। दूसरी ओर इसी शहर के लोगों को 2035 के बाद पीने के पानी के लिए तरसना पड़ेगा।

वजह, शहर के भीतर ग्राऊंड वाटर लैवल 500 फुट से नीचे जा चुका है और राज्य के कई क्षेत्रों में तो 1200 फुट नीचे तक पानी पहुंच गया है। हमारी सरकारें पानी को बचाने के लिए प्रयास कर रही हैं लेकिन जिस डाइंग इंडस्ट्री से पानी को बचाया जा सकता है उस पर न तो पंजाब सरकार और न ही केंद्र सरकार का कोई ध्यान है। इतना ही नहीं हाल ही में एन.जी.टी. ने भी एक फैसले में डाइंगों को बुड्ढे नाले में पानी को धड़ल्ले से फैंकने की इजाजत दे दी है। 

शहरवासियों को चाहिए रोजाना 1.32 करोड़ लीटर पानी, 8 गुना बहाया जा रहा व्यर्थ 

यहां सिर्फ लुधियाना की बात इसलिए की जा रही है क्योंकि एन.जी.टी. के चेयरमैन लुधियाना आ रहे हैं और यहां की डाइंगों में से प्रतिदिन 10.50 करोड़ लीटर पानी बुड्ढे दरिया में बहाया जाता है। इस पानी को बचाने का सबसे आसान तरीका जैड.एल.डी. (जीरो लिक्विड डिस्चार्ज) तकनीक है जिस पर कोई सरकारी विभाग या कारोबारी बात करना भी मुनासिब नहीं समझते। आए दिन खत्म हो रहे पीने के पानी के लिए बड़े-बड़े होटलों में मीटिंग कर ङ्क्षचता तो  जताई जा रही है लेकिन जमीनी हकीकत पर कोई भी उतरने को तैयार नहीं है जिसका खमियाजा लुधियाना की सरकारी आंकड़ों के अनुसार 22 लाख की आबादी वाले शहर को भुगतना पड़ेगा। असल में आबादी आज 40 लाख के आसपास है लेकिन इसका सरकारी आंकड़ा 2011 के बाद कभी भी आंका नहीं गया। अंदाजन एक व्यक्ति रोज 3 लीटर पीने के पानी और 3 लीटर ही अपने निजी कामों में इस्तेमाल करता है तो इस हिसाब से सरकारी आंकड़े के मुताबिक रोज लुधियाना वासियों को 1.32 करोड़ लीटर पानी चाहिए लेकिन उपरोक्त आंकड़े के अनुसार इससे 8 गुना व्यर्थ बहाया जा रहा है। 
650 करोड़ में से मदद मिले तो जैड.एल.डी. तकनीक वाले तीनों बन सकते हैं सी.ई.टी.पी.

लुधियाना की 280 डाइंगों के लिए 105 एम.एल.डी. (मिलियन लीटर डेली) के 2 कॉमन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट लगाए जा रहे हैं। इन पर करीब 207 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। ये तीनों प्लांट जैड.एल.डी. तकनीक के बगैर हैं और इनसे पानी साफ होकर फिर से बुड्ढे दरिया में फैंका जाएगा। यानी इतने करोड़ खर्च करके भी पानी पीने के लायक नहीं होगा। कारोबारियों के मुताबिक यदि जैड.एल.डी. तकनीक पर प्लांट बनते हैं तो कीमत 3 गुना ज्यादा हो जाएगी। इसका मतलब तीनों प्लांट की कुल लागत 621 करोड़ रुपए होगी। पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अफसर कहते हैं कि पहले चरण में बिना जैड.एल.डी. के प्लांट लगेंगे, फिर जरूरत होगी तो जैड.एल.डी. करेंगे। दूसरी ओर तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि पहले चरण में ही जैड.एल.डी. तकनीक लगाकर पानी को बचाया जा सकता है। डाइंगों ने सी.ई.टी.पी. के लिए केंद्र से अभी करोड़ों रुपए की ग्रांट ली है। जैड.एल.डी. तकनीक के लिए भी केंद्र पैसा देने को तैयार है लेकिन जैड.एल.डी. तकनीक वाली स्कीम में डाइंगों ने अप्लाई ही नहीं किया। इसी तरह पंजाब सरकार भी अपने हिस्से का करोड़ों रुपया पीने के पानी को बचाने के लिए जैड.एल.डी. हेतु दे सकती है, बशर्ते डाइंग कारोबारी जैड.एल.डी. करने की चाह रखते हों। 

ऑल पार्टी मीटिंग में सबसे अच्छे विकल्प  जैड.एल.डी. तकनीक पर नहीं गया किसी का ध्यान

इस मसले पर हाल ही में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी ऑल पार्टी मीटिंग कर चुके हैं जिसमें सभी पाॢटयों के नेता शामिल थे। उनसे पीने के पानी को बचाने के लिए सुझाव मांगे गए। इस बैठक में ङ्क्षचता जताई गई कि नहरी पानी को अब पीने के लिए इस्तेमाल में लाना होगा, क्योंकि पानी का स्तर नीचे गिरता जा रहा है। इसके लिए करोड़ों रुपए का विशेष फंड बनाने पर भी विचार हुआ। मजेदार बात यह है कि किसी का भी ध्यान नहीं गया कि यदि डाइंग इंडस्ट्री जैड.एल.डी. तकनीक अपना ले तो धरती का रोजाना 10.50 लीटर पानी बच सकता है। अभी तक डाइंगें इन पानी को जमीन से निकाल इस्तेमाल कर दोबारा फिर से बुड्ढे नाले में बहा देती हैं। राज्य सरकार ने वल्र्ड बैंक से रोजाना 1.32 करोड़ लीटर पेयजल पानी को बचाने व नहरी पानी को साफ करने के लिये 650 करोड़ रुपए ले लिए लेकिन जिन डाइंगों से इतने पैसे में ही पानी बच सकता है उस पर पैसा खर्च करने को कोई तैयार नहीं।

त्रिपुरा में लगे हैं  20 जैड.एल.डी. तकनीक वाले सी.ई.टी.पी.

त्रिपुरा में 450 डाइंगों ने सरकार की मदद से 20 जैड.एल.डी. आधारित सी.ई.टी.पी. प्लांट लगाए हैं। 2005 में मद्रास हाईकोर्ट ने पंजाब जैसी पानी की स्थिति को देखते हुए वहां के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को हिदायतें देकर प्लांट लगवाए थे। 

जैड.एल.डी. से ऐसे बचेगा पानी

डाइंग इंडस्ट्री में रोजाना जो 10.50 करोड़ लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, यदि इस पानी को ट्रीट करके दोबारा इस्तेमाल में लाया जाए तो हर बार जमीन से करोड़ों लीटर पानी निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैड.एल.डी. तकनीक 90 प्रतिशत पानी को पीने के लायक बना देती है और बाकी का 10 प्रतिशत पानी वैपोरेट होकर हवा में उड़ जाता है।

swetha