सिद्धू के साथ मनप्रीत भी कांग्रेसी नेताओं के निशाने पर आए, माईग्रेटिड नेताओं का मिला खिताब

punjabkesari.in Tuesday, Oct 13, 2020 - 09:28 AM (IST)

जालंधर (चोपड़ा): राहुल गांधी की फेरी ने पंजाब में कांग्रेस को दोबारा दुविधा में डाल दिया है और वे पार्टी में बगावत को इस कदर हवा दे गए हैं कि अगले महीनों में सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए पार्टी कैडर को अपने साथ जोड़े रखने और सिंहासन को बचाने की एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। कृषि अध्यादेशों के बाद किसान आंदोलन के बहाने सभी राजनीतिक दलों की नजरें वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों पर टिकी हैं। पिछले कई दिनों से राजनीतिक दलों द्वारा केंद्र की भाजपा सरकार पर कृषि अध्यादेशों को वापस लेने का दबाव बनाने को लेकर लगातार ट्रैक्टर रैलियां व धरने प्रदर्शन किए जा रहे हैं। इस सारी कवायद में सबसे विकट स्थिति कांग्रेस की बनी हुई है, जिसके समक्ष पार्टी के टूटते कैडर को साथ जोड़े रखना और अगले चुनावों में सिंहासन को बचाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है।

चूंकि पंजाब व हरियाणा कृषि प्रधान राज्य हैं, इसी कारण कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने खेती बचाओ आंदोलन की शुरूआत पंजाब से की ताकि कांग्रेस की आवाज देशभर में गूंज सके। राहुल गांधी 3 दिनों तक राज्य में ट्रैक्टर पर घूमते व रैलियां करते रहे। ऐसे में कुल मिलाकर देखा जाए तो राहुल गांधी का पंजाब दौरा राज्य कांग्रेस में धड़ेबंदी और अनुशासनहीनता को इस कदर हवा दे गया है कि कांग्रेस को आने वाले महीनों में बड़े स्तर पर भीतरघात का सामना करना पड़ेगा।पंजाब में कै. अमरेन्द्र सरकार के कार्यकाल में हावी अफसरशाही, विधायकों व कांग्रेसी नेताओं की सुनवाई का न होना, कार्यकत्र्ताओं की अनदेखी को लेकर चल रही बगावत की आग कोरोना वायरस के कारण ठंडी पड़ी हुई थी परंतु राहुल गांधी इस आग को एकाएक ऐसी हवा दे गए कि चंद दिनों में ही यह आग अब ज्वाला का रूप धारण कर रही है, जिसके उपरांत बड़े नेताओं की लड़ाई खुल कर लोगों के सामने आ गई है। इसकी शुरूआत उस समय हुई जब कांग्रेस से नाराज चल रहे नवजोत सिद्धू को राहुल की रैली में लाने की जिम्मेवारी नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी हरीश रावत को सौंपी गई जिसे उन्होंने बाखूबी पूरा किया।

इस दौरान सिद्धू की पुन: एडजस्टमैंट को लेकर चर्चाएं भी चलीं और उन्हें डिप्टी सी.एम. व प्रदेश प्रधानगी देने का आफर दिए जाने से कैप्टन लॉबी की भौंहें तन गईं।इस दौरान ऐसा चक्रव्यूह रचा कि सिद्धू और मनप्रीत बादल एक बार फिर से कांग्रेसी नेताओं के निशाने पर आ गए। कैप्टन ने 4 वर्ष पहले कांग्रेस में आए सिद्धू को प्रदेश प्रधान या डिप्टी सी.एम. बनाने से स्पष्ट इंकार करते हुए दो-टूक शब्दों में कहा कि अगर सिद्धू बिजली विभाग लेना चाहते हैं तो वापस मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं, जिसके उपरांत रावत को भी अपनी बात से यू-टर्न लेने को मजबूर होना पड़ा। रैली मंच पर कांग्रेसी नेताओं के मध्य जो ड्रामा हुआ वह किसी से छिपा नहीं है।इस मामले में जेल मंत्री सुखजिन्द्र रंधावा ने नवजोत सिद्धू के खिलाफ  मोर्चा खोलते हुए उन्हें माईग्रेट नेता कहकर कांग्रेस की राजनीति में बवाल खड़ा कर दिया। सांसद रवनीत बिट्टू ने रंधावा के साथ सुर मिलाते हुए सिद्धू के साथ एक कदम आगे बढ़कर मनप्रीत बादल को भी लपेटे में लेते हुए दोनों को माईग्रेटिड नेता कह डाला।

सांसद बिट्टू ने आरोप लगाए कि कैप्टन सरकार में बाहरियों का दबदबा है, जब सरकार बनी थी तो मुख्यमंत्री अमरेन्द्र के दाएं-बाएं सिद्धू और मनप्रीत ही दिखते थे। सुखी रंधावा और सांसद बिट्टू के बयानों ने कांग्रेस के भीतर चल रही हलचल ने टूटने का बड़ा संकेत दे दिया है।वहीं कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने भी पटियाला में राहुल गांधी के साथ कार्यक्रम सांझा करके एक तरह से कै. अमरेन्द्र को उनके गृह जिले में दिखाया है कि वह चुप बैठने वालों में नहीं हैं। राहुल की यात्रा के दौरान जिस प्रकार प्रदेश भर के मंत्रियों, विधायकों व वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को दूर रखा गया उससे कांग्रेस के अंदर विरोध की ज्वाला और तेज हो गई है।वहीं सुखबीर बादल ने भी कांग्रेस की लड़ाई को हवा देते हुए सिद्धू पर तंज कसा है और कहा कि वे अकाली दल के अलावा किसी भी पार्टी में जा सकते हैं। जबकि केंद्रीय मंत्री सोमप्रकाश और पूर्व मंत्री मास्टर मोहन लाल भी सिद्धू को भाजपा में शामिल करने संबंधी बयान देकर उनके लिए प्लेटफार्म तैयार कर रहे हैं क्योंकि भाजपा को पता है कि सिद्धू अगर कांग्रेस से किनारा करेंगे तो वह अकेले नहीं होंगे, उनके साथ बड़ी तादाद में पार्टी से रुष्ट नेताओं के भी कांग्रेस को अलविदा कहने की संभावना है।

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