मालवा में किसानों ने खुलकर लगाई खेतों में आग, दोआबा में कम रहा रुझान

punjabkesari.in Wednesday, May 22, 2019 - 08:54 AM (IST)

गुरदासपुर(हरमनप्रीत): इस वर्ष पंजाब में गेहूं के खेतों में आग लगाने के मामले में करीब 40 फीसदी गिरावट आने से जहां खेतीबाड़ी और किसान भलाई विभाग राहत महसूस कर रहा है, वहीं पंजाब में प्रदूषण का स्तर भी काफी हद तक संतोषजनक रहा है।  हाल की घड़ी में स्थिति यह है कि राज्य में पिछले साल के मुकाबले गेहूं के अवशेष को आग लगाने के 3919 मामले कम दर्ज किए गए हैं। इस बार दोआबा के जिलों में आग लगाने का रुझान सबसे कम रहा है, जबकि मालवा के किसानों ने इस बार भी खुल कर खेतों को आग के हवाले किया।  पंजाब में आग लगने के कुल मामलों में से दोआबा से संबंधित जिलों में सबसे कम आग लगी है। जालंधर, होशियारपुर, नवांशहर और कपूरथला जिलों में आग लगाने के सिर्फ 632 मामले सामने आए हैं। माझा के अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर और पठानकोट में 1613 स्थानों पर आग लगाई गई, जबकि मालवा में विभिन्न जिलों में 3736 स्थानों पर आग की घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। 

किन जिलों में कितने स्थानों पर लगी आग 
इस बार भले ही आग लगने के मामलों की संख्या कम मानी जा रही है, मगर गेहूं की आग इतनी भयानक होती है कि जब किसी स्थान पर यहलगती है तो इससे आसपास का काफी इलाका जल जाता है। इससे यह भी समझा जा रहा है कि आग लगने की घटनाओं की संख्या भले ही कम है। मगर आग लगने से जला क्षेत्र काफी अधिक है। विभिन्न जिलों में आग लगने के मामलों की संख्या अनुसार 5 जिले ऐसे हैं, जिनमें आग की घटनाओं की संखअया 100 से भी कम है। 

12 मई को एक ही दिन में लगाई 1291 स्थानों पर आग
16 मई तक एकत्र आंकड़ों के अनुसार इस साल पंजाब में 5981 स्थानों पर आग लगने के मामले सरकारी तौर पर सामने आए हैं, जबकि पिछले वर्ष इन दिनों में करीब 9900 स्थानों पर आग लगाने की घटनाएं हुई थीं। इस साल सिर्फ 12 मई ही ऐसा दिन था, जिस दिन किसानों ने 1291 स्थानों पर आग लगाई, जबकि पिछले साल 9 मई को पंजाब में एक ही दिन 1500 स्थानों पर आग लगाने की रिपोर्ट सामने आई थी। पिछले साल 4 दिन ऐसे थे, जिनमें राज्य में एक ही दिन में 1500 स्थानों पर आग लगाई गई थी, जबकि इस साल सिर्फ एक ही दिन में आग लगाने की घटनाओं की संख्या 1000 से अधिक है।

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पंजाब के अधिकांश किसान गेहूं के अवशेष का 90 प्रतिशत हिस्सा तूड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं, जिसके अंतर्गत जो किसान खेतों में आग लगाते हैं, वे नीचे के बचे हिस्से को ही जलाने की कोशिश करते हैं। इससे गर्मियों में गेहूं के अवशेष से पैदा होने वाला प्रदूषण धान के अवशेष को लगाई जाने वाली आग के मुकाबले कम होता है। इस मौके पर पंजाब के अधिकतर शहरों में प्रदूषण का स्तर अधिक खतरनाक हद तक नहीं बताया जा रहा, मगर विशेषज्ञों के अनुसार 100 से अधिक गुणवत्ता सूचक अंक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। विशेषकर जब यह स्तर 150 से बढ़ जाता है तो इसे और भी हानिकारक माना जाता है। पंजाब के प्रमुख जिलों में हवा के गुणवत्ता सूचकांक नीचे लिखे अनुसार दर्ज किए गए हैं।

 

जोन     ए.क्यू.आई.   (20 मई 2019)  ए.क्यू.आई (21 मई 2019)
अमृतसर 100   101
फतेहगढ़ साहिब  100   99
लुधियाना   101 99
रोपड़ 182 77
जालंधर    151 50
पटियाला  156 103

 

क्या कहना है कृषि अनुबंध प्रबंधन अधिकारी

इस संबंधी  कृषि अनुबंध प्रबंधन अधिकारी अनिल सूद ने कहा कि पिछले सप्ताह  19-20 आग लगने की घटनाएं सामने आई थी। इसका कारण कटाई में देरी हो सकता है। विभाग ने इनका संज्ञान लेते हुए चालान जारी कर दिए हैं। उन्होंने बताया कि धान की पराली की तुलना में गेहूं की पराली को जलाने से कम धुआं निकलता है।

 

 

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