मंडी गोबिंदगढ़ स्टील उद्योग में 150 बंद इकाइयों से सालाना औसतन 10,306.50 करोड़ का घाटा

punjabkesari.in Saturday, Jul 22, 2017 - 01:41 PM (IST)

चंडीगढ़ : पंजाब की पूर्व सरकारों की नाकामी के चलते देशभर में विख्यात मंडी गोबिंदगढ़ की स्टील इंडस्ट्री अचानक डेढ़ दशक में बेमौत मरने को मजबूर हो गई। कई स्टील उद्योग बंद हो चुके हैं या फिर पलायन को मजबूर हुए हैं। चंडीगढ़ स्थित सैंटर फार रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रीयल डिवैल्पमैंट (क्रिड) ने हाल ही में मंडी गोबिंदगढ़ के स्टील उद्योग पर अध्ययन किया। अध्ययन में पता चला कि सरकार की ओर से संजीदगी न दिखाए जाने और कथित नियम-कायदों के कारण उद्योग तबाह हुआ है।

मंडी गोबिंदगढ़ की स्टील इंडस्ट्री इन वजह से हुई बंद 

जब मंडी गोबिंदगढ़ का स्टील उद्योग शिखर पर था तब औद्योगिक कलस्टर में करीब 500 स्टील उद्योग थे। इसे देश में स्टील टाऊन के तौर पर जाना जाता था। 1991-96 के उदारीकरण के दौर में उद्योग और बढ़ा-फूला। वैश्वीकरण के दौर में तकनीकी अपग्रेडेशन,नई टैक्रोलाजी और नई-नई वैरायटी ने औद्योगिक इकाइयों को स्थापित रखने में अहम भूमिका निभाई थी, मगर अचानक ही स्टील इंडस्ट्री पलायन को मजबूर होने लगी। करीब 150 स्टील यूनिट बंद भी हो गए। क्रिड में अर्थ शास्त्र के प्रोफैसर रणजीत सिंह घुम्मन ने असिस्टैंट प्रो. जङ्क्षतद्र सिंह के साथ मिलकर मंडी गोबिंदगढ़ की स्टील इंडस्ट्री पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि समान भाड़ा नीति को वापस लेने, उच्च टैक्स दर, ज्यादा बिजली टैरिफ, टैक्स इन्सैंटिव की गैरमौजूदगी, अन्य राज्यों में संगठित स्टील उद्योगों की स्थापना व विकास, 2012 में लागू ई-ट्रिप पालिसी, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमतों में उतार-चढ़ाव, विदेशी (विशेषकर चीन) प्रतिस्पर्धा ने उद्योग पर प्रतिकूल असर डाला।

औद्योगिक विकास व रोजगार में भी पैदा हुई दिक्कत: बड़े पैमाने पर राजस्व घाटे से औद्योगिक विकास, रोजगार और टैक्स कलैक्शन में भी दिक्कत पैदा हुई। अध्ययन में सामने आया कि एक यूनिट में श्रमिकों का वेतन आदि सालाना करीब 60 लाख रुपए बनता है। ऐसे में बंद 150 यूनिटों में भी श्रमिकों को वेतन आदि के रूप में 90 करोड़ मिलते जो पैसा आगे कंज्यूमर मार्कीट में आता। स्टील उद्योग में करीब 88 वर्कर प्रति यूनिट काम कर रहे हैं जबकि 96.5 वर्कर प्रति बंद यूनिट में काम करते थे। इस दर से 23 बंद यूनिटों में 2208 कर्मचारी बेरोजगार हो गए। सूत्रों ने टीम को बताया कि 150 बंद स्टील यूनिटों में 14,400 वर्कर बेरोजगार हुए हैं। खास बात यह है कि बंद यूनिटों में किसी में भी 50 से कम कर्मचारी नहीं थे। चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि यूनिटों में स्किल वर्कर ज्यादा थे। औसतन एक यूनिट में 56 स्किल और 30 अन स्किल्ड वर्कर काम करते थे।

कइयों के रोजगार पर भी पड़ा असर

इन औद्योगिक इकाइयों के बंद होने का असर केवल कर्मचारियों पर ही नहीं पड़ा बल्कि शहर व साथ सटे ग्रामीण क्षेत्रों पर भी देखने को मिला। श्रमिकों की ओर से किराए पर लिए घर अब खाली हैं। ढाबे, टी स्टाल, टिक्की-समोसे के अलावा कपड़े, जूतों और अन्य रोजमर्रा के राशन जैसी खुदरा दुकानों पर भी असर पड़ा। साइकिल-स्कूटर मैकेनिक, दर्जी, ट्रक रिपेयर करने वाले आदि भी उद्योगों के बंद होने या पलायन से बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं।

आतंकवाद के दौरान बढ़े थे, 21वीं सदी में हुए बंद

अब तक यही कहा जाता था कि आतंकवाद का असर उद्योगों पर पड़ा था। अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आई कि वर्ष 1980-81 से 1990-91 के दौरान उद्योगों में 4 गुना वृद्धि देखने को मिली थी। जबकि 21वीं सदी के पहले दशक में ङ्क्षचताजनक गिरावट आई। 2007-13 के दौरान 18770 औद्योगिक इकाइयां बंद हुई थीं। 2007-14 में सबसे ज्यादा (43 प्रतिशत) उद्योग अमृतसर जिले में बंद हुए। इसके बाद लुधियाना, गुरदासपुर और जालंधर जिलों का नंबर आता है।

सरकार यदि मंडी गोबिंदगढ़ के स्टील उद्योग को अब भी बचाना चाहती है तो मौजूदा इकाइयों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए टैक्नोलॉजी अपग्रेडेशन के प्रति प्रोत्साहित करे। औद्योगिकीकरण सुनिश्चित करने के लिए वैसी ही सुविधाएं व लाभ दे जैसे केंद्र हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर को दे रहा है। बड़ी बात यह है कि पंजाब सरकार बड़े पैमाने पर बंद व पलायन करने वाले उद्योगों का व्यापक अध्ययन कराए ताकि कारणों का खुलासा हो सके।                             -रणजीत सिंह घुम्मन, अर्थशास्त्र के प्रोफैसर, क्रिड

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